समर्पण भाव की जागृति 2

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आज प्रभु प्राण नाथ हृदय में आये हैं। हे मेरे स्वामी जैसे तुम इस दिल में समाए हो वैसे ही सब प्राणियों में समाए हुए हो। इस राम धुन से मै जङ चेतन सब को झंकृत कर देना चाहता हूँ। हे स्वामी ये सब भाव दिल में मेरे भगवान तुम ही प्रकट कर सकते हो। मुझ में ऐसे तो कुछ विशेष दिखाई नहीं देता है। ये सब आपकी कृपा का फल है।
भक्त रात दिन भगवान को भजता है आखं खुलते ही भगवान का नाम सिमरण नमन और वन्दन करता है। भक्त जान जाता है मै भगवान को विधि विधान से भजता हुं। तब ये समाज घर परिवार मुझे भगवान को भजने नहीं देगा इसलिए भक्त भगवान को मन ही मन भजता है।

परिवारिक जिम्मेदारी को निभाते हुए भगवान को भज रहा हैं भक्त भगवान को भजते हुए समय के बन्धन में नहीं है। दिल की तङफ होती है तङफ जब बढ जाती है तब गुरु के पास जाते हैं ग्रंथों में खोजते कहॉं कैसे प्रभु से मिलन हो। मानव जीवन का लक्ष्य यही परमात्मा का बन जाऊ मैं।


भक्ति वह है जिसमें जगत नहीं मन और बुद्धि नहीं केवल एक परम पिता परमात्मा के चरणो में समर्पित है। भगवान को भक्त भाव में भरकर कहता है मेरे नाथ मै तुमको बार बार पुकारता हूं तुम्हें मेरे लिए कितने कष्ट उठाने पङते है।

भक्त फिर भगवान से कहता है कि देख भगवान तुमनें मुझे सबकुछ देकर भी कुछ नहीं दिया। मेरे प्रभु मेरे स्वामी भगवान नाथ तुमने देखन को दिए नैन
जिन नैनो से तुम दिखाई नहीं देते उन नैनो का मै क्या करू।भक्त भगवान के भाव मे गहरा ढुब जाता है भगवान के नाम की पुकार लगाता है। हे मेरे अराध्य भगवान हे प्रभु दीनदयाल हे नाथ हे रघुवर हे राम हे सर्वव्यापी हे मेरे सर्वस्व तुम दिखाई क्यों नहीं देते हो अवश्य ही इस दिल में प्रेम के हिलोरें नहीं उठते कब प्रभु प्राण नाथ आयेंगे। हे नाथ दिल में विरह वेदना जाग्रत हो रही बताओ स्वामी इस वेदन कैसे शांत हो दिल तुम्हें ढुंढता है तुम कंहा छुप गए।

भक्त भगवान से कहता है भगवान मै कितना बेसमझ हूं। अपनी भलाई के लिए तुम्हें आने को कहता हूं। मेरे प्राण नाथ आपके लाखो करोड़ो भक्त आप की प्रार्थना करते होंगे आप जगत के पालनहार हो आप क्षण भर के लिए दृष्टि तो करिए आप की दृष्टि में समा जाऊंगी। नाथ आप मुझे कब अपने पास बुलाओगे।

जीवन की चाह यही मै तुममे समा जाऊँ। दिल की धड़कन मे तुम्हे समा लुंगी।ये जीवन है तुम्हारे चरणों में समर्पित तुम आत्मा हो तुम परमात्मा हो तुम प्रकाश हो तुमने मुझमें चेतन आत्मा के प्रकाश से ओतप्रोत किया हुआ है बाहर भी तुम हो भीतर भी तुम ही विराजमान हो। फिर भी दिल में विरह के बादल मंडरा रहे कब तुम से साक्षात्कार होगा।

जय श्री राम अनीता गर्ग

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