जसुमति राधा कुवँरि सजावति

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अपनी माता कीर्ति जी से सखियों-संग खेलने का बहाना कर, श्री राधा जी श्री कृष्ण से मिलने उनके घर पहुँच जाती हैं।

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भीतर आने में अत्यधिक संकोच अनुभव कर द्वार से ही मिश्री सम मीठी मृदुल वाणी में हौले से पुकारती हैं-

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कुँवर कन्हाई घर में हो ?

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कन्हाई मैया से किसी बात पर झगड़ रहे हैं, कर्ण-प्रिय अति मधुर स्वर सुनते ही दौड़ कर बाहर निकले..

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राधा जी को समक्ष देख सारा क्रोध विस्तृत हो गया, किन्तु अब मैया से क्या कहें, चतुर शिरोमणि ने तुरंत बहाना गढ़ लिया…

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मैया, तू इन्हें पहचानती है ? कल में यमुना किनारे से घर का मार्ग भूल गया था तब ये ही मार्ग बताती हुई यहाँ तक लाई।

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मैया ये तो आने के लिये सहमत ही नहीं थी मैनें इन्हें अपनी सौगंध दी तब आई…

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मुस्करा उठी मैया अपने लाडले कुँवर की वाक-प्रवीणता पर।

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मैया यशोदा राधा जी को अत्यधिक आत्मीयता व स्नेह से भीतर अपने कक्ष में ले जाती है और हौले हौले राधा जी से उनका सम्पूर्ण परिचय-विवरण ज्ञात करतीं हैं।

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राधा जी यशोदा जी के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अति संकोच विनम्रता व शालीनता से देती हैं।

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इसी वार्तालाप के मध्य यशोदा जी को ज्ञात होता है कि राधा जी उनकी बाल-सखी कीर्ति जी की ही बिटिया है।

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गदगद हो उठता है यशोदा जी का हृदय, अब उन्हें राधा जी और अधिक प्यारी लगने लगती हैं।

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वह अपने हृदय का सारा लाड़,वात्सल्य, सारी ममता राधा जी पर उढ़लने लगती हैं।

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अति दुलार से उन्हें अपने समीप बिठाकर कहती है..

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आ कुवँरि, तेरी चोटी-बिंदी कर दूँ

जसुमति राधा कुवँरि सजावति

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अति सौंदर्यमय आलौकिक दृश्य है। भरपूर ममत्व से सरोबोर यशोदा जी राधा जी के केशों को सँवार रही हैं…

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शीश की अलको को अति यत्न से, स्नेह भरे हाथों से हौले हौले सुलझाया, बीच में से माँग निकाल कर बड़े प्यार से गूथँ कर चोटी बनाई, फूलों से सजाई।

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गौरवर्ण भाल पर लाल सिंदूर की बिंदी लगाई, जो कुवँरि राधिका के माथे पर ऐसी सुशोभित हो रही है मानों चन्द्रमा व प्रातः कालीन रवि-कान्ति एक हो गई हो।

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माता यशोदा ने अपनी नई साड़ी का लहँगा बनाया, पहले राधा जी के सुकोमल अंगों को अपने आँचल से पोछा, तत्पश्चात अपने हाथों से लहँगा पहनाया।

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इतना सब करके यशोदा जी ने राधा जी की गोद में तिलचाँवरी, बताशे एवं भिन्न भिन्न प्रकार की मेवा रखी।

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इसके पश्चात यशोदा जी ने मुस्करा कर एक बार अपने पुत्र श्री कृष्ण की ओर देखा और फिर सूर्य की ओर झोली (आँचल) फैला कर मन ही मन कुछ माँग लिया।

अंत में यशोदा जी ने राधा जी की नजर उतार कर, राधा जी को सम्मान पूर्वक उनके घर पहुँचवा दिया।

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घर पहुँचते ही माता कीर्ति जी ने तुरंत प्रश्न किया..

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ये इतना साज-श्रंगार किसने किया है तेरा..

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राधा जी ने अक्षरत: सारा सत्य माता के समक्ष वर्णित कर दिया।

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सम्पूर्ण विवरण सुन कर वृषभानु-दम्पत्ति के हृदय में हर्ष का सागर हिलोंरे लेने लगा, वे समझ गये कि कुवँरि राधिका को यशस्वनि यशोदा जी ने अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया है…

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वृषभानु जी और कीर्ति जी की तो यह चिर-संचित अभिलाषा है।

जय जय मेरी श्यामा
जय जय मेरे श्याम….



By pretending to play with her mother Kirti ji, Shri Radha ji reaches Shri Krishna’s house to meet him.

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Feeling very hesitant to come in, from the door itself, she calls out softly in a sweet soft voice like sugar candy-

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Is Kunwar Kanhai in the house?

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Kanhai is quarreling with Maiya over something, Karna-beloved came out running as soon as he heard the very melodious voice..

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Seeing Radha ji in front, all the anger spread, but now what to say to Maiya, the clever Shiromani immediately made up an excuse…

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Maia, do you recognize him? Yesterday, I had forgotten the way home from the banks of Yamuna, then brought it here, showing the same path.

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Maya didn’t even agree to come, I gave my promise to her, then she came…

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Maya smiled at the speech proficiency of her beloved Kunwar.

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Maya Yashoda takes Radha ji inside her room with utmost affinity and affection and slowly gets to know her complete details from Radha ji.

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Radha ji answers every question of Yashoda ji with utmost hesitation, humility and decency.

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In the middle of this conversation, Yashoda ji comes to know that Radha ji is the daughter of Kirti ji, his childhood friend.

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Yashoda ji’s heart gets giddy, now Radha ji starts liking him more.

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She starts pouring all the pampering, affection, all the love of her heart on Radha ji.

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Sitting them close to her affectionately, she tells him..

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Come virgin, let me do your braid and bindi

jasumati radha virgin decoration

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Very beautiful supernatural scene. Drowning with full motherhood, Yashoda ji is grooming Radha ji’s hair…

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Sheesh’s Alko with great care, gently sorted it out with loving hands, took out the demand from the middle and made a braid by kneading it with great love, decorated it with flowers.

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A dot of red vermilion is placed on the glorified spear, which is being adorned on the forehead of the virgin Radhika as if the moon and the morning sun have become one.

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Mother Yashoda made her new sari lehenga, first wiped the delicate parts of Radha ji with her lap, then wore the lehenga with her own hands.

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After doing all this, Yashoda ji placed Tilchanwari, Batase and different types of dry fruits in Radha’s lap.

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After this Yashoda ji smiled once and looked at his son Shri Krishna and then spread his bag (anchal) towards the sun and asked for something in his mind.

In the end, Yashoda ji removed Radha ji’s eyes and got Radha ji to her house with respect.

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On reaching home, Mother Kirti ji immediately asked a question.

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Who has done this so much decoration for you..

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Radha ji literally narrated the whole truth to the mother.

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Hearing the whole description, the ocean of joy began to swell in the heart of Vrishabhanu couple, they understood that Yashaswini Yashoda ji had accepted the virgin Radhika as his daughter-in-law…

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Vrishabhanu ji and Kirti ji have this ever-accumulating desire.

Jay Jay Mary Shyama Jai Jai Mere Shyam….

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