‘बैजनाथ’   

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बैजू निहायत ही सीधा और सरल इन्सान.. सवेरे शाम जानवर चराता और बाकी का समय मंदिर की साफ-सफाई में।
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पुजारी बाबा दो महीने के लिए तीर्थ पे जा रहे थे.. बैजू को बुलाया और कहा..
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बैजू मंदिर की सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है.. और एक बात भोलेनाथ को भोग लगाये बिना खुद भोजन मत ग्रहण करना..!!
.
बैजू दूसरे दिन नहा-धो के जैसे तैसे बन पड़ा का भोजन तैयार कर भोलेनाथ के सामने थाली ले के हाजिर..
.
बाबा भोजन कर लो, बाबा टस से मस नही..
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सवेरे से शाम हो गई.. न बाबा ने भोजन ग्रहण किया और न ही बैजू नें..
.
दो तीन दिन यही सिलसिला चला..
.
चौथे दिन बैजू का धीरज टूट गया.. पास पड़ी लाठी उठाई और जकड़ दिया.. शिवलिंग पे..!!
.
तत्काल भोलेनाथ हाजिर पीठ मलते हुए.. बोलो बैजू क्या बात है..?
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चार दिन से तुम्हरे चक्कर में बिना कुछ खाए-पिए गुहार लगाय रहें हैं.. सुनाई नहीं पड़ा और लाठी जकड़ा नहीं के हाजिर..
.
चलो भोजन करो तो हमहूँ कुछ खाई..
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बेचारे भोलेनाथ पीठ मलते चुपचाप आनन्द के अतिरेक में डूबे कच्चा-पक्का जैसा भी था खाने लगे..
.
बाबा बड़ा कस के लगा है..? रुको तुम भोजन करो, कहते हुए बैजू अंदर जा के चंदन ले आ भोलेनाथ के पीठ पे लगाने लगा..
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भोजन उपरांत भोलेनाथ चलनें लगे तो बैजू बोला.. कल समय से आय जायो.. ठीक है न
.
बिलकुल बिलकुल बैजू..
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अगले दिन भोलेनाथ माता पार्वती के साथ बिराजमान..
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बाबा ये कौन हैं आपके साथ ?
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तुम्हारी अम्मा हैं माता अन्नपूर्णा।
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आओ आओ अम्मा, तुरंत बेचारा भाग के दरी ले आया बिछाया..
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अंदर से दो थाली में भोजन ले के हाजिर..
.
बैजू तुम्हारे लिए भोजन बचा है न ?
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क्या बताता.. बोला हाँ बाबा चिंता न करो बहोत है..!!
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आनन्द में डूबे अश्रुपूरित नेत्रों से भोजन खत्म किया..
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तीसरे दिन फिर माता पार्वती के साथ बिराजमान.. वो भी समय से पहले..
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बैजू हकबकाया.. बाबा आज इतनी जल्दी ?
.
माता पार्वती मुस्कुराईं, बोलीं बैजू आज खाना मै बनाऊंगी..
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लाख मना करने के बावजूद बैजू की एक न चली..
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माता पार्वती ने भोजन तैयार किया और तीन थाली में सजा के ले आईं..
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भोजन शुरू.. बैजू ने जिन्दगी में ऐसा स्वादिष्ट भोजन किया न था..!!
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वहीं भाव व प्रेम के भूखे भोलेनाथ ने पार्वती मैय्या से कहा.. शिवा..
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हाँ स्वामी..!!
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आज भोजन में आनन्द नहीं आ रहा है..
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क्युँ ? ..माता की आँखों से आँसू निकल रहे थे.. सच स्वामी न वो स्वाद है न वो रस..
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धन्य हैं माता अन्नपूर्णा जिनके नाममात्र से भोजन में मिठास बढ़ जाए उनको खुद का बनाया भोजन बे-स्वाद लग रहा था..
.
दो महीनों का भोग सामग्री और कहाँ तीन आदमी का भोजन..
.
बेचारे बैजू को अपने जानवर तक बेंच देनें पड़े..
.
किन्हीं कारणवश पुजारी बाबा बजाय दो महीनों के एक महीनें के अंदर ही तीर्थ से वापस आ गये..
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पुजारी बाबा ने बैजू को बुलाया और कहा
बैजू.. भोलेनाथ को समय से भोग लगाता था न..?
.
हाँ पुजारी बाबा, पर बाबा तुम तो कहत रहयो के उ अकले आयेगें..
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पर ऊ तो माता अन्नपूर्णा के साथे आवत रहेंन, और दुई नो जनें कस के भोजनव करत रहेंन..
.
हमका आपन जानवर तक बेचय के पड़ा..
.
पुजारी बाबा अपलक बैजू को निहार रहे धे.. जानते थे के ए झूठ बोल नहीं सकता..
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तो क्या भोलेनाथ माता पार्वती के साथ आते धे..
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बैजू आज तुम फिर भोग लगाओ देखें कौन कौन आता है..?
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बैजू बेचारा समय से भोजन ले के हाजिर.. बुलाना शुरू..
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काहे को भोलेनाथ आयें..!!
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बुलाते बुलाते थक गया पर न भोलेनाथ को आना था न वो आये..
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बाबा बाबा लाठी न उठाऊंगा चाहे तुम आओ या न आओ.. लाठी न उठाऊंगा.. बाबा लाठी न उठाऊंगा..
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बस शिवलिंग पकड़ के रोए जा रहा था और यही बोल रहा था..
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बैजू.. आँखें खोलो बैजू.. हम आ गये.. आँखें खोलो बैजू..
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सामने ही माता पार्वती और भोलेनाथ बिराजमान थे.. लिपट गया चरणों में..
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माँ-बाबा जो आज तुम न आते तो जान दे देता मै अपनी..
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भोलेनाथ ने बैजू को ह्रदय से लगाया..
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बोले, बैजू बेमोल बिक गया तेरे हाथों में..
.
सुन आज से मुझ से पहले लोग तेरा नाम लेगें फिर मेरा.. आगे बैजू पीछे नाथ..   ‘बैजनाथ’         



बैजू निहायत ही सीधा और सरल इन्सान.. सवेरे शाम जानवर चराता और बाकी का समय मंदिर की साफ-सफाई में। . पुजारी बाबा दो महीने के लिए तीर्थ पे जा रहे थे.. बैजू को बुलाया और कहा.. . बैजू मंदिर की सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है.. और एक बात भोलेनाथ को भोग लगाये बिना खुद भोजन मत ग्रहण करना..!! . बैजू दूसरे दिन नहा-धो के जैसे तैसे बन पड़ा का भोजन तैयार कर भोलेनाथ के सामने थाली ले के हाजिर.. . बाबा भोजन कर लो, बाबा टस से मस नही.. . सवेरे से शाम हो गई.. न बाबा ने भोजन ग्रहण किया और न ही बैजू नें.. . दो तीन दिन यही सिलसिला चला.. . चौथे दिन बैजू का धीरज टूट गया.. पास पड़ी लाठी उठाई और जकड़ दिया.. शिवलिंग पे..!! . तत्काल भोलेनाथ हाजिर पीठ मलते हुए.. बोलो बैजू क्या बात है..? . चार दिन से तुम्हरे चक्कर में बिना कुछ खाए-पिए गुहार लगाय रहें हैं.. सुनाई नहीं पड़ा और लाठी जकड़ा नहीं के हाजिर.. . चलो भोजन करो तो हमहूँ कुछ खाई.. . बेचारे भोलेनाथ पीठ मलते चुपचाप आनन्द के अतिरेक में डूबे कच्चा-पक्का जैसा भी था खाने लगे.. . बाबा बड़ा कस के लगा है..? रुको तुम भोजन करो, कहते हुए बैजू अंदर जा के चंदन ले आ भोलेनाथ के पीठ पे लगाने लगा.. . भोजन उपरांत भोलेनाथ चलनें लगे तो बैजू बोला.. कल समय से आय जायो.. ठीक है न . बिलकुल बिलकुल बैजू.. . अगले दिन भोलेनाथ माता पार्वती के साथ बिराजमान.. . बाबा ये कौन हैं आपके साथ ? . तुम्हारी अम्मा हैं माता अन्नपूर्णा। . आओ आओ अम्मा, तुरंत बेचारा भाग के दरी ले आया बिछाया.. . अंदर से दो थाली में भोजन ले के हाजिर.. . बैजू तुम्हारे लिए भोजन बचा है न ? . क्या बताता.. बोला हाँ बाबा चिंता न करो बहोत है..!! . आनन्द में डूबे अश्रुपूरित नेत्रों से भोजन खत्म किया.. . तीसरे दिन फिर माता पार्वती के साथ बिराजमान.. वो भी समय से पहले.. . बैजू हकबकाया.. बाबा आज इतनी जल्दी ? . माता पार्वती मुस्कुराईं, बोलीं बैजू आज खाना मै बनाऊंगी.. . लाख मना करने के बावजूद बैजू की एक न चली.. . माता पार्वती ने भोजन तैयार किया और तीन थाली में सजा के ले आईं.. . भोजन शुरू.. बैजू ने जिन्दगी में ऐसा स्वादिष्ट भोजन किया न था..!! . वहीं भाव व प्रेम के भूखे भोलेनाथ ने पार्वती मैय्या से कहा.. शिवा.. . हाँ स्वामी..!! . आज भोजन में आनन्द नहीं आ रहा है.. . क्युँ ? ..माता की आँखों से आँसू निकल रहे थे.. सच स्वामी न वो स्वाद है न वो रस.. . धन्य हैं माता अन्नपूर्णा जिनके नाममात्र से भोजन में मिठास बढ़ जाए उनको खुद का बनाया भोजन बे-स्वाद लग रहा था.. . दो महीनों का भोग सामग्री और कहाँ तीन आदमी का भोजन.. . बेचारे बैजू को अपने जानवर तक बेंच देनें पड़े.. . किन्हीं कारणवश पुजारी बाबा बजाय दो महीनों के एक महीनें के अंदर ही तीर्थ से वापस आ गये.. . पुजारी बाबा ने बैजू को बुलाया और कहा बैजू.. भोलेनाथ को समय से भोग लगाता था न..? . हाँ पुजारी बाबा, पर बाबा तुम तो कहत रहयो के उ अकले आयेगें.. . पर ऊ तो माता अन्नपूर्णा के साथे आवत रहेंन, और दुई नो जनें कस के भोजनव करत रहेंन.. . हमका आपन जानवर तक बेचय के पड़ा.. . पुजारी बाबा अपलक बैजू को निहार रहे धे.. जानते थे के ए झूठ बोल नहीं सकता.. . तो क्या भोलेनाथ माता पार्वती के साथ आते धे.. . बैजू आज तुम फिर भोग लगाओ देखें कौन कौन आता है..? . बैजू बेचारा समय से भोजन ले के हाजिर.. बुलाना शुरू.. . काहे को भोलेनाथ आयें..!! . बुलाते बुलाते थक गया पर न भोलेनाथ को आना था न वो आये.. . बाबा बाबा लाठी न उठाऊंगा चाहे तुम आओ या न आओ.. लाठी न उठाऊंगा.. बाबा लाठी न उठाऊंगा.. . बस शिवलिंग पकड़ के रोए जा रहा था और यही बोल रहा था.. . बैजू.. आँखें खोलो बैजू.. हम आ गये.. आँखें खोलो बैजू.. . सामने ही माता पार्वती और भोलेनाथ बिराजमान थे.. लिपट गया चरणों में.. . माँ-बाबा जो आज तुम न आते तो जान दे देता मै अपनी.. . भोलेनाथ ने बैजू को ह्रदय से लगाया.. . बोले, बैजू बेमोल बिक गया तेरे हाथों में.. . सुन आज से मुझ से पहले लोग तेरा नाम लेगें फिर मेरा.. आगे बैजू पीछे नाथ..   ‘बैजनाथ’

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