।।श्रीहरिः।।
श्रद्धेय श्रीराधाबाबा
आप भगवान् की यह बड़ी भारी कृपा समझें कि आसक्ति आपको आसक्तिके रूपमें दीख रही है| इसका मिटना भगवत्कृपासापेक्ष है| प्रयत्नसे यह कम होती है, पर इसके नाशका सर्वोत्तम उपाय है—भगवान् के सामने सच्चे हृदयसे प्रार्थना जिनके एक संकल्पसे विश्वका निर्माण हो जाता है और संकल्प छोड़ते ही सब नष्ट हो जाता है|
वे यदि चाहें तो उनके लिये आपके इस दोषका नाश कितनी तुच्छ बात है—यह आप सहजमें अनुमान लगा सकते हैं| अन्तर्हृदयकी करुण प्रार्थनाके द्वारा आप उनमें चाह उत्पन्न कर दें| ठीक मानिये, यदि आप सच्चे हृदयसे इस दोषका नाश चाहने लग जाँय तो प्रभुको अवश्य ही दया आ जायगी और क्षणभरमें उनकी कृपासे सारे दोष मिटकर आपका मन उनमें लग जायगा| आप चाहते नहीं हों, यह बात नहीं है; पर अभी चाह बहुत मंद है| प्रार्थना करते-करते जिस क्षण सचमुच इन दोषोंके लिये हृदयमें जलन पैदा हो जायगी और आपका हृदय कातर होकर रोने लगेगा, उसी क्षण प्रभु सुन लेंगे| अवश्य ही यह दूसरी श्रेणीकी बात है| कुछ भी न माँगना सर्वोत्तम है|