परमात्मा न सबको कुछ न कुछ दिया है,किंतु कुछ लोग धन दौलत मिलने से खुश रहते है।जबकि उनके भीतर आंतरिक तृप्ति नही हो पाती।जीवन का सच्चा सुख ही तृप्त होने में है।केवल भौतिक उपलब्धियों को प्रभु कृपा का स्वरूप नहीं समझना चाहिए।अक्सर लोग भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति को ही दैवीय कृपा समझते हैं। किसी सुख-साधन सम्पन्न व्यक्ति के बारे में लोग यही कहते हैं कि भगवान की उसके ऊपर बड़ी कृपा है जो उसके लिए इतना सब कुछ दिया। क्या वास्तव में ‘ कृपा ‘ इसी का नाम है ? जरा विचार कर लेते हैं।
कृपा अर्थात बाहर की प्राप्ति नही अपितु भीतर की तृप्ति है। किसी को भौतिक सुखों की प्राप्ति हो जाना यह कृपा हो न हो मगर किसी को वह सब कुछ प्राप्त न होने पर भी भीतर एक तृप्ति बनी रहना यह अवश्य मेरे गोविन्द की कृपा है। रिक्तता उसी के अन्दर होगी जिस के अन्दर श्री कृष्ण के लिए कोई स्थान ही नही है, जिस हृदय में श्रीकृष्ण हों वहाँ भला रिक्तता कैसी ? वहाँ तो आनंद ही आंनद होता है। आपके पुरुषार्थ से और प्रारब्ध से आपको प्राप्ति तो संभव है मगर तृप्ति नहीं, वह तो केवल और केवल प्रभु कृपा से ही संभव है। अतः भीतर की तृप्ति, भीतर की धन्यता और भीतर का अहोभाव,यही उस ठाकुर की सबसे बड़ी “कृपा” है।
जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।🙏🏻🪷
God has given something or the other to everyone, but some people are happy by getting wealth. While there is no inner satisfaction within them. The true happiness of life lies in being satisfied. Only physical achievements should not be considered as the form of God’s grace. Often people consider the attainment of materialistic pleasures as divine grace. People say about a person who is rich in comforts that God has blessed him so much that he has given so much for him. Is ‘Kripa’ really its name? Let’s think a little. Grace does not mean external attainment, but internal satisfaction. It may or may not be a grace for some to get materialistic pleasures, but for some not to get all that, but to remain a contentment within, it is certainly the grace of my Govind. There will be emptiness inside the one who has no place for Shri Krishna, what kind of emptiness is there in the heart where Shri Krishna is there? There, there is only bliss. You can get attainment through your effort and destiny but not satisfaction, it is possible only and only by the grace of God. Hence, inner satisfaction, inner bliss and inner absence, this is the biggest “grace” of that Thakur. Jai Jai Shri Radhe Krishna Ji. May Shri Hari bless you.🙏 🏻🪷