मेरी माला के मोती बिखर गये,
बड़े चाव से मैंने बनाई थी,
मेरे अपने छुट गये साईं मैं जिनको अपना कहता था,
कई गाव दिये मुझे अपनों ने मैं जिनके दिल में रहता था,
मैं दर दर भटक ता फिरता हु,
मेरी मंजिल तुम हो साईं जी,
अब और कहा जाऊ साईं,
नही अपना कोई साईं जी,
मेरी माला के मोती …….
तिनका तिनका तुम चुन कर के छोटी सी कुटियाँ बनाई थी,
उस कुटियाँ में साईं बाबा तद प्रेम की ज्योत जलाई थी,
वो छुट गये जो थे अपने हर इक शेह लगती पराई थी
अब और कहा जाऊ साईं,
नही अपना कोई साईं जी,
मेरी माला के मोती …….
तेरी रहमत के चर्चे सुन कर,
मैं आ पोहंचा दरबार तेरे इक तेरे,
इक तेरे सिवा कोई भी नही जो हर ले साईं कष्ट मेरे,
अब और नही जाऊ गा कही,
शिरडी वाले मेरे साईं जी,
अब और कहा जाऊ साईं,
नही अपना कोई साईं जी,
मेरी माला के मोती …….
The pearls of my rosary were scattered,
I made with great passion,
My own lost Sai whom I used to call my own,
I was given many villages by my loved ones in whose heart I used to live,
I wander from door to door,
My destination is you Sai ji,
Now let’s say Sai,
No my own Sai ji,
The pearls of my rosary……
You made small huts by choosing straws, straws
Sai Baba had lit the flame of love in that hut.
Those who were left, every one of them seemed to be a stranger
Now let’s say Sai,
No my own Sai ji,
The pearls of my rosary……
Hearing the talk of your mercy,
I have come to the court of yours,
There is no one other than you who take every sai’s trouble to me,
I won’t go anywhere anymore
My Sai ji from Shirdi,
Now let’s say Sai,
No my own Sai ji,
The pearls of my rosary……