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नामदेव महाराष्ट्र के महान् सन्त थे। परन्तु इनके मन में सूक्ष्म अभिमान घर कर गया था कि भगवान् मेरे साथ बातें करते हैं। ये विठोबाजी के साथ बातें करते थे।
एक बार ऐसा हुआ कि महाराष्ट्र में सन्त-मण्डली एकत्रित हुई। तब मुक्ताबाई ने गोरा कुम्हार से कहा–’इन सन्तों की परीक्षा करो। इनमें पक्का कौन है ? कच्चा कौन है ?’
गोरा कुम्हार ने सभी के मस्तक पर ठीकरा मारकर परीक्षा करने का निश्चय किया। किसी भक्त ने इससे मुँह नहीं बिगाड़ा। परन्तु नामदेव के माथे पर ठीकरा मारा गया तो नामदेव ने मुँह बिगाड़ा। उनको अभिमान हुआ कि कुम्हार द्वारा घड़े की परीक्षा किये जाने की रीति से क्या मेरी परीक्षा होगी ?’
गोरा काका ने नामदेव से कहा–’सबका माथा पक्का है। एक तुम्हारा माथा कच्चा है। तुम्हारा माथा पक्का नहीं। तुमको गुरु की आवश्यकता है। तुमने अभी तक व्यापक ब्रह्म का अनुभव किया नहीं।’
नामदेव ने विठोबाजी से फरियाद की। विठोबाजी ने कहा–’गोराभक्त जो कहते हैं, वही सच है। तुम्हारा मस्तक कच्चा है। मंगलबेड़ा में मेरा एक भक्त बिसोबा खेचर है। उसके पास तू जा, वह तुझे ज्ञान देगा।
नामदेवजी बिसोबा खेचर के पास गये। उस समय बिसोबा शिवजी के मन्दिर में थे। नामदेव महादेवजी के मन्दिर में गये। वहाँ जाकर देखा कि बिसोबा खेचर शिवलिंग के ऊपर पैर रखकर सो रहे थे। बिसोबा को मालूम हो गया था कि नामदेव आ रहे हैं, इसलिये उनके ज्ञान चक्षु खोलने के लिये उन्होंने ऐसा काम किया था।
नामदेव नाराज हुए। उन्होंने बिसोबा को शिवलिंग के ऊपर से अपना पैर हटाने को कहा।
बिसोबा ने कहा–’तू ही मेरा पैर शिवलिंग के ऊपर से उठाकर किसी ऐसे स्थान पर रख, जहाँ शिवजी न हों।
नामदेव जहाँ बिसोवा का पैर रखने लगे, वहीं-वहीं शिवजी प्रकट होने लगे। समस्त मन्दिर शिवलिंगों से भर गया। नामदेव को आश्चर्य हुआ। तब बिसोबा ने कहा–
‘ गोरा काका ने जो कहा था कि तेरी हाँड़ी कच्ची है, | वह ठीक है। तुम्हें हर जगह ईश्वर दीखते नहीं। विठोबा सर्वत्र विराजे हुए हैं। तू सबमें ईश्वर को देख। भक्ति को ज्ञान के साथ भजो।’
नामदेवजी को अब सब में विठोबाजी ही दीखने लगे। वे वहाँ से वापस आकर मार्ग में एक वृक्ष के नीचे खाने बैठे।
वहाँ एक कुत्ता आया और रोटी उठाकर ले जाने लगा। अब तो नामदेवजी को कुत्ते में भी विट्ठल दीखते। रोटी रूखी थी।
नामदेवजी घी की कटोरी लेकर कुत्ते के पीछे दौड़े। पुकारकर कहने लगे–’विट्ठल! खड़े रहो, रोटी कोरी है, घी चुपड़ दूँ।’
नामदेवजी को अब सच्चा ज्ञान प्राप्त हो चुका था।
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Namdev was a great saint of Maharashtra. But there was a subtle pride in their mind that the Lord talks with me. He used to talk with gusto. Once it happened that a congregation of saints gathered in Maharashtra. Then Muktabai said to the gora potter – ‘Test these saints. Who is sure among them? Who is raw?’ The gora potter decided to test everyone by slapping them on their heads. No devotee has spoiled his face by this. But when Namdev was hit on the forehead, Namdev spoiled his face. They were proud that I would be tested by the way the potter tested the pot?’ Gora Kaka said to Namdev- ‘Everyone’s forehead is firm. Your head is raw. Your head is not fixed. You need a guru. You have not yet experienced the universal Brahman.’ Namdev pleaded with Vithobaji. Vithobaji said- ‘What the Gorabhakts say is true. Your head is raw. One of my devotees in Mangalbera is Bisoba Khechar. You go to him, he will give you knowledge. Namdevji went to Bisoba Khechar. At that time Bisoba was in Shiva’s temple. Namdev went to the temple of Mahadevji. Going there saw that Bisoba Khechar was sleeping with his feet on the Shivling. Bisoba had come to know that Namdev was coming, so he did such a thing to open his eyes of knowledge. Namdev was angry. He asked Bisoba to remove his foot from the top of the Shivling. Bisoba said- ‘You should lift my foot from the top of the Shivling and keep it at a place where there is no Shiva. Where Namdev started placing Bisova’s feet, Shivaji started appearing there. The whole temple was filled with Shivling. Namdev was surprised. Then Bisoba said- ‘ What Gora Kaka had said that your handi is raw, He is alright. You do not see God everywhere. Vithoba is seated everywhere. You see God in all. Offer devotion with knowledge.’ Now Namdevji began to see only giddiness in everyone. They came back from there and sat down to eat under a tree on the way. There a dog came and started carrying the bread. Now even Namdevji could see Vitthal in a dog. The bread was dry. Namdevji ran after the dog with a bowl of ghee. He called out and said – ‘Vitthal! Stand up, the bread is empty, let me sprinkle the ghee.’ Namdevji had now attained true knowledge.