श्री_नाथजी एक भाव विभोर कथा

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श्रीनाथजी एक दिन भोर में अपने प्यारे कुम्भना के साथ गाँव के चौपाल पर बैठे थे ,
कितना अद्भुत दृश्य है – समस्त जगत का बाप एक नन्हें बालक की भांति अपने प्रेमिभक्त कुम्भनदास की गोदी में बैठ क्रीड़ा कर रहा है।
तभी निकट से बृज की एक भोली ग्वालन निकट से निकली,
श्रीनाथजी ने गुझरी को आवाज दी ईधर आ तो गुझरी ने कहा बाबा आपको प्यास लगी है क्या
तो श्रीनाथजी ने कहा मुझे नही मेरे कुभंना को लगी है
श्रीनाथजी कुभंनदास को प्यार से कुभंना कहते।
कुभंनदास जी कह रहे है – श्रीनाथजी मुझे प्यास नही लगी है
तो श्रीनाथजी ने गुझरी से कहा- इसको छाछ पीला जैसे ही गुझरी ने कुभंनदास जी को छाछ पिलिइ पीछे से श्रीनाथजी ने उसकी पोटली मे से एक रोटी निकाली और कुभंनदास जी ने देख लिया।
श्रीनाथजी ने गुझरी से कहा अब तु जा तो भोली ग्वालन बाबा को छाछ पिला कर अपने कार्य को चली गयी।

गुझरी के जाते ही कुंभनदास जी ने श्रीनाथ जी से कहा – श्रीजी आपकी ये चोरी की आदत गई नहीं
तो श्रीनाथजी ने आधी रोटी कुभंना को दी और आधी रोटी आप ने ली
जैसे ही कुभंनदास जी ने ली तो श्रीनाथजी ने कहा अरे कुभंना तू चख तो सही तो कुभंनदास जी ने एक नीवाला लिया
और कहने लगे बाबा ये कैसा स्वाद है
तो श्रीनाथजी कह रहे है की ये गुझरी जब रोटी बनाती तो मेरा नाम ले ले कर बेलती है
तो इसमें मेरे नाम की मीठास भरी हैं …

बाबा अब तू ही बतला इस प्रेमभरी रोटी का आरोगे बगेर में कैसे रह सकू हु।
ये भोली गुझरी लज्जा वश श्रीमंदिर में मुझे ये सुखी रोटी पवाने तो कभी आयेगी नही इसीलिए बाबा मेने खुद ही चुरा ली। "श्री लाड़ली लाल जू विजयते" "



One day Shrinathji was sitting at the village chaupal with his beloved Kumbhana. What a wonderful sight – the Father of the whole world is playing like a small child sitting in the lap of his beloved devotee Kumbhandas. Just then a naive cowherd of Brij came out from near, Shrinathji gave voice to Gujri, come here, Gujri said, Baba, are you thirsty? So Shrinathji said, not me, but my Kubbhana has felt it. Shrinathji affectionately called Kubhandas as Kubhanna. Kubhandas ji is saying – Shrinathji, I am not thirsty. So Shrinathji said to Gujri- As soon as Gujri gave buttermilk to Kubhandas ji, Shrinathji took out a roti from his bundle and Kubhandas ji saw it. Shrinathji said to Gujri, now you go and go to your work after giving buttermilk to the innocent cowherd Baba.

As soon as Gujri left, Kumbhandas ji said to Shrinath ji – Shreeji, this habit of your theft has not gone. So Shrinathji gave half the bread to Kubhana and you took half the bread. As soon as Kubhandas ji took it, Shrinathji said, Hey Kubhana, you tasted it, so Kubhandas ji took a morsel. And started saying baba what kind of taste is this So Shrinathji is saying that when this Gujri makes roti, it takes my name and rolls it. So my name is full of sweetness in it…

Baba, now only you tell me how can I live without this loving bread. Because of this innocent shame, I would never come to Srimandir to get this happy bread, that’s why I stole it myself. “Shri Ladli Lal Ju Vijayate”

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