मेरा परमात्मा भगवान् कैसा है।

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‌मेरा परम पिता परमात्मा मेंरा जगत जगदीश प्रकाश का पूंज है।जिसमें सम्पूर्ण जगत समाया हुआ है।परम पिता परमात्मा कोई शरीर नहीं है।  भगवान् स्वामी नाथ में सब धर्म वेद  शास्त्र और ग्रंथों का ज्ञान हैं। मेरे परम पिता परमात्मा में राम जी का कर्तव्य निष्ठा आज्ञा पालन त्याग और मर्यादा समाई हुई है। परमेशवर स्वामी भगवान् नाथ में भगवान् कृष्ण का प्रेम स्तुति और समर्पण समाया है। भगवान् शिव का ध्यान समाया है। माता की शक्ति समायी हूई है। परमेशवर स्वामी भगवान् नाथ में गुरू का सिमरन मानो गुरु ही है। भगवान् अनेक रूपों में दिखते हुए भी एक है। परम पिता परमात्मा ज्ञान रुप है। प्रेम का सागर है। परमेशवर स्वामी भगवान् नाथ में भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, श्रद्धा, दया धर्म साधना और योग समाया हुआ है।भगवान सत् चित् आनंदमय है जीवन जगत की ज्योति हैं। भगवान मे हम सब निवास करते हैं। ईश्वर सबका मालिक हैं। ईश्वर की कृपा पर ही भक्त भक्ति कर सकता है। ईश्वर की कृपा से भक्त मे प्रभु प्राण नाथ के प्रेम की जागृति होती है भक्त पल पल भगवान नाथ श्री हरी मे समा जाना चाहता है। मेरे परमेशवर स्वामी तृप्ति त्याग और शान्ति रुप में भक्त मे समा जाते हैं।हम है पुतले मिट्टी के हम में प्राण प्रभु प्राण नाथ के है आत्मा का परमात्मा से मिलन भक्ति की पराकाष्ठा है। जय श्री राम अनीता गर्ग



In my Supreme Father, the Supreme Soul, my world is a bundle of Jagdish Prakash. In which the whole world is contained. The Supreme Father, the Supreme Soul, is not a body. Lord Swaminath has the knowledge of all religions, Vedas, scriptures and scriptures. In my Supreme Father, the Supreme Soul, the duty, devotion, obedience, renunciation and dignity of Ram ji is enshrined. Lord Krishna’s love, praise and dedication is contained in Parameshwar Swami Bhagwan Nath. Lord Shiva’s meditation is absorbed. The power of the mother is contained. The simran of the Guru in Parameshwar Swami Bhagwan Nath is as if the Guru is the same. God, though appearing in many forms, is one. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the form of knowledge. It is an ocean of love. Devotion, knowledge, dispassion, reverence, mercy, dharma sadhna and yoga are contained in Parameshwar Swami Bhagwan Nath. We all reside in God. God is the master of all. Devotee can do bhakti only by the grace of God. By the grace of God, the love of Lord Pran Nath is awakened in the devotee, the devotee wants to be absorbed in Lord Nath Shri Hari every moment. My Supreme Lord is absorbed in the devotee in the form of gratification, renunciation and peace. Jai Shri Ram Anita Garg

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