आत्मा अन्तर्मन का विषय है परमात्मा सब में है।कण-कण में है वह परमात्मा हमारे जल्दी से पकङाई में इसलिए नहीं आता है। माया हमे नजदीक जाने नहीं देती है अपनी इन्द्रियों को अन्तर्मुखी बनाने के लिए आत्मा का चिन्तन करना है। आत्मा पर माया का प्रभाव नही पङता है। आत्मा शुद्ध चेतन समदर्शी प्रकाश रूप हैं हमारे अन्तर्मन में आत्मा का दीपक प्रज्वलित है। आत्मा का चिन्तन ईश्वर का चिन्तन हैं। हमे अपनी आत्मा को बार बार यह समझाना है कि अ आत्मा ये शरीर तेरा घर नहीं है अ आत्मा तुझे ईश्वर के साथ आत्म साक्षात्कार करना है। आत्म चिन्तन करते हुए कर्म करते हैं तब शरीर नहीं है। भक्त यह भी नहीं जानता है मै कोन हूँ। मै मर जाता है तब पुरण परमात्मा है। धीरे धीरे अन्तर्मन से आवाज आने लगती है मै शरीर नहीं हूँ। ऐसे में भक्त भोजन करते हुए भी भोजन नहीं कर रहा है। क्योंकि उसकी दृष्टि अपने लक्ष्य पर टिकी हुई है। वह बाहर आया ही नहीं। जय श्री राम
अनीता गर्ग
