मेरे घर से साई तेरा शिरडी है दूर,
मेरे घर को ही शिरडी बना दो रे साई,
मैं यहाँ भी राहु तेरा ही कहलाऊ,
अपने चरणों में मुझको जगह दो रे साई,
शिरडी से दूर हु मैं तो मजबूर हु,
आ सकता नहीं जब भी चहु वहा,
ऐसी अरदास है दिल में भी प्यास है,
ये दूरियां अब तो मिटा दो साई,
मेरे घर से साई तेरा शिरडी है दूर,
आँखे बंद जब करू तुमको ही पाउ मैं,
आंखे खोलू तो भी धन्य हो जाऊ मैं,
तेरे दीदार से मेरा कल्याण हो मेरे दिल में भी जोति जला दो साई,
मेरे घर से साई तेरा शिरडी है दूर…
जब भी संसार बन के जाऊ हवा,
तब भी गोदी में अपने ही रखना सदा,
ना कोई फांसले ना कोई मज़बूरी हो,
अपना चाकर तो मुझको बना लो रे साई,
मेरे घर से साई तेरा शिरडी है दूर
Sai Tera Shirdi is far from my home,
Make my home Shirdi only Re Sai,
Here too I will be called Rahu your only.
Give me a place at your feet, Re Sai,
I am away from Shirdi, I am compelled,
Can’t come whenever I want,
There is such an ardas, there is a thirst in the heart too,
Erase these distances now Sai,
Sai Tera Shirdi is far from my home,
I can only find you when I close my eyes,
I will be blessed even if I open my eyes,
May your well-being be from your presence, burn the flame in my heart too, Sai,
Sai Tera Shirdi is far from my home…
Whenever the world becomes air,
Even then always keep your own in the dock,
There should be no fence, no compulsion,
Make me your friend, Re Sai,
Sai Tera Shirdi is far from my home