बर्बरीक भीमसेनका पोता और उनके पुत्र घटोत्कचका पुत्र था। इसकी माता मौर्वी थी, जिसे शस्त्र, शास्त्र तथा बुद्धिद्वारा पराजितकर घटोत्कचने ब्याहा था। बर्बरीक बड़ा वीर था, इसने एक बार भीमसेनको अत्यन्त साधारण युद्ध-कौशलसे पराजित कर दिया था। जब पाण्डवोंके वनवासका तेरहवाँ वर्ष व्यतीत हुआ, तब सभी राजा उपप्लव्य नामक स्थानमें युद्धके लिये एकत्र हुए। वहाँसे चलकर महारथी पाण्डव कुरुक्षेत्रमें आये, जहाँ दुर्योधनादि कौरव पूर्वसे ही स्थित थे। उस समय भीष्मजीने दोनों पक्षोंके रथियों तथा अतिरथियोंकी गणना की थी। उसका सब समाचार जब गुप्तचरोंद्वारा महाराज युधिष्ठिरको मिला, तब उन्होंने भगवान् श्रीकृष्णसे कहा- ‘केशव दुर्योधनका ‘कौन वीर कितने समय में सेनासहित पाण्डवोंका वध कर सकता है ?’ इस प्रश्नपर पितामह और कृपाचार्यने एक महीनेमें हम सबको मार डालने की प्रतिज्ञा की है । द्रोणाचार्यने पंद्रह दिनोंमें, अश्वत्थामाने दस दिनोंमें और सदा मुझे भयभीत करनेवाले कर्णने तो छः ही दिनोंमें सेनासहित पाण्डवोंको मारने की घोषणा की है। देवकीनन्दन! क्या हमारे पक्षमें ऐसा कोई योद्धा नहीं, जो इसकी कोई प्रतिक्रिया कर सके ?’
राजा युधिष्ठिरका यह वचन सुनकर अर्जुन बोले ‘महाराज ! भीष्म आदि महारथियोंकी ये सारी घोषणाएँ असंगत हैं; क्योंकि युद्धसम्बन्धी जय-पराजयका निश्चय किसी कामका नहीं होता। इधर आपके पक्षमें भी बहुत-से दुर्धर्ष राजा हैं, जो कालके समान अजेय हैं। भला सात्यकि, भीमसेन, द्रुपद, घटोत्कच, विराट, धृष्टद्युम्र आदिसे कौन पार पा सकेगा ? सर्वथा अजेय भगवान् श्रीकृष्ण भी आपके ही पक्षमें हैं। मैं तो समझता हूँ इनमेंसे एक-एक वीर सारी कौरव सेनाका संहार कर सकता है। भला, बूढ़े बाबा भीष्म, द्रोण और कृपसे अपनेको क्या भय है। पर इतनेपर भी यदि आपके | चित्तको शान्ति न होती हो तो लीजिये-‘मैं अकेला ही। युद्धमें सेनासहित समस्त कौरवोंको एक ही दिनमें नष्ट कर सकता हूँ-यह घोषणा मेरी है।’ अर्जुनकी बात सुनकर बर्बरीकने कहा – ‘महात्मा अर्जुनकी प्रतिज्ञा मेरे लिये असह्य हो रही है। इसलिये मैं कहता हूँ, अर्जुन और श्रीकृष्णसहित आपलोग सब खड़े रहें। मैं एक ही मुहूर्तमें सारी कौरव सेनाको यमलोक पहुँचा देता हूँ। सिद्धाम्बिकाके दिये इस खड्ग तथा मेरे इन दिव्य धनुष-बाणोंको तो जरा देखिये ! इनके सहारे मेरा यह कृत्य सर्वथा सुगम है।’
बर्बरीककी बात सुनकर सभी क्षत्रिय विस्मित हो गये। अर्जुन भी लज्जित हो गये और श्रीकृष्णकी ओर देखने लगे। श्रीकृष्णने कहा- ‘पार्थ! बर्बरीकने अपनी शक्तिके अनुरूप ही बात कही है। इसके विषयमें बड़ी अद्भुत बातें सुनी जाती हैं। पहले इसने पातालमें जाकर नौ करोड़ दैत्योंको क्षणभरमें मौतके घाट उतार दिया था।’ फिर उन्होंने बर्बरीकसे कहा- ‘वत्स! तुम भीष्म, द्रोण, कृप, कर्ण आदि महारथियोंसे सुरक्षित सेनाको इतना शीघ्र कैसे मार सकोगे? इनपर विजय पाना तो महादेवजीके लिये भी कठिन है। तुम्हारे पास ऐसा कौन-सा उपाय है, जो इस प्रकारकी बात कह रहे हो मैं तुम्हारी इस बातपर कैसे विश्वास करूँ ?’
वासुदेवके इस प्रकार पूछनेपर बर्बरीकने तुरंत ही अपना धनुष चढ़ाया और उसपर बाण संधान किया। फिर उस बाणको उसने लाल रंगके भस्मसे भर दिया और कानतक खींचकर छोड़ दिया। उस बाणके मुखसे जो भस्म उड़ा, वह दोनों सेनाओंके मर्मस्थलोंपर गिरा। केवल पाँच पाण्डव, कृपाचार्य और अश्वत्थामाके शरीरसे उसका स्पर्श नहीं हुआ। अब बर्बरीक बोला ‘आपलोगोंने देखा ! इस क्रियासे मैंने मरनेवाले वीरोंके मर्मस्थानका निरीक्षण कर लिया। अब बस दो घड़ीमें इन्हें मार गिराता हूँ।’
यह देख-सुनकर युधिष्ठिर आदिके चित्तमें बड़ा विस्मय हुआ। सभी लोग बर्बरीकको ‘धन्य ! धन्य !’ कहने लगे। इससे महान् कोलाहल छा गया। इतनेमें ही श्रीकृष्णने अपने तीक्ष्ण चक्रसे बर्बरीकका मस्तक काटगिराया। इससे भीम, घटोत्कच आदिको बड़ा क्लेश हुआ। इसी समय सिद्धाम्बिका आदि देवियाँ वहाँ आ पहुँचीं और उन्होंने बतलाया कि इसमें श्रीकृष्णका कोई अपराध नहीं। बर्बरीक पूर्वजन्ममें सूर्यवर्चा नामका यक्ष था। जब पृथ्वी भारसे घबराकर मेरु पर्वतपर देवताओंके सामने अपना दुखड़ा रो रही थी, तब इसने कहा था कि ‘मैं अकेला ही अवतार लेकर सब दैत्योंका संहार करूँगा। मेरे रहते किसी देवताको भी पृथ्वीपर अवतार लेनेकी आवश्यकता नहीं।’ इसपर ब्रह्माजीने क्रुद्ध होकर कहा था—’दुर्मते ! तू मोहवश यह दुस्साहस कर रहा है। अतएव जब पृथ्वीभार-नाशके लिये युद्धका आरम्भ होगा, उसी समय श्रीकृष्णके हाथसे तेरे शरीरका नाश होगा।’ तदनन्तर श्रीकृष्णने फिर चण्डिकासे कहा- ‘इसके सिरको अमृतसे सींचो और राहुके सिरकी भाँति अजर अमर बना दो। देवीने वैसा ही किया। जीवित होनेपर मस्तकने भगवान्को प्रणाम किया और कहा-‘मैं युद्ध देखना चाहता हूँ।” तब भगवान्ने उसके मस्तकको पर्वत-शिखरपर स्थिर कर दिया। जब युद्ध समाप्त हुआ, तब भीमसेनादिको अपने युद्धका बड़ा गर्व हुआ और सब अपनी-अपनी प्रशंसा करने लगे। अन्तमें निर्णयहुआ कि चलकर बर्बरीकके मस्तकस पूछा जाय। जब उससे जाकर पूछा गया, तब उसने कहा- मैंने तो | शत्रुओंके साथ केवल एक ही पुरुषको युद्ध करते देखा है। उस पुरुषके बायीं ओर पाँच मुख और दस हाथ | थे, जिनमें वह त्रिशूल आदि आयुध धारण किये था और दाहिनी ओर उसके एक मुख और चार भुजाएँ थीं. जो चक्र आदि शस्त्रास्त्रोंसे सुसज्जित थीं। बायीं ओरके मस्तक जटाओंसे सुशोभित थे और दाहिनी ओरके मस्तकपर मुकुट जगमगा रहा था। वह बायीं ओर भस्म धारण किये था और दाहिनी ओर चन्दन लगा था। बायाँ ओर चन्द्रकला चमक रही थी और दाहिनी ओर | झलमला रही थी। उसी (रुद्र-विष्णुरूप)’ पुरुषने सारी कौरव सेनाका विनाश किया था। मैंने उसके अतिरिक्त किसी अन्यको सेनाका संहार करते। नहीं देखा।’ उसके यों कहते ही आकाशमण्डल उद्भासित हो उठा। उससे पुष्पवृष्टि होने लगी और साधु-साधुकी ध्वनिसे आकाश भर गया।
इसपर भीम आदि अपने गर्वपर बड़े लज्जित हुए।
– जा0 श0 (स्कन्दपुराण, माहेश्वरखण्ड, कुमारिकाखण्ड 61-62)
बर्बरीक भीमसेनका पोता और उनके पुत्र घटोत्कचका पुत्र था। इसकी माता मौर्वी थी, जिसे शस्त्र, शास्त्र तथा बुद्धिद्वारा पराजितकर घटोत्कचने ब्याहा था। बर्बरीक बड़ा वीर था, इसने एक बार भीमसेनको अत्यन्त साधारण युद्ध-कौशलसे पराजित कर दिया था। जब पाण्डवोंके वनवासका तेरहवाँ वर्ष व्यतीत हुआ, तब सभी राजा उपप्लव्य नामक स्थानमें युद्धके लिये एकत्र हुए। वहाँसे चलकर महारथी पाण्डव कुरुक्षेत्रमें आये, जहाँ दुर्योधनादि कौरव पूर्वसे ही स्थित थे। उस समय भीष्मजीने दोनों पक्षोंके रथियों तथा अतिरथियोंकी गणना की थी। उसका सब समाचार जब गुप्तचरोंद्वारा महाराज युधिष्ठिरको मिला, तब उन्होंने भगवान् श्रीकृष्णसे कहा- ‘केशव दुर्योधनका ‘कौन वीर कितने समय में सेनासहित पाण्डवोंका वध कर सकता है ?’ इस प्रश्नपर पितामह और कृपाचार्यने एक महीनेमें हम सबको मार डालने की प्रतिज्ञा की है । द्रोणाचार्यने पंद्रह दिनोंमें, अश्वत्थामाने दस दिनोंमें और सदा मुझे भयभीत करनेवाले कर्णने तो छः ही दिनोंमें सेनासहित पाण्डवोंको मारने की घोषणा की है। देवकीनन्दन! क्या हमारे पक्षमें ऐसा कोई योद्धा नहीं, जो इसकी कोई प्रतिक्रिया कर सके ?’
राजा युधिष्ठिरका यह वचन सुनकर अर्जुन बोले ‘महाराज ! भीष्म आदि महारथियोंकी ये सारी घोषणाएँ असंगत हैं; क्योंकि युद्धसम्बन्धी जय-पराजयका निश्चय किसी कामका नहीं होता। इधर आपके पक्षमें भी बहुत-से दुर्धर्ष राजा हैं, जो कालके समान अजेय हैं। भला सात्यकि, भीमसेन, द्रुपद, घटोत्कच, विराट, धृष्टद्युम्र आदिसे कौन पार पा सकेगा ? सर्वथा अजेय भगवान् श्रीकृष्ण भी आपके ही पक्षमें हैं। मैं तो समझता हूँ इनमेंसे एक-एक वीर सारी कौरव सेनाका संहार कर सकता है। भला, बूढ़े बाबा भीष्म, द्रोण और कृपसे अपनेको क्या भय है। पर इतनेपर भी यदि आपके | चित्तको शान्ति न होती हो तो लीजिये-‘मैं अकेला ही। युद्धमें सेनासहित समस्त कौरवोंको एक ही दिनमें नष्ट कर सकता हूँ-यह घोषणा मेरी है।’ अर्जुनकी बात सुनकर बर्बरीकने कहा – ‘महात्मा अर्जुनकी प्रतिज्ञा मेरे लिये असह्य हो रही है। इसलिये मैं कहता हूँ, अर्जुन और श्रीकृष्णसहित आपलोग सब खड़े रहें। मैं एक ही मुहूर्तमें सारी कौरव सेनाको यमलोक पहुँचा देता हूँ। सिद्धाम्बिकाके दिये इस खड्ग तथा मेरे इन दिव्य धनुष-बाणोंको तो जरा देखिये ! इनके सहारे मेरा यह कृत्य सर्वथा सुगम है।’
बर्बरीककी बात सुनकर सभी क्षत्रिय विस्मित हो गये। अर्जुन भी लज्जित हो गये और श्रीकृष्णकी ओर देखने लगे। श्रीकृष्णने कहा- ‘पार्थ! बर्बरीकने अपनी शक्तिके अनुरूप ही बात कही है। इसके विषयमें बड़ी अद्भुत बातें सुनी जाती हैं। पहले इसने पातालमें जाकर नौ करोड़ दैत्योंको क्षणभरमें मौतके घाट उतार दिया था।’ फिर उन्होंने बर्बरीकसे कहा- ‘वत्स! तुम भीष्म, द्रोण, कृप, कर्ण आदि महारथियोंसे सुरक्षित सेनाको इतना शीघ्र कैसे मार सकोगे? इनपर विजय पाना तो महादेवजीके लिये भी कठिन है। तुम्हारे पास ऐसा कौन-सा उपाय है, जो इस प्रकारकी बात कह रहे हो मैं तुम्हारी इस बातपर कैसे विश्वास करूँ ?’
वासुदेवके इस प्रकार पूछनेपर बर्बरीकने तुरंत ही अपना धनुष चढ़ाया और उसपर बाण संधान किया। फिर उस बाणको उसने लाल रंगके भस्मसे भर दिया और कानतक खींचकर छोड़ दिया। उस बाणके मुखसे जो भस्म उड़ा, वह दोनों सेनाओंके मर्मस्थलोंपर गिरा। केवल पाँच पाण्डव, कृपाचार्य और अश्वत्थामाके शरीरसे उसका स्पर्श नहीं हुआ। अब बर्बरीक बोला ‘आपलोगोंने देखा ! इस क्रियासे मैंने मरनेवाले वीरोंके मर्मस्थानका निरीक्षण कर लिया। अब बस दो घड़ीमें इन्हें मार गिराता हूँ।’
यह देख-सुनकर युधिष्ठिर आदिके चित्तमें बड़ा विस्मय हुआ। सभी लोग बर्बरीकको ‘धन्य ! धन्य !’ कहने लगे। इससे महान् कोलाहल छा गया। इतनेमें ही श्रीकृष्णने अपने तीक्ष्ण चक्रसे बर्बरीकका मस्तक काटगिराया। इससे भीम, घटोत्कच आदिको बड़ा क्लेश हुआ। इसी समय सिद्धाम्बिका आदि देवियाँ वहाँ आ पहुँचीं और उन्होंने बतलाया कि इसमें श्रीकृष्णका कोई अपराध नहीं। बर्बरीक पूर्वजन्ममें सूर्यवर्चा नामका यक्ष था। जब पृथ्वी भारसे घबराकर मेरु पर्वतपर देवताओंके सामने अपना दुखड़ा रो रही थी, तब इसने कहा था कि ‘मैं अकेला ही अवतार लेकर सब दैत्योंका संहार करूँगा। मेरे रहते किसी देवताको भी पृथ्वीपर अवतार लेनेकी आवश्यकता नहीं।’ इसपर ब्रह्माजीने क्रुद्ध होकर कहा था—’दुर्मते ! तू मोहवश यह दुस्साहस कर रहा है। अतएव जब पृथ्वीभार-नाशके लिये युद्धका आरम्भ होगा, उसी समय श्रीकृष्णके हाथसे तेरे शरीरका नाश होगा।’ तदनन्तर श्रीकृष्णने फिर चण्डिकासे कहा- ‘इसके सिरको अमृतसे सींचो और राहुके सिरकी भाँति अजर अमर बना दो। देवीने वैसा ही किया। जीवित होनेपर मस्तकने भगवान्को प्रणाम किया और कहा-‘मैं युद्ध देखना चाहता हूँ।” तब भगवान्ने उसके मस्तकको पर्वत-शिखरपर स्थिर कर दिया। जब युद्ध समाप्त हुआ, तब भीमसेनादिको अपने युद्धका बड़ा गर्व हुआ और सब अपनी-अपनी प्रशंसा करने लगे। अन्तमें निर्णयहुआ कि चलकर बर्बरीकके मस्तकस पूछा जाय। जब उससे जाकर पूछा गया, तब उसने कहा- मैंने तो | शत्रुओंके साथ केवल एक ही पुरुषको युद्ध करते देखा है। उस पुरुषके बायीं ओर पाँच मुख और दस हाथ | थे, जिनमें वह त्रिशूल आदि आयुध धारण किये था और दाहिनी ओर उसके एक मुख और चार भुजाएँ थीं. जो चक्र आदि शस्त्रास्त्रोंसे सुसज्जित थीं। बायीं ओरके मस्तक जटाओंसे सुशोभित थे और दाहिनी ओरके मस्तकपर मुकुट जगमगा रहा था। वह बायीं ओर भस्म धारण किये था और दाहिनी ओर चन्दन लगा था। बायाँ ओर चन्द्रकला चमक रही थी और दाहिनी ओर | झलमला रही थी। उसी (रुद्र-विष्णुरूप)’ पुरुषने सारी कौरव सेनाका विनाश किया था। मैंने उसके अतिरिक्त किसी अन्यको सेनाका संहार करते। नहीं देखा।’ उसके यों कहते ही आकाशमण्डल उद्भासित हो उठा। उससे पुष्पवृष्टि होने लगी और साधु-साधुकी ध्वनिसे आकाश भर गया।
इसपर भीम आदि अपने गर्वपर बड़े लज्जित हुए।
– जा0 श0 (स्कन्दपुराण, माहेश्वरखण्ड, कुमारिकाखण्ड 61-62)