दिव्यांग सहपाठीकी हँसी उड़ानेका फल
आजसे लगभग पचास वर्ष पूर्व घटी एक घटनाको मैं भुला नहीं पा रहा हूँ; क्योंकि वह पूर्णतः विधिकी विडम्बनासे सम्बन्धित है। मैं उस समय खरककलाँ (हरियाणा) के राजकीय विद्यालयमें शिक्षक था। उन्हीं दिनों सरकारने शारीरिक रूपसे दिव्यांग विद्यार्थियोंके लिये छात्रवृत्ति योजना आरम्भ की थी, जिसकी ग्रामीण क्षेत्रके विद्यालयोंमें कम जानकारी थी। मैंने इस विषयमें अपने स्तरपर रुचि लेकर उक्त विद्यालयके सभी दिव्यांग छात्रोंके आवेदन पत्र भिजवा दिये थे। विद्यालय स्तरके विद्यार्थियोंकी छात्रवृत्ति चालीस रुपये प्रतिमास थी, जो उन दिनों एक बड़ी राशि थी।
आठवीं कक्षाका एक चंचल प्रकृतिका प्रतिभाशाली लड़का, जिसका नाम खैरातीलाल था, एक दिव्यांग छात्रको प्रायः यह कहता रहता था कि यदि उसकी टाँग भी कटी होती तो उसे भी चालीस रुपये प्रतिमाह मिलते। उक्त दिव्यांग छात्रकी एक टाँग घुटनेमेंसे कटी थी और वह एक बैसाखीके सहारे चलता था। खैरातीलालके बार-बार ऐसा कहने से वह दुखी हो जाता और मुझसे शिकायत करता; क्योंकि अनुशासनके मामलेमें मेरा व्यवहार अत्यधिक कठोर था। परंतु खैरातीलाल हर बार मुसकराकर यही उत्तर देता कि इस बातपर उसे क्या आपत्ति है, यदि वह भी लँगड़ा होता, तो क्या उसे छात्रवृत्ति नहीं मिलती ? खैरातीलालकी मुसकराहट और उसकी विनम्र मुद्रा मेरे क्रोधके साथ-साथ उस दिव्यांग छात्रको भी शान्त कर देती।
वर्ष 1969 ई0 के ग्रीष्मावकाशके उपरान्त जबखैरातीलाल कई दिन विद्यालयमें नहीं आया, तो पूछताछ करनेपर पता लगा कि गाँवके जोहड़से कोई व्यक्ति अपनी भैंसको निकालनेके लिये ढेले मार रहा था। एक ढेला खैरातीके घुटनेपर ऐसा भयंकर लगा कि गाँवमें उसका इलाज नहीं हो पाया और उसे रोहतक के मेडिकल कॉलेज अस्पतालमें दाखिल करना पड़ा।
कुछ दिन बाद जब वह घर लौटा, तो मैं उसका हालचाल पूछने उसके घर गया। वहाँ पता चला कि टाँग घुटनेमेंसे काट दी गयी थी। उसके पिता बड़े चिन्तित थे। खैरातीने कुछ नहीं कहा; बस अपनी चिरपरिचित शैलीमें मुसकरा दिया।
विधिकी विडम्बना! आगामी सत्रके लिये खैरातीका दिव्यांग छात्रवृत्तिहेतु आवेदन-पत्र भेजा गया, परंतु जब विद्यालय में उक्त छात्रवृत्तिका बैंक ड्राफ्ट आया, तो खैराती इस संसार में नहीं था; क्योंकि किसी कारणवश घाव न भरनेपर उसे पुनः मेडिकल कॉलेज अस्पतालमें भर्ती होना पड़ा, जहाँ उसका देहान्त हो गया।
इस घटनाक्रमका मैं प्रत्यक्षदर्शी हूँ और इतने वर्षौंको लम्बी अवधिमें जब-जब भी यह घटना मुझे याद आती है, मैं विधिकी विडम्बनाके विषयमें बहुत कुछ सोचनेपर विवश हो जाता हूँ।
दिव्यांग सहपाठीकी हँसी उड़ानेका फल
आजसे लगभग पचास वर्ष पूर्व घटी एक घटनाको मैं भुला नहीं पा रहा हूँ; क्योंकि वह पूर्णतः विधिकी विडम्बनासे सम्बन्धित है। मैं उस समय खरककलाँ (हरियाणा) के राजकीय विद्यालयमें शिक्षक था। उन्हीं दिनों सरकारने शारीरिक रूपसे दिव्यांग विद्यार्थियोंके लिये छात्रवृत्ति योजना आरम्भ की थी, जिसकी ग्रामीण क्षेत्रके विद्यालयोंमें कम जानकारी थी। मैंने इस विषयमें अपने स्तरपर रुचि लेकर उक्त विद्यालयके सभी दिव्यांग छात्रोंके आवेदन पत्र भिजवा दिये थे। विद्यालय स्तरके विद्यार्थियोंकी छात्रवृत्ति चालीस रुपये प्रतिमास थी, जो उन दिनों एक बड़ी राशि थी।
आठवीं कक्षाका एक चंचल प्रकृतिका प्रतिभाशाली लड़का, जिसका नाम खैरातीलाल था, एक दिव्यांग छात्रको प्रायः यह कहता रहता था कि यदि उसकी टाँग भी कटी होती तो उसे भी चालीस रुपये प्रतिमाह मिलते। उक्त दिव्यांग छात्रकी एक टाँग घुटनेमेंसे कटी थी और वह एक बैसाखीके सहारे चलता था। खैरातीलालके बार-बार ऐसा कहने से वह दुखी हो जाता और मुझसे शिकायत करता; क्योंकि अनुशासनके मामलेमें मेरा व्यवहार अत्यधिक कठोर था। परंतु खैरातीलाल हर बार मुसकराकर यही उत्तर देता कि इस बातपर उसे क्या आपत्ति है, यदि वह भी लँगड़ा होता, तो क्या उसे छात्रवृत्ति नहीं मिलती ? खैरातीलालकी मुसकराहट और उसकी विनम्र मुद्रा मेरे क्रोधके साथ-साथ उस दिव्यांग छात्रको भी शान्त कर देती।
वर्ष 1969 ई0 के ग्रीष्मावकाशके उपरान्त जबखैरातीलाल कई दिन विद्यालयमें नहीं आया, तो पूछताछ करनेपर पता लगा कि गाँवके जोहड़से कोई व्यक्ति अपनी भैंसको निकालनेके लिये ढेले मार रहा था। एक ढेला खैरातीके घुटनेपर ऐसा भयंकर लगा कि गाँवमें उसका इलाज नहीं हो पाया और उसे रोहतक के मेडिकल कॉलेज अस्पतालमें दाखिल करना पड़ा।
कुछ दिन बाद जब वह घर लौटा, तो मैं उसका हालचाल पूछने उसके घर गया। वहाँ पता चला कि टाँग घुटनेमेंसे काट दी गयी थी। उसके पिता बड़े चिन्तित थे। खैरातीने कुछ नहीं कहा; बस अपनी चिरपरिचित शैलीमें मुसकरा दिया।
विधिकी विडम्बना! आगामी सत्रके लिये खैरातीका दिव्यांग छात्रवृत्तिहेतु आवेदन-पत्र भेजा गया, परंतु जब विद्यालय में उक्त छात्रवृत्तिका बैंक ड्राफ्ट आया, तो खैराती इस संसार में नहीं था; क्योंकि किसी कारणवश घाव न भरनेपर उसे पुनः मेडिकल कॉलेज अस्पतालमें भर्ती होना पड़ा, जहाँ उसका देहान्त हो गया।
इस घटनाक्रमका मैं प्रत्यक्षदर्शी हूँ और इतने वर्षौंको लम्बी अवधिमें जब-जब भी यह घटना मुझे याद आती है, मैं विधिकी विडम्बनाके विषयमें बहुत कुछ सोचनेपर विवश हो जाता हूँ।