हे परम पिता परमात्मा हे भगवान नाथ हे राम जी मै भगवान की आरती करने लगती हूं। तुम मुस्कुरा कर ह्दय मे आनंद भर देते हो। दिल से चरणोंमें नतमस्तक हो जाती हूं ।मैं स्वामी भगवान नाथ के चरणों का स्पर्श इस भाव से करती हूं कि तुम प्रत्यक्ष मुझ दासी के सामने खङे हो आनंद के वशीभूत हो जाती हूं।और वास्तव में ही तुम शरीर रूप में खङे हुए दिखाई देते हो। चरणों में प्राण का होना नित्य प्रति दिखता है आरती कर रही हूं दिल सम्भाले नहीं सम्भलता आरती के शब्द भी नहीं बोल पाती हूं।दिल की दशा के लिए शब्द छोटे पङ जाते हैं। अन्तर्मन से नमन और वन्दन करती हाथ से आरती की प्लेट नहीं सम्भल पाती है। आरती करते करते भाव की गहराई बन जाती है तब दिल भगवान राम को प्रार्थना करता है कि हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ तुम कुछ समय इस दिल में निवास करो।प्रार्थना जितनी गहराती जाएगी। वाणी में ओज समा जाएगा। प्रार्थना करते ही धङक की आवाज के साथ तुम दिल में समा जाते हो मेरे भगवान नाथ के दिल में आते ही रोम रोम में उल्लास छा जाता है। आनन्द की वर्षा होती है। भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ इस आनंद को अपने में समेट लो ।क्योंकि मैं एक गृहस्थ हूं मुझे घर की जिम्मेदारी निभानी है ये आनंद यदि कुछ पल ठहर गया तब मैं इस गृहस्थी को कैसे सम्भालुगा। मेरे भगवान भुखे होंगे उन्हें भोग कैसे लगाऊंगा।भक्त भगवान की अन्तर्मन से प्रार्थना करता है बाहरी शरीर कर्तव्य कर्म करता है भक्त और भगवान एक रूप हो जाते हैं तब भगवान मन्दिर छोड़कर भक्त के साथ चल पङते हैं। मै अन्तर्मन से राम कृष्ण हरि, कभी शीश नवाती अन्तर्मन से प्रणाम करती तुम्हें भजते हुए किचन में आ जाती हूँ। किचन में देखती हूँ स्वामी भगवान् नाथ किचन में आए हैं। दिल की दशा को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती हूँ। दिल थामे नहीं थमता है। भक्त भगवान को बैठ कर भज भी नहीं पाता है क्योंकि कर्तव्य और कर्म को छोड़ नहीं सकता है मै जानती हूँ कि देखने मात्र के लिए भोजन पति और बच्चों के लिए बनता है वास्तव में तो स्वामी के भाव की गहराई है। जब किचन में कार्य करती तब रोम रोम से राम राम राम जय श्री राम की ध्वनि बजने लगी दिल में आनद की लहर छा गई। कार्य करते हुए हर चीज तुम दिखाई देते। अन्दर से बोलते कण कण में मैं बैठा हूं हे प्रभु प्राण नाथ मै कुछ समझ नहीं पाती हूं। फिर से अन्तर्मन से प्रार्थना करती हे भगवान नाथ ये लीला ऐसे ही चलती रहे तुम आते रहो मै पुकारती रहू हे नाथ जीवन के हर पल तुम्हारा ध्यान धरती रहूँ।
जय श्री राम अनीता गर्ग
O Supreme Father, Supreme Soul, Oh Lord Nath, Oh Ram, I start worshiping God. You smile and fill your heart with joy. I bow down at the feet of my heart. I touch the feet of Swami Bhagwan Nath with the feeling that you are standing directly in front of my maidservant, I am engrossed in bliss. And in fact you are seen standing in body form. . The presence of prana in the feet is seen every day. Aarti’s plate is not able to handle with the hands that are bowing and bowing from the heart. While doing the aarti, the depth of the feeling is created, then the heart prays to Lord Rama that O my lord Lord Nath, you should reside in this heart for some time. The deeper the prayer goes. The voice will be absorbed. As soon as you pray, you get absorbed in the heart with the sound of the beat, in the heart of my lord Nath, there is joy in Rome and Rome. It rains joy. The devotee prays to God that O my lord Lord Nath, take this joy in yourself. Because I am a householder, I have to take care of the house. My Lord will be hungry, how will I offer them food. The devotee prays to the Lord within the inner body, the outer body performs the duties, the devotee and the Lord become one form, then the Lord leaves the temple and walks with the devotee. I come to the kitchen, praying to you from my heart, Rama Krishna Hari. I see in the kitchen that Swami Bhagwan Nath has come to the kitchen. I cannot express my heart condition in words. Heart doesn’t stop. The devotee is not able to worship the Lord even sitting down because he cannot give up duty and action, I know that food is made for husband and children just to see, in fact, there is a depth of Swami’s feeling. When working in the kitchen, the sound of Ram Ram Ram Jai Shri Ram started playing from Rome Rome, there was a wave of joy in the heart. You can see everything while working. I am sitting in every particle speaking from inside, O Lord Pran Nath, I cannot understand anything. Again praying to my heart, Lord Nath, keep this leela going on like this, you keep on coming, I keep calling, O Nath, may your attention be on the earth every moment of life. Jai Shri Ram Anita Garg