सर्वत्र आनन्द का अनुभव करें ( पोस्ट 1 )

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भगवान् आ गये | वे भगवान् आये | इस तरह प्रतीक्षा करनी चाहिये | सारी प्रजा भगवान् के विमान को देखकर उछलने लगी | सबके आतुरता लगी हुई थी | सब बहुत उत्साहित हो रहे थे | भगवान् देखते हैं – इनका तो वैकुण्ठवासियों से भी अधिक प्रेम है | जैसे चकोरों का झुण्ड चन्द्रमा को देखता है, वैसे सब देखते हैं | कष्ट को एकदम भूल जाते हैं | भगवान् ने भी उनके अनुसार कार्य किया, एक क्षण में सबसे मिल लिये |
अमित रूप प्रगटे तेहि काला | जथा जोग मिले सबहि कृपाला ||
छन महिं सबहि मिले भगवाना | उमा मरम यह काहुँ न जाना ||
एक क्षण में भगवान् सबसे मिल लिये | अनन्तरूप हो गये | जिससे मिलते हैं वही आनन्दित होता है | भगवान् दोषों की तरफ ख्याल नहीं करते | फिर हम दोषों की तरफ देखकर अनुत्साह क्यों लावें |
जन अवगुण प्रभु मान न काऊ | दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ||
भगवान् बड़े ही दयालु हैं | उध्दार करने के लिये तैयार रहते हैं | धूल के कण गिने जा सकते हैं पर हमारे कितने जन्म हुए हैं, यह गिनना कठिन है | भगवान् ने यह अन्त का जन्म मनुष्य जन्म दे दिया, बड़ी भारी दया कर दी | भगवान् की इस दया को हम नहीं स्वीकार करें तो बड़ी ही मूर्खता है | भगवान् कहते हैं –
बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में तत्वज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही है – इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है (गीता ७/१९) |
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शेष आगामी पोस्ट में |
गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित जयदयाल गोयन्दका की पुस्तक *भगवान् कैसे मिलें ?* (१६३१) से |
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