अंगुलिमालके नामके श्रवणमात्रसे ही समस्त कोशल राज्य त्रस्त और संतप्त हो उठता था । गुरुके दक्षिणा स्वरूप मैत्रायणीपुत्र वनमें रहता था और यात्रियोंको मारकर उनकी अंगुलियोंकी माला पहनता था; धन या वस्तु आदिका वह अपहरण नहीं करता था । श्रावस्तीके प्रसेनजित् और उनकी प्रजा उससे भयभीत थी ।
‘इस वनमें डाकू अंगुलिमाल रहता है, भन्ते । वह प्राणियोंका वध करता है।’ गोपालकों और किसानोंने भगवान् बुद्धको आगे बढ़नेसे रोका। वे श्रावस्तीमें पिण्डचार समाप्त कर वनमें जा रहे थे विहारके लिये। भिक्षु संघके मना करनेपर भी वे आगे बढ़ते गये। अंगुलिमालको आश्चर्य हुआ कि लोग समूहमें भी
मेरे पास आनेमें डरते हैं और यह श्रमण तनिक भी भयनहीं मानता है। उसने इनको मार डालनेका संकल्प किया; पर वेगसे दौड़नेपर भी वह तथागतके पास नहीं पहुँच सका।
‘खड़े रहो, श्रमण !’ अंगुलिमालने संकेत किया। ‘खड़ा हूँ, अंगुलिमाल ! प्राणियोंके प्रति दण्डका त्याग करनेसे स्थित हूँ। तुम अस्थित हो ।’ तथागतने प्रबुद्ध किया ।
‘श्रमण असत्य भाषण नहीं कर सकता है। मैं अंधा हो गया था। मैंने बड़े-बड़े पाप किये हैं।’ वह दौड़कर तथागतके चरणोंपर गिर पड़ा और भगवान्ने ‘आ भिक्षु’ कहकर उसे उपसम्पदा दी। वह प्रव्रजित हो गया।
‘कुशल तो है, प्रसेनजित् ?’ भगवान् बुद्धने कोशलपतिको पाँच सौ घुड़सवारोंके साथ आते देखकरपन किया। प्रसेनजित्ने चरण-वन्दना की।
“अंगुलिमालका दमन करने जा रहा हूँ, भन्ते । उसके उत्पातसे जनता आतङ्कित है।’ राजाके शब्द थे। ‘यदि वह काषायवेषधारी प्रव्रजित हो गया हो तो कैसा व्यवहार करोगे ?’ शास्ता गम्भीर थे।
‘उसका स्वागत होगा, भन्ते । श्रावस्ती चीवर, पात्र और आसनकी व्यवस्था करेगी; पिण्डके लिये निमन्त्रित करेगी।’ राजाका उत्तर था।
‘तो यह है अंगुलिमाल ।’ तथागतने उसकी ओर दृष्टिपात किया। कोशलनरेशका हृदय थर-थर काँपने लगा। प्रसेनजित्ने सम्मान प्रकट किया।
‘जिसे हम शस्त्र-अस्त्रसे भी न जीत सके वह यों ही जीत लिया गया।’ राजाने तथागतकी प्रदक्षिणाकर राजप्रासादकी ओर प्रस्थान किया।
तथागतके आदेशसे पिण्डचारके लिये उसने श्रावस्ती में प्रवेश किया। भोजनके उपरान्त उसने एक ऐसी स्त्रीको देखा जिसका गर्भ निष्प्राण था। अंगुलिमालका हृदयव्यथित हो गया।
‘यदि जानकर मैंने प्राणिवध न किया हो तो स्त्रीका मङ्गल हो; गर्भका मङ्गल हो ।’ भगवान्ने स्त्रीके सामने जाकर उसे ऐसा कहनेका आदेश दिया।
‘पर यह तो असत्य भाषण है।’ अंगुलिमालने विवशता प्रकट की; भगवान्की प्रेरणासे उसने आदेशका पालन किया और स्त्रीका मङ्गल हो गया; गर्भका मङ्गल हो गया।
श्रावस्तीसे लौटनेपर उसका सिर फट गया था; खूनकी धारा बह रही थी; जनताने उसे पत्थरसे मारा था पर उसने किसीका भी विरोध नहीं किया। उसके पात्र टूट गये थे; चीवर फट गया था । स्थविरने सहनशीलताका परिचय दिया।
‘सत्य भाषण और अविरोध व्रतसे तुम्हारा अन्तःकरण शुद्ध हो गया है, स्थविर! अपूर्व हृदय-परिवर्तन है यह ।’ तथागतने धर्मकथासे उसे समुत्तेजित किया ।
अंगुलिमालका नाम मिट गया; उसने नये जीवनका प्रकाश प्राप्त किया। -बुद्धचर्या
अंगुलिमालके नामके श्रवणमात्रसे ही समस्त कोशल राज्य त्रस्त और संतप्त हो उठता था । गुरुके दक्षिणा स्वरूप मैत्रायणीपुत्र वनमें रहता था और यात्रियोंको मारकर उनकी अंगुलियोंकी माला पहनता था; धन या वस्तु आदिका वह अपहरण नहीं करता था । श्रावस्तीके प्रसेनजित् और उनकी प्रजा उससे भयभीत थी ।
‘इस वनमें डाकू अंगुलिमाल रहता है, भन्ते । वह प्राणियोंका वध करता है।’ गोपालकों और किसानोंने भगवान् बुद्धको आगे बढ़नेसे रोका। वे श्रावस्तीमें पिण्डचार समाप्त कर वनमें जा रहे थे विहारके लिये। भिक्षु संघके मना करनेपर भी वे आगे बढ़ते गये। अंगुलिमालको आश्चर्य हुआ कि लोग समूहमें भी
मेरे पास आनेमें डरते हैं और यह श्रमण तनिक भी भयनहीं मानता है। उसने इनको मार डालनेका संकल्प किया; पर वेगसे दौड़नेपर भी वह तथागतके पास नहीं पहुँच सका।
‘खड़े रहो, श्रमण !’ अंगुलिमालने संकेत किया। ‘खड़ा हूँ, अंगुलिमाल ! प्राणियोंके प्रति दण्डका त्याग करनेसे स्थित हूँ। तुम अस्थित हो ।’ तथागतने प्रबुद्ध किया ।
‘श्रमण असत्य भाषण नहीं कर सकता है। मैं अंधा हो गया था। मैंने बड़े-बड़े पाप किये हैं।’ वह दौड़कर तथागतके चरणोंपर गिर पड़ा और भगवान्ने ‘आ भिक्षु’ कहकर उसे उपसम्पदा दी। वह प्रव्रजित हो गया।
‘कुशल तो है, प्रसेनजित् ?’ भगवान् बुद्धने कोशलपतिको पाँच सौ घुड़सवारोंके साथ आते देखकरपन किया। प्रसेनजित्ने चरण-वन्दना की।
“अंगुलिमालका दमन करने जा रहा हूँ, भन्ते । उसके उत्पातसे जनता आतङ्कित है।’ राजाके शब्द थे। ‘यदि वह काषायवेषधारी प्रव्रजित हो गया हो तो कैसा व्यवहार करोगे ?’ शास्ता गम्भीर थे।
‘उसका स्वागत होगा, भन्ते । श्रावस्ती चीवर, पात्र और आसनकी व्यवस्था करेगी; पिण्डके लिये निमन्त्रित करेगी।’ राजाका उत्तर था।
‘तो यह है अंगुलिमाल ।’ तथागतने उसकी ओर दृष्टिपात किया। कोशलनरेशका हृदय थर-थर काँपने लगा। प्रसेनजित्ने सम्मान प्रकट किया।
‘जिसे हम शस्त्र-अस्त्रसे भी न जीत सके वह यों ही जीत लिया गया।’ राजाने तथागतकी प्रदक्षिणाकर राजप्रासादकी ओर प्रस्थान किया।
तथागतके आदेशसे पिण्डचारके लिये उसने श्रावस्ती में प्रवेश किया। भोजनके उपरान्त उसने एक ऐसी स्त्रीको देखा जिसका गर्भ निष्प्राण था। अंगुलिमालका हृदयव्यथित हो गया।
‘यदि जानकर मैंने प्राणिवध न किया हो तो स्त्रीका मङ्गल हो; गर्भका मङ्गल हो ।’ भगवान्ने स्त्रीके सामने जाकर उसे ऐसा कहनेका आदेश दिया।
‘पर यह तो असत्य भाषण है।’ अंगुलिमालने विवशता प्रकट की; भगवान्की प्रेरणासे उसने आदेशका पालन किया और स्त्रीका मङ्गल हो गया; गर्भका मङ्गल हो गया।
श्रावस्तीसे लौटनेपर उसका सिर फट गया था; खूनकी धारा बह रही थी; जनताने उसे पत्थरसे मारा था पर उसने किसीका भी विरोध नहीं किया। उसके पात्र टूट गये थे; चीवर फट गया था । स्थविरने सहनशीलताका परिचय दिया।
‘सत्य भाषण और अविरोध व्रतसे तुम्हारा अन्तःकरण शुद्ध हो गया है, स्थविर! अपूर्व हृदय-परिवर्तन है यह ।’ तथागतने धर्मकथासे उसे समुत्तेजित किया ।
अंगुलिमालका नाम मिट गया; उसने नये जीवनका प्रकाश प्राप्त किया। -बुद्धचर्या