मेरे पिताजी की आदत भी अज़ीब थी।
खाना खाने बैठते तो एक निवाला तोड़ कर थाली के चारों ओर घूमाते और फिर उसे किनारे रख कर थाली को प्रणाम करते और खाना खाना शुरू करते।
मैं उन्हें ऐसा करते हुए देखता और सोचता कि पिताजी ऐसा क्यों करते हैं?
बहुत हिम्मत करके एक दिन मैंने उनसे पूछ लिया कि पिताजी, आप रोज एक निवाला अलग करके, खाने की थाली को प्रणाम क्यों करते हैं?
पिताजी मेरी ओर देख कर मुस्कुराने लगे। फिर उन्होंने कहा कि मैं खाने से पहले ईश्वर को धन्यवाद कहता हूं। धन्यवाद इस बात के लिए कि उन्हें खाना खाने को मिला। धन्यवाद इस बात के लिए भी कि वो खाना खाने के योग्य हैं। धन्यवाद इस बात के लिए भी कि खाना खाने योग्य है।
मैं बहुत छोटा था, समझ नहीं पा रहा था कि खाना तो मां ने बनाया है, फिर इसमें ईश्वर कहां से आ गए?
शायद पिताजी ने मेरी आंखों में सवाल को पढ़ लिया था।
उन्होंने मुझसे बहुत धीरे से कहा कि खाना बहुत अच्छा बना है, इसलिए अभी तुम्हारी मां यहां आएगी तो मैं उसे भी धन्यवाद कहूंगा।
मुझे कायदे से ये बात याद नहीं रहनी चाहिए थी। पर मुझे याद रह गई।
कारण?
जिस दिन मां दम तोड़ रही थी, उससे कुछ देर पहले उसने इशारे से पिताजी को अपने पास बुलाया था और कहा था कि आप मेरे मुंह में तुलसी का एक पत्ता और थोड़ा सा पानी डाल दीजिए। पिताजी ने ऐसा ही किया था।
पिताजी ने जैसे ही मां के मुंह में चम्मच से पानी डाला, मां मुस्कुराने लगी। उसने अपने दोनों हाथ जोड़े और फुसफुसाते हुए पिताजी को धन्यवाद कहा था।
मां जा रही थी। पूरा परिवार मां के बिस्तर के सामने खड़ा था। मां के चेहरे पर ज़रा भी शिकन नहीं नहीं थी। मां जाते हुए पिताजी का धन्यवाद करते हुए गई।
धन्यवाद इतने दिन साथ निभाने के लिए। धन्यवाद कैंसर जैसी बीमारी में सेवा करने के लिए।
बहुत ग़जब का था मां का संसार।
मां की मृत्यु के बाद जीवन से मेरा मोह भंग हो चला था। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना है। मैं बहुत छोटा था। इतना छोटा कि मृत्यु का अर्थ भी ठीक से नहीं समझता था।
ऐसे में एक दिन पिताजी ने मुझे अपने पास बिठाया और कहने लगे कि तुम्हें उदास नहीं होना चाहिए। तुम्हें ज़िंदगी को समझने की कोशिश करनी चाहिए। तुम्हें यह समझना चाहिए कि तुम्हारी मां तुम्हारे साथ इतने वर्षों तक रही।
फिर पिताजी बताने लगे कि उनके पिताजी की जब मृत्यु हुई थी, तब उनकी उम्र तीन साल थी। कई चीजें ईश्वर जब तय करते हैं, तो उनकी अपनी योजना होती है। हमें ईश्वर के हर फैसले को स्वीकार करना चाहिए और उसका धन्यवाद कहना चाहिए कि वो हमारे लिए हर पल कुछ सोच रहे हैं।
मैंने पिताजी से कहा कि मां हमें छोड़ कर चली गई, इसमें धन्यवाद जैसी क्या बात हो सकती है?
मुझे नहीं याद कि पिताजी को कहां से मेरी डायरी मिल गई थी, जिसमें मैंने लिखा था कि हे भगवान मेरी मां को मृत्यु दे दो। पिताजी मुझे मेरी डायरी का वो पन्ना दिखाने लगे और उन्होंने कहा कि मां को कष्ट से मुक्ति मिली। इसके लिए भी तुम्हें धन्यवाद कहना चाहिए। इस संसार में बहुत से लोग इस बीमारी में बहुत कष्ट सहते रहते हैं। वो ईश्वर से मृत्यु की कामना करते हैं, ऐसे में मां चली गई, इसका अफसोस चाहे जितना हो, पर तुम्हें ईश्वर के प्रति आभार जताना चाहिए।
पिताजी ने जितना कुछ समझाया था, उसका निचोड़ इतना ही था कि हमें अपने भीतर धन्यवाद कहने का भाव विकसित करना चाहिए। हमें धन्यवाद कहना सीखना चाहिए।
हम स्वस्थ हैं। हमें दोनों वक्त खाना मिलता है। हमारे सिर पर छत है। हमारे पास बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जो बहुत से लोगों के पास नहीं। हमें इसके लिए धन्यवाद कहना चाहिए। हमें धन्यवाद इसलिए कहना चाहिए क्योंकि इसी संसार में बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास वो नहीं, जो हमारे पास है। इस संसार में बहुत से लोगों के पास ऐसी चीजें हैं, जो हमारे पास नहीं। इसके लिए मन में मलाल रखने की जगह जो है, उसके लिए धन्यवाद कहना सीखना अधिक महत्वपूर्ण है।
मैंने कभी पिताजी को उदास नहीं देखा।
मैंने पिताजी से एक बार पूछा था कि क्या आप कभी दुखी नहीं होते, तो पिताजी ने मुझे एक फिल्मी गीत गुनगुना कर जीवन के सत्य को समझाया था- “मुझे ग़म भी उनका अज़ीज है कि ये उन्हीं की दी हुई चीज़ है।”
पिताजी ने इस गीत को गुनगुनाते हुए मुझे समझाया था कि ज़िंदगी बहुत आसान हो जाती है, अगर हम घटने वाली घटनाओं को ईश्वरीय विधान मान लें तो। वो मुझे समझाते थे कि बहुत छोटी-छोटी बातों में भी तुम अच्छाई ढूंढ सकते हो। एक बार अच्छाई ढूंढने की आदत पड़ जाती है, तो ज़िंदगी आसान हो जाती है।
My father had a strange habit too. When he sat down to eat, he would break a morsel and move it around the plate and then keep it aside, saluting the plate and start eating. I would watch him do this and wonder why dad does this? With great courage, I asked him one day, Father, why do you salute the plate of food by setting aside a bite every day? Dad looked at me and started smiling. Then he said that I say thank you to God before eating. Thanks for the fact that they got to eat. Thanks also for the fact that they deserve to be eaten. Thanks also for the fact that the food is edible. I was very young, I could not understand that the food was prepared by my mother, then from where did God come in this? Maybe Dad had read the question in my eyes. He told me very softly that the food is very good, so if your mother comes here now, I will thank her too.
I really shouldn’t have remembered this. But I remembered. cause? The day before the mother was dying, she had called her father with a gesture and said that you put a basil leaf and some water in my mouth. Father did the same. As soon as the father poured water into the mother’s mouth with a spoon, the mother started smiling. He folded both his hands and whispered thanks to his father. Mother was leaving. The whole family was standing in front of the mother’s bed. There was not a single wrinkle on the mother’s face. The mother went away thanking the father. Thanks for being with me for so long. Thank you for serving in a disease like cancer. Mother’s world was very wonderful.
After the death of my mother, I was disillusioned with life. I couldn’t understand what to do. I was very young. So small that he did not even understand the meaning of death properly. In such a situation, one day father made me sit beside him and started saying that you should not be sad. You should try to understand life. You must understand that your mother was with you for so many years. Then father started telling that when his father died, he was three years old. When God decides many things, he has his own plan. We should accept every decision of God and thank him that he is thinking something for us every moment. I told father that mother left us and went away, what can be the thing like thanks in this? I don’t remember from where my father got my diary, in which I had written that God give death to my mother. Father started showing me that page of my diary and he said that mother got freedom from suffering. You should also say thank you for this. Many people in this world continue to suffer a lot due to this disease. They wish to die from God, in such a situation the mother has gone, no matter how much you regret it, but you should be grateful to God.
Whatever the father had explained, the essence of it was such that we should develop the feeling of saying thank you. We must learn to say thanks. We are healthy We get food both the times. We have a roof over our heads. We have many things that not many people have. We should say thank you for this. We should say thanks because there are many people in this world who do not have what we have. Many people in this world have things that we do not have. For this, it is more important to learn to say thank you than to hold grudges.
I have never seen my father sad. I once asked my father if you never feel sad, so my father explained to me the truth of life by humming a film song – “I love even his sorrow that it is his gift.” My father, while humming this song, explained to me that life becomes very easy, if we accept the events that happen as divine providence. He used to explain to me that even in the smallest things you can find the good. Once the habit of finding the good is inculcated, life becomes easy.