भगवान ,भक्त और कटहल

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अभी पेड़ों में बड़े-बड़े कटहल लगे हुए हैं। कुछ दिनों बाद कटहल पक जाएंगे । कटहल से जुड़ी भगवान जगन्नाथ की एक कथा है जो बहुत ही मनोरंजक है । आइए हम इस का आनंद लेते हैं ।

भगवान कृष्ण की लीलाएं तो बहुत ही अद्भुत है । वे बहुत ही नटखट थे ।अपने भक्तों की रक्षा तो करते ही थे साथ ही साथ कभी-कभी उन्हें परेशान भी करते थे । लेकिन इसमें भी भक्तों का कोई ना कोई लाभ छुपा हुआ रहता था।

ऐसे ही श्री कृष्ण की जगन्नाथ रूप की एक कथा है। जगन्नाथपुरी के सिंहद्वार के पास उनके परम भक्त रघु दास रहते थे जो वहां के राजा के गुरु भी थे। उनके पास भगवान बाल रूप में आते थे। दोनों में सख्य भाव था जिसे सब जानते थे।एक दिन भगवान जगन्नाथ रघु दास के पास आए और कहा कि राजा का इतना बड़ा कटहलों का बगीचा है फिर भी मुझे कभी भी कटहल का भोग नहीं लगाते।मुझे तो पका कटहल खाना है ।

चलो हम आज राजा के बगीचे से कटहल चुराएंगे । रघु दास ने कहा कि मैं राजा से आपकी बात बता दूंगा और कटहल ले आऊंगा। कल आपको कटहल का भोग प्राप्त हो जाएगा। तब भगवान उसे कहते हैं कि तुम तो जानते हो कि यशोदा माता के पास माखन की कमी नहीं थी फिर भी मैं पूरे गोकुल में माखन चुराकर खाता था ।

चुराकर खाने में अलग ही मजा आता है। चलो आज रात हम कटहल चुरा कर लाते हैं ।रघु दास उनके साथ रात को छिपते हुए राजा के बगीचे में पहुंच गए। भगवान ने रघु दास ने कहा कि मैं नीचे रहता हूं तुम जाओ पेड़ से अच्छा बड़ा कटहल तोड़ना और नीचे गिराना । मैं उसे पकड़ लूंगा।रघुदास पेड़ पर चढ़कर कटहल दिखा दिखाकर पूछने लगे -यह वाला ,यह वाला ।तो भगवान ने उन्हें एक बड़ा सा कटहल तोड़ने को कहा। रघु दास कटहल तोड़कर जैसे ही नीचे गिराए भगवान वहां से अंतर्ध्यान हो गए। कटहल गिरने की आवाज सुनकर राजा के सिपाही आ गए ।सारी घटना देखकर उन्होंने राजा को जाकर इसकी सूचना दी।।

राजा स्वयं आए और अपने गुरु को इस तरह पेड़ में चढ़े देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। गुरु से जब कारण जानना चाहा तो उन्होंने कहा मैं आपको एकांत में बताऊंगा। राजा रघु दास जी की भक्ति के बारे में जानते थे कि भगवान उन्हें हमेशा दर्शन देते हैं। सारी बात सुनकर राजा को विश्वास हो गया और उन्होंने कहा कि यह कटहलों का बगीचा मैं प्रभु के नाम लिख देता हूं। आप जब चाहे तब भगवान को भोग लगाइये ।

सुबह जब रघुदास समुद्र किनारे जाते हैं तो वहां भगवान आते हैं और उनसे कहते हैं -कहो कैसी रही । तब रघुदास ने कहा हम तो ठीक है रात को आप तो अंतर्ध्यान हो गये। एक कटहल तक नहीं ला पाए। देखिये हम पूरा बगीचा ही आपके नाम कर लाए हैं।

।ऐसे ही भगवान अपने भक्तों के साथ खेल भी खेलते थे और उनको लाभ भी कराते थे।

जय श्री राधे राधे हरे कृष्णा

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