मैं आपका पुत्र हूँ

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महाराज छत्रसाल स्वयं नगरमें घूमते थे और प्रजाजनोंसे उनका कष्ट पूछते थे। ‘जिस राजाके राज्यमें प्रजाके लोग दुःख पाते हैं, वह नरेश नरकगामी होता है।’ छत्रसालने इसे आदर्श बना लिया था।

सुगठित उच्च शरीर, भव्य भाल, विशाल लोचन, आजानुबाहु महाराजको देखकर एक नारी उनपर मुग्ध हो गयी। ‘कामातुराणां न भयं न लज्जा’ अतः वह नारी महाराजके समीप आयी, उसने हाथ जोड़कर प्रार्थना की— ‘मैं अत्यन्त दुःखिनी हूँ ।’ ‘आपको क्या क्लेश है देवि!’ महाराजने पूछा।नारीने छलपूर्वक उत्तर दिया- ‘श्रीमान् मेरा कष्ट दूर करनेका वचन दें तो प्रार्थना करूँ।’ सरल हृदय महाराजने कह दिया- ‘मुझसे सम्भव होगा तो आपका कष्ट अवश्य दूर करूँगा ।’

नारीने अब विचित्र भंगीसे कहा- ‘मैं संतानहीन हूँ। मुझे आप जैसा पुत्र चाहिये।’

छत्रसाल दो क्षणको स्तब्ध हो गये; किंतु शीघ्र ही उन्होंने उस नारीके चरणोंमें मस्तक झुकाते हुए कहा- ‘आपको मेरे समान पुत्र चाहिये, अतः माता ! यह छत्रसाल आपका पुत्र है।’ छत्रसालने उसे राजमाताकी भाँति स्वीकार किया।

Maharaj Chhatrasal himself used to roam around the city and used to inquire about the problems of the people. ‘The king in whose kingdom the subjects suffer, that king goes to hell.’ Chhatrasal had made it ideal.
A woman was infatuated by seeing the well-built high body, grand bhaal, huge lochan, Ajanubahu Maharaj. ‘Kamaturaan na fear na lajja’ So that woman came near Maharaj, she prayed with folded hands – ‘I am very sad.’ ‘What trouble you have, Devi!’ Maharaj asked. The woman replied deceitfully – ‘Sir, if you promise to remove my suffering, then I will pray.’ Simple hearted Maharaj said – ‘If I can, I will definitely remove your suffering.’
The woman now said to Vichitra Bhangi – ‘I am childless. I want a son like you.’
Chhatrasal was stunned for two moments; But soon he bowed his head at the feet of that woman and said – ‘You want a son like me, so mother! This Chhatrasal is your son. Chhatrasal accepted her as a queen mother.

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