ठहरने का अभ्यास

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कुछ समय हमें ठहरना आ जाए। जब हम ठहरने का अभ्यास करेंगे तब वह दिन दूर नहीं हमे भगवान से मिलन का अहसास भी होने लगेगा।

ठहरना क्या है। हम भजन कीर्तन करते हैं ग्रथ पढते है। हम कुछ विचार पर ठहरते नहीं बस करते जाते हैं हम भगवान के भाव पर, एक नाम, एक रूप पर नजर को टिकाना ही ठहरना है जब हम वर्षों एक ही भाव करते रहेंगे तब वह हमारी भक्ति और समर्पण भाव है। जब मन ही मन भगवान की प्रार्थना करने लगेगे तब बाहरी भाव खत्म हो जाएगे क्योंकि उस प्रभु का चिन्तन करते हुए तो हमनें भगवान से जैसे मां अपने बच्चे से बात करती है वैसे ही करने की आदत डाल ली एक बार नहीं शाम सो सो बार प्रभु को दिल में बिठाया फिर अब मेरे स्वामी तुम्हे बाहर कंहा ढुढु तु अन्दर बैठा है

मेरे स्वामी मेरे मालिक भगवान मेरे प्रभु प्राण नाथ मेरे परमात्मा मेरे दिल में तु समा जा। तु मुझमें भी है और और जगत के कण-कण में तेरा ही वास है तु घङी घङी दिल के तार झंकारता है। जय श्री राम अनीता गर्ग



Let us come to stay for some time. When we practice staying, then that day is not far away, we will also start feeling the union with God.

What is a stay? We chant hymns and read texts. We do not stop on some thought, we just keep on doing it, we have to stay focused on the feeling of God, one name, one form, when we keep doing the same feeling for years, then that is our devotion and dedication. When we start praying to God in our mind, then the external feelings will end because while thinking of that Lord, we have made a habit of doing the same thing to God as a mother talks to her child, not once in the evening and so many times to the Lord. Placed in the heart then now my lord find you outside where are you sitting inside

My lord, my master, my lord, my lord, Pran Nath, my God, you be absorbed in my heart. You are in me too and you are your abode in every particle of the world. Jai Shri Ram Anita Garg

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