प्राणी के पास दिल और मन होता है। मन हर समय उठक पटक करता है। दिल मे प्रेम होता है। दिल किसी को अपना बनाना चाहता है प्रेम करना चाहता है। लेकिन संसार के सम्बन्ध प्रेम पर नहीं लेन देन पर टिके होते हैं। संसार से दिल तृप्त नहीं होता है दिल में मिलन की तड़प बन जाती है दिल का संबंध आत्मा से होता है आत्मा ही परमात्मा का रूप है हम भगवान को भज कर अपनी आत्मा को तृप्त करते हैं अपने दिल में उठे हुए अरमानों को नयी दिशा देते हैं।
भक्ति का अर्थ है अपने अन्तर्मन में उठ रहे भावों को अपने आप में पूर्ण करना है। जब हम भगवान की स्तुति का गान करते हैं तब वे भाव हमारे दिल में शान्ति और प्रेम की उत्पत्ति करते हैं। उन भावों से हमारी आत्मा में प्रेम भाव प्रकट होता है।
यह किसी अन्य के लिए नहीं अपनी आत्मा अपने दिल को नयनों की प्यास बुझाते है। हम संसार से सम्बंधों से ऊपर उठ जाते हैं। मन बाहर घुमता है। मन को जब बाहर से शान्ति नहीं मिलती तब अन्तर्मन में झांकता है ।अन्तर्मन प्रेम का सागर है सागर में जितनी गहरी डुबकी लगाते हैं उतने ही मोतियों से झोली भर जाती है एक दिन प्रभु प्रेम से सराबोर होकर जगत को प्रेम से सिंचता है। हमारे अन्दर जन्म जन्मानतर से जमी वासनाओं की आग हृदय के प्रेम से शान्त हो जाती है। परमात्मा का नाम धन से बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है। जय श्री राम जय श्री राम राम राम राम राम राम राम जय श्री राधे कृष्ण हरि और मुरारी भगवान को भजते रहे भगवान हमारे मार्ग के रक्षक बन जाऐगे। अ प्राणी तु भगवान पर दिल टिका दे। भगवान तेरी आत्मा का प्रतिबिंब है। जय श्री राम अनीता गर्ग
One Response
It’s hard to find educated people on this topic, but you seem like you know what you’re talking about! Thanks