हूँ तो चेरी राधे कौ, नाम रटूँ राधे कौ,
सुमिरन नित राधे कौ राधे कौ ध्यान जू ।
भजन करूं राधे कौ, इष्ट रखूँ राधे कौ,
उपास मेरैं राधे कौ, राधिका ही प्राण जू ।।
तन मन कर आठौं जाम, आस राधे की मोकों,
आसरौ राधे कौ और ना पहिचान जू ।
कल्यान की करता और हरता है चिन्ता की,
‘लालदास’ वारी तापै निश्चै यहि जान जू ।।
मैं तो केवल श्री राधा की ही चेरी (दासी) हूँ, हर क्षण श्री राधे का ही नाम रटती हूँ, श्री राधे का ही सुमिरन करती हूँ एवं श्री राधा का ही ध्यान करती हूँ ।
मैं श्री राधा का ही भजन करती हूँ, मेरी इष्ट भी श्री राधा हैं, उपासना भी राधा की ही है और श्री राधिका ही मेरी प्राण है ।
आठों याम तन, मन से मुझे केवल राधा की ही आस है । मेरा आसरा भी श्री राधा है और इसके अतिरिक्त मुझे अन्य किसी से कोई पहिचान नहीं है ।
श्री राधा ही कल्याण करता एवं समस्त चिंताओं की हरण करने वाली हैं । श्री लाल दास जी सखी स्वरूप में स्थित होकर कहते हैं कि मैं निश्चित ही श्री राधा पर अपना सब कुछ नयौछावर करती हूँ ।