सुकून भरी खुशिया

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गौरी अपनी मनपसंद गारमेंट्स की दुकान से कुछ कपडे लेने आई थी तभी एक पुरानी सी पसीने से तरबतर कमीज पहने हुए व्यक्ति दुकान में घुसा ….
राम राम भैयाजी …..
राम राम भाई …कहिए कया सेवा करुं दुकान के मालिक मोहनबाबू ने उससे पूछा….
भैयाजी …वो एक बढिया सी फाक्र दिखा दीजिए हमारी बेटी के लिए ….आज उसका जन्मदिन है …
अच्छा…. आपको और बिटिया को शुभकामनाएं ….कितने बरस की है
जी पांच बरस की …..
रामू ….भाईसाहब को बढिया सी फाक्र दिखाओ …
जी बाऊजी ….इधर आइए साहब ….ये देखिए …लाल कलर मे …ये और बढिया है इसपर खूबसूरत डिजाइन है पिंक कलर मे …बच्चों को बहुत पसंद आती हैं वो दीदी जी भी अपनी बेटी के लिए बिल्कुल ऐसी ही लेकर गई है …हे ना दीदी …गौरी की देखकर मुस्कुराते हुए रामू बोला …
हां …बिल्कुल ऐसी ही है मेरी आराध्या तो खुशी से उछल पडी थी ये ड्रेस देखकर ….वो भी पांच साल की है …हंसते हुए गौरी बोली …
अच्छा ….ठीक है भैया इसे ही पैक कर दीजिए कितने पैसा हुए …
ग्यारह सौ ….रामू बोला …
ग्यारह सौ….बुदबुदाते हुए वह थोड़ा सा सोच में पड गया…
कया हुआ नहीं है ….अरे भैया जब जेब मे पैसा हो तब ले जाना ….रामू बोला
वह व्यक्ति मुरझाए चेहरा लिए बाहर की ओर जाने लगा तो मोहन बाबू ने बाहर की ओर देखा एक साइकिल रिक्शा खडा हुआ था उसी व्यक्ति का था शायद इसलिए उसकी कमीज पसीने से भीगी हुई थी …
अरे रुकिए भैयाजी ….रामू भूल गया कया ….वो फाक्र पर तो डिस्काउंट है ….
अचानक उस व्यक्ति ने मुडकर मोहनबाबू की ओर देखा …
हां ….लगता है मे तुझे बताना भूल गया इधर ला ….रामू ने हैरानी से फाक्र दुकान मालिक मोहनबाबू की ओर बढाई ….
भैयाजी ….डिस्काउंट से ये केवल तीन सौ रुपये की है …
कया आप सच कह रहे है भैयाजी ….भैयाजी पैक कर दीजिए ….वह मुसकरा कर बोला
रामू पैक करो और साहब को वो चाकलेट का डिब्बा भी देना जो मैने वहां लाकर रखा है…
जी मगर वो तो….
हां वो हमारे ग्राहकों के लिए ही है दो …..
जी ….रामू फिर से हैरानी भरी नजरों से मोहनबाबू को देखकर बोला….
उधर दूसरे कपडों को देख रही गौरी भी थोड़ा नाराज सी थी कयोंकि उसे तो कोई डिस्काउंट नहीं दिया था मोहनभाई ने और ना ही कोई चाकलेट गिफ्ट …पूरे ग्यारह सौ रुपये लिए थे…..
उस व्यक्ति ने खुशी खुशी तीन सौ रुपये दिए और बाहर खडा रिक्शा लिए चला गया ….
उसके जाते ही इससे पहले रामू कुछ पूछे गौरी बिफर पडी….ये सब कया है मोहनभाई…. मे आपकी परमानेंट कस्टमर हूं डिस्काउंट छोडिये कोई गिफ्ट नहीं दिया आपने और उसे चाकलेट का डिब्बा वाह…..
रामू ने भी हां मे हां मिलाई ….
बहनजी आपने शायद देखा नहीं वो एक रिक्शा चालक था जाने कैसे मेहनत करके वो अपना और अपने परिवार का पेट भरता होगा आपने उसकी आँखों में बेटी के जन्मदिन पर लेनेवाली फाक्र की उत्सुकता नहीं देखी ….ये एक पिता महसूस कर सकता है ….पता नहीं कैसे ये तीन सौ रुपये जमा किए होगे उसने ….वैसे ये देखिए ….ये उस स्टाक की असल कीमत है …जोकि लगभग साढे नौ सौ रुपए की खरीद है उसपर ये दुकान खर्च वगैरह मिलाकर कुल दस सौ पचास रुपये की होती हैं इसलिए वो आपको ग्यारह सौ रुपये में दी थी ….और वो चाकलेट का डिब्बा मैने अपनी बेटी के लिए लिया था मगर जब मैने उस व्यक्ति की माली हालत देखी तो मैने वो डिब्बा उसे दे दिया ताकि वह खुशियों मे उसका मुंह भी मीठा करवा सके….
मगर ये तो आपके नुकसान का सौदा साबित हुआ….
जी नहीं ….इस सौदे में भी मैने फायदा ही पाया….
वो कैसे…. इसबार गौरी के साथ साथ रामू भी बोला…..
किसीको खुशियां देकर अनमोल सुकून भरी खुशियां कमाकर …..कहकर मोहनबाबू भीगी हुई पलकों को साफ करने लगे …..
इसबार मोहनबाबू के साथ साथ गौरी और रामू भी मुस्कुरा रहे थे…



गौरी अपनी मनपसंद गारमेंट्स की दुकान से कुछ कपडे लेने आई थी तभी एक पुरानी सी पसीने से तरबतर कमीज पहने हुए व्यक्ति दुकान में घुसा …. राम राम भैयाजी ….. राम राम भाई …कहिए कया सेवा करुं दुकान के मालिक मोहनबाबू ने उससे पूछा…. भैयाजी …वो एक बढिया सी फाक्र दिखा दीजिए हमारी बेटी के लिए ….आज उसका जन्मदिन है … अच्छा…. आपको और बिटिया को शुभकामनाएं ….कितने बरस की है जी पांच बरस की ….. रामू ….भाईसाहब को बढिया सी फाक्र दिखाओ … जी बाऊजी ….इधर आइए साहब ….ये देखिए …लाल कलर मे …ये और बढिया है इसपर खूबसूरत डिजाइन है पिंक कलर मे …बच्चों को बहुत पसंद आती हैं वो दीदी जी भी अपनी बेटी के लिए बिल्कुल ऐसी ही लेकर गई है …हे ना दीदी …गौरी की देखकर मुस्कुराते हुए रामू बोला … हां …बिल्कुल ऐसी ही है मेरी आराध्या तो खुशी से उछल पडी थी ये ड्रेस देखकर ….वो भी पांच साल की है …हंसते हुए गौरी बोली … अच्छा ….ठीक है भैया इसे ही पैक कर दीजिए कितने पैसा हुए … ग्यारह सौ ….रामू बोला … ग्यारह सौ….बुदबुदाते हुए वह थोड़ा सा सोच में पड गया… कया हुआ नहीं है ….अरे भैया जब जेब मे पैसा हो तब ले जाना ….रामू बोला वह व्यक्ति मुरझाए चेहरा लिए बाहर की ओर जाने लगा तो मोहन बाबू ने बाहर की ओर देखा एक साइकिल रिक्शा खडा हुआ था उसी व्यक्ति का था शायद इसलिए उसकी कमीज पसीने से भीगी हुई थी … अरे रुकिए भैयाजी ….रामू भूल गया कया ….वो फाक्र पर तो डिस्काउंट है …. अचानक उस व्यक्ति ने मुडकर मोहनबाबू की ओर देखा … हां ….लगता है मे तुझे बताना भूल गया इधर ला ….रामू ने हैरानी से फाक्र दुकान मालिक मोहनबाबू की ओर बढाई …. भैयाजी ….डिस्काउंट से ये केवल तीन सौ रुपये की है … कया आप सच कह रहे है भैयाजी ….भैयाजी पैक कर दीजिए ….वह मुसकरा कर बोला रामू पैक करो और साहब को वो चाकलेट का डिब्बा भी देना जो मैने वहां लाकर रखा है… जी मगर वो तो…. हां वो हमारे ग्राहकों के लिए ही है दो ….. जी ….रामू फिर से हैरानी भरी नजरों से मोहनबाबू को देखकर बोला…. उधर दूसरे कपडों को देख रही गौरी भी थोड़ा नाराज सी थी कयोंकि उसे तो कोई डिस्काउंट नहीं दिया था मोहनभाई ने और ना ही कोई चाकलेट गिफ्ट …पूरे ग्यारह सौ रुपये लिए थे….. उस व्यक्ति ने खुशी खुशी तीन सौ रुपये दिए और बाहर खडा रिक्शा लिए चला गया …. उसके जाते ही इससे पहले रामू कुछ पूछे गौरी बिफर पडी….ये सब कया है मोहनभाई…. मे आपकी परमानेंट कस्टमर हूं डिस्काउंट छोडिये कोई गिफ्ट नहीं दिया आपने और उसे चाकलेट का डिब्बा वाह….. रामू ने भी हां मे हां मिलाई …. बहनजी आपने शायद देखा नहीं वो एक रिक्शा चालक था जाने कैसे मेहनत करके वो अपना और अपने परिवार का पेट भरता होगा आपने उसकी आँखों में बेटी के जन्मदिन पर लेनेवाली फाक्र की उत्सुकता नहीं देखी ….ये एक पिता महसूस कर सकता है ….पता नहीं कैसे ये तीन सौ रुपये जमा किए होगे उसने ….वैसे ये देखिए ….ये उस स्टाक की असल कीमत है …जोकि लगभग साढे नौ सौ रुपए की खरीद है उसपर ये दुकान खर्च वगैरह मिलाकर कुल दस सौ पचास रुपये की होती हैं इसलिए वो आपको ग्यारह सौ रुपये में दी थी ….और वो चाकलेट का डिब्बा मैने अपनी बेटी के लिए लिया था मगर जब मैने उस व्यक्ति की माली हालत देखी तो मैने वो डिब्बा उसे दे दिया ताकि वह खुशियों मे उसका मुंह भी मीठा करवा सके…. मगर ये तो आपके नुकसान का सौदा साबित हुआ…. जी नहीं ….इस सौदे में भी मैने फायदा ही पाया…. वो कैसे…. इसबार गौरी के साथ साथ रामू भी बोला….. किसीको खुशियां देकर अनमोल सुकून भरी खुशियां कमाकर …..कहकर मोहनबाबू भीगी हुई पलकों को साफ करने लगे ….. इसबार मोहनबाबू के साथ साथ गौरी और रामू भी मुस्कुरा रहे थे…

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