जय श्री राम जी अन्तर्मन का भाव ही पुजा है। हृदय में उठते भाव को शब्द नहीं हुआ करते हैं। यदि शब्द बन भी जाते हैं तब वे लेखनी में उतारा नहीं जा सकता है।
एक प्रेमीका को अपने प्रेमी से प्रेम का इजहार करने के लिए शब्दों की नहीं ह्दय के भाव और प्रेम उसके मौन में छुपा होता है।
भगवान से जिसने प्रेम किया है वह शब्दों से परे है। एक दिल था दिल प्रभु का बन जाता है ।तब प्रभु प्रेम शब्दों में नहीं तुलता है। प्रेम सुबह शाम दोपहर नहीं देखता है वह दिन दिन बढत सवायो।
प्रभु प्रेमी अपने स्वामी के प्रेम में खोया हुआ परम पिता परमात्मा से कहता है कि हे प्रभु हे स्वामी भगवान् हे मेरे नाथ अब इस समय ये दिल मेरे बस का नहीं रहा है अब देखने वाले की दृष्टि में तो मैं खङी कार्य कर रही होती हूं।
लेकिन मै तो अपने भगवान नाथ मे खोयी हुई गहरी डुबकी लगाती हूं ।सब कुछ करता और कराता तो स्वामी भगवान् नाथ ही है। मेरे बस में तो दिल की धड़कन भी नहीं है।
प्रभु बहुत करूणामयी है कभी हाथ की उंगली में नाम ध्वनि बजती है तो कभी दिल में प्रेम का दीपक प्रज्वलित करते हैं। मै बावरी कुछ समझ न पाती जय श्री राम
अनीता गर्ग