प्रसिद्ध संत महात्मा रूपकलाजीके बचपनकी बात है। वे उस समय प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। वे अपने दो- तीन मित्रोंके साथ नदी स्नानके लिये जाया करते थे। एक दिन वे अपने दो मित्रोंके साथ नदीमें स्नान कर रहे थे कि अचानक सरिताका वेग बढ़ आया, लहरें उठने लगीं और उनके साथी नन्दकुमार बाबू मध्य धाराकी ओर बढ़ चले।
‘प्रभो! आपने यह क्या किया। मैं घर जाकर नन्दकुमारके माता-पिताको क्या उत्तर दूँगा। क्या आप चाहते हैं कि मेरा अपयश हो ?’ वे श्रीसीतारामका स्मरणकरने लगे, जोर-जोरसे भगवान्का परम मधुर नाम लेने लगे। भगवान् तो भावके भूखे हैं, सच्चे भाव और निष्कपट व्यवहारसे वे दयामय बहुत प्रसन्न होते हैं। इधर भगवानसहाय गिड़गिड़ाये और उधर जलका वेग शान्त होने लगा। देखते-ही-देखते किसी अदृश्य शक्तिकी प्रेरणासे नन्दकुमार बाबूको लहरोंने किनारेपर फेंक दिया। वे अचेत थे।
रूपकला जोर-जोरसे भगवन्नाम-कीर्तन करने लगे। उनके सच्चे भावने नन्दकुमार बाबूको नया जीवन प्रदान किया ।
– रा0 श्री0
It is about the childhood of famous saint Mahatma Rupkalaji. He was getting elementary education at that time. He used to go to the river for bath with two or three of his friends. One day he was taking bath in the river with two of his friends when suddenly the speed of the river increased, waves started rising and his companion Nandkumar Babu moved towards the middle stream.
‘Lord! what did you do What answer will I give to Nandkumar’s parents after going home. Do you want me to be infamy?’ They started remembering Shri Sitaram, loudly chanting the most sweet name of God. God is hungry for feelings, he is very pleased with true feelings and sincere behavior. Here Bhagwan Sahay begged and on the other side the speed of the water started to calm down. In no time, due to the inspiration of some invisible force, the waves threw Nandkumar Babu on the shore. He was unconscious.
Rupkala started chanting Lord’s name loudly. His true feelings gave new life to Nandkumar Babu.