प्रभु श्रीराम की गिलहरी पर कृपा

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भगवान जब किसी जीव पर कृपा करते हैं तो वे यह नहीं देखते कि उसने कितना जप, तप, पूजा-पाठ या यज्ञ-हवन (साधन) किया है । किसी भी मनुष्य का बड़े-से-बड़ा जप-तप परमात्मा को कृपा करने के लिए विवश नहीं कर सकता है और न ही वह भगवान की प्राप्ति का मूल्य ही हो सकता है।। भगवान तो करुणा के सागर हैं और भाव के भूखे हैं । वे तो केवल जीव के अंतर्मन के प्रेम और सच्ची श्रद्धा को देखते हैं। भगवान की कृपा होने पर ही उनकी प्राप्ति होती है।

श्री राम सेतु (समुद्र पर पुल) बनाने के समय प्रभु श्रीराम की गिलहरी पर कृपा के प्रसंग से यह बात सिद्ध हो जाती है-

गिलहरी जैसे क्षुद्र जीव पर भगवान राम की कृपा।।।

जब लंका-विजय के लिए नल-नील समुद्र पर सेतु (पुल) बनाने में लगे थे और वानर तथा भालुओं का अपार समूह पर्वत-खण्ड और वृक्षों को ला-लाकर उन्हें दे रहा था; उसी समय एक नन्हीं-सी गिलहरी भी मर्यादा-पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के कार्य में सहायता करने के लिए वृक्ष से उतर कर वहां आ गई।

वह छोटी-सी गिलहरी न तो वृक्षों की शाखाएं ही उठा सकती थी और न ही शिलाखण्ड; लेकिन उसने अपनी सामर्थ्यानुसार एक कार्य ढूंढ़ लिया । वह समुद्र के जल में स्नान कर रेत पर लोटती, फिर दौड़ कर सेतु पर जाती । वहां वह अपने शरीर में लगी सारी रेत झाड़ देती । पुन: वह समुद्र में स्नान कर रेत पर लोटती और सेतु पर रेत झाड़ने के लिए दौड़ पड़ती । उसका यह कार्य अविराम चल रहा था।

उस छोटे-से जीव की ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया; किंतु गिलहरी का यह कार्य बड़ी एकाग्रता और कुतूहल से प्रभु श्रीराम देख रहे थे।

कोई भी जीव यदि प्रेम से भगवान के लिए कुछ करे तो भगवान उसको अवश्य स्वीकार करते हैं।

प्रभु श्रीराम ने संकेत से हनुमान जी को पास बुला कर उस गिलहरी को उठा लाने का आदेश दिया । हनुमान जी ने उस गिलहरी को उठाकर श्रीराम के कमल से भी कोमल और बंधूक पुष्प जैसे रक्तवर्ण हाथ पर रख दिया ।

प्रभु श्रीराम ने उस नन्हीं-सी गिलहरी से पूछा-‘तू सेतु पर क्या रही है ? तुझे डर नहीं लगता कि तू किसी वानर या भालू के पैरों तले कुचल सकती है या कोई वृक्ष या शिला तुझे कुचल सकता है ?’

प्रभु श्रीराम की बात सुन कर गिलहरी के खुशी के कारण रोम फूल गए । वह श्रीराम जी के करकमल पर गिर कर बोली-

‘मृत्यु दो बार तो आती नहीं । आपके सेवकों के चरणों के नीचे आकर मेरी मृत्यु हो जाए, यह मेरा सौभाग्य होगा । सेतु में बहुत बड़े-बड़े शिलाखण्ड और वृक्ष लगाये जा रहे हैं । बहुत परिश्रम के बाद भी नल-नील सेतु को पूरा समतल नहीं कर पा रहे हैं । ऊंची-नीची विषम भूमि पर चलने में आपके कोमल चरणों को बहुत कष्ट होगा; यह सोच कर सेतु के छोटे-छोटे गड्डों को मैं रेत से भरने का प्रयास कर रही हूँ ।’

गिलहरी के निष्काम सेवा-भाव से प्रभु श्रीराम प्रसन्न हो गए । उन्होंने गिलहरी को बांये हस्त पर बैठा रखा था । एक छोटे-से प्राणी को उन्होंने वह आसन दे रखा था जिसकी कल्पना त्रिभुवन में कोई कर भी नहीं सकता । श्रीराम जी ने अपने दाहिने हाथ की तीन अंगुलियों से गिलहरी की पीठ थपथपा दी ।

ऐसा माना जाता है कि गिलहरी की पीठ पर श्रीराम की अंगुलियों के निशान के रूप में तीन श्वेत रेखाएं बन गईं । तभी से सभी गिलहरियों की पीठ पर वे रेखाएं होती हैं ।इस प्रसंग से स्पष्ट है कि भगवान किसी भी प्राणी के न तो शारीरिक सौंदर्य पर रीझते हैं और न ही आर्थिक वैभव पर; क्योंकि उनके समान दिव्य सौन्दर्य, दिव्य गुण और ऐश्वर्य संसार में किसी के पास नहीं है ।

वे तो केवल जीव के हृदय के प्रेम को देखते हैं और उसी प्रेमडोर से बंध कर खिंचे चले आते हैं । गीता (९।२९) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-‘मैं सभी प्राणियों में समान रूप से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न ही प्रिय है; परन्तु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ..!!
🙏🏽🙏🏾🙏🏻जय जय श्री राम🙏🏼🙏🙏🏿



When the Lord is kind to a living being, he does not see how much chanting, penance, worship-recitation or yagya-havan (instrument) he has performed. The greatest of chanting and austerities of any human being cannot compel the Supreme Lord to be merciful, nor can it be the value of God’s attainment. God is an ocean of compassion and is hungry for emotion. They only see the love and true faith of the soul’s inner being. They are attained only by the grace of God.

At the time of making Shri Ram Setu (bridge over the sea), this point is proved by the context of Lord Shri Ram’s grace on the squirrel-

Lord Rama’s grace on a petty creature like a squirrel.

When Nal-Nil were engaged in building a bridge over the sea for the victory of Lanka and a huge group of monkeys and bears were bringing mountain blocks and trees and giving them; At the same time a small squirrel also came down from the tree to help in the work of Maryada-Purushottam Lord Shri Ram.

That little squirrel could neither pick up tree branches nor rocks; But he found a job according to his ability. She would bathe in the sea water and roll on the sand, then run to the bridge. There she would sweep away all the sand in her body. Again she would bathe in the sea and roll on the sand and run to sweep the sand on the bridge. His work was going on continuously.

No one noticed that little creature; But Lord Shri Ram was watching this act of squirrel with great concentration and curiosity.

If any living being does something for God out of love, then God definitely accepts it.

Lord Shri Ram called Hanuman ji with a signal and ordered him to pick up the squirrel. Hanuman ji picked up that squirrel and placed it on his hand, softer than Shri Ram’s lotus and blood colored like a captive flower.

Lord Shri Ram asked that little squirrel – ‘What have you been doing on the bridge? Do you not fear that you may be crushed under the feet of a monkey or a bear or that a tree or rock may crush you?’

Hearing the words of Lord Shri Ram, due to the happiness of the squirrel, the Romans swelled. She fell on the lotus of Shri Ram and said-

‘Death doesn’t come twice. It will be my privilege to die under the feet of your servants. Big boulders and trees are being planted in the bridge. Even after a lot of hard work, Nal-Neel is not able to make the bridge completely level. Your soft feet will suffer a lot in walking on rough and uneven ground; Thinking this, I am trying to fill the small pits of the bridge with sand.

Lord Shri Ram was pleased with the selfless service of the squirrel. He kept the squirrel sitting on his left hand. He had given such a seat to a small creature, which no one can even imagine in Tribhuvan. Shri Ram patted the squirrel’s back with the three fingers of his right hand.

It is believed that three white lines formed on the back of the squirrel in the form of the fingerprints of Shri Ram. Since then all the squirrels have those lines on their backs. It is clear from this context that God neither favors any creature on physical beauty nor on economic glory; Because no one in the world has divine beauty, divine qualities and opulence like them.

They only see the love of the soul of the soul and are drawn to the same love thread. In the Gita (9.29), Lord Krishna says – ‘I am equally pervasive in all beings, no one is disliked or dear to me; But the devotees who worship me with love are in me and I am also manifest in them..!! 🙏🙏🏾🙏🏻Jai Jai Shri Ram🙏🙏🙏

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