प्रेमकी कीमत
‘दो सौ बावन वैष्णवोंकी वार्ता’ में भक्तशिरोमणि श्रीजमनादासजीके जीवनका एक मनोरम प्रसंग आता है। जमनादासजी एकबार ठाकुरजीके लिये फूल लेने बाजारमें गये। मालीकी दूकानपर रखे हुए एक सुन्दर कमलपर उनकी दृष्टि गयी। उन्होंने निश्चय किया कि आज ठाकुरजीके लिये कमलका फूल ले जाऊँगा।
उसी समय वहाँ एक मुगल सेनापति आया। वह अपनी रखैलके लिये फूल लेना चाहता था।
जमनादासजीने मालीसे कमलकी कीमत पूछी। मालीने कहा-‘पाँच रुपया।’
मुगल सेनापतिको भी वह फूल पसन्द आ गया। उसने कहा- ‘मैं दस रुपया दूँगा, यह फूल मुझे दे दो।’
भक्त जमनादासने मालीसे कहा-‘मैं पच्चीस रुपये देनेके लिये तैयार हूँ। तू मुझे ही देना।’
फिर तो दोनोंमें स्पर्धा होने लगी। दोनों एक दूसरेसे अधिक कीमत देनेके लिये तैयार हो गये। यवनराजने जब उस फूलके पचास हजार रुपये लगाये तो जमनादासजी एक लाख रुपये देनेके लिये तैयार हो गये। वे मालीसे बोले – ‘मैं इस फूलके एक लाख रुपये देने को तैयार हूँ।’
मुगल सेनापतिका अपनी रखैलके प्रति सच्चा प्रेम नहीं था, मात्र मोह था। मोहमें लाभ-हानिका ख्याल रहता है, किंतु प्रेममें नहीं रहता। मुगल सेनापतिने सोचा कि एक लाख रुपयेसे तो दूसरी कई रखैलें प्राप्त की जा सकती हैं। अतएव एक फूलके लिये इतना धन नहीं दिया जा सकता।
किंतु भक्त जमनादासजीके लिये तो ठाकुरजी ही सर्वस्व थे। प्रभुके प्रति उनका प्रेम सच्चा तथा शुद्ध था। जमनादासजीने अपनी पूरी जायदाद बेचकर एक लाख रुपयेमें वह फूल खरीद लिया।
जमनादासजीने वह फूल बड़े प्रेमसे श्रीनाथजीकी सेवामें अर्पित किया। फूल अर्पित करते ही भगवान्के सिरका मुकुट नीचे गिर पड़ा। भगवान्ने इस घटनाके द्वारा यह बताना चाहा कि मेरे भक्त जमनादासके कमलका बोझ मुझसे सहा नहीं भगवान्ने भक्तकी भेंट बड़े प्रेमसे स्वीकार की।
भगवान्को अच्छी-से-अच्छी एवं प्यारी-से-प्यारी वस्तु भेंटमें देनी चाहिये, किंतु हम तो भगवान्के चरणों या दानमें सस्ती एवं घटिया किस्मको वस्तु हा प्रस्तुत करते हैं। भक्तिमार्गमें लोभ बहुत बड़ा विघ्न है। लोभसे भक्तिका नाश होता है। लोभी भक्ति नहीं कर सकता।
price of love
In the ‘Talks of two hundred and twenty-two Vaishnavs’, there is a captivating episode from the life of Bhaktashiromani Shrijamanadasji. Jamnadas once went to the market to buy flowers for Thakur. His eyes fell on a beautiful lotus kept at Maliki’s shop. He decided that today he will take a lotus flower for Thakurji.
At the same time a Mughal general came there. He wanted to get flowers for his mistress.
Jamnadas asked the gardener the price of the lotus. Maline said – ‘Five rupees.’
The Mughal general also liked that flower. He said- ‘I will give ten rupees, give me this flower.’
Devotee Jamnadas said to the gardener – ‘ I am ready to give twenty five rupees. You give it to me only.
Then both of them started competing. Both agreed to pay more than each other. When Yavanraj spent fifty thousand rupees for that flower, Jamnadasji agreed to give one lakh rupees. He said to the gardener – ‘I am ready to give one lakh rupees for this flower.’
The Mughal general did not have true love for his mistress, it was only infatuation. There is concern about profit and loss in attachment, but it does not remain in love. The Mughal general thought that with one lakh rupees many other concubines could be obtained. That’s why so much money cannot be given for a single flower.
But for devotee Jamnadasji, Thakurji was everything. His love for the Lord was true and pure. Jamnadas sold his entire property and bought that flower for one lakh rupees.
Jamnadasji offered that flower with great love in the service of Shrinathji. As soon as flowers were offered, the vinegar crown of God fell down. God wanted to tell through this incident that my devotee Jamnadas could not bear the burden of lotus from me, God accepted the devotee’s offering with great love.
God should be gifted with the best of the best and the loveliest things, but we present cheap and low-quality things at God’s feet or in charity. Greed is a big obstacle in the path of devotion. Devotion is destroyed by greed. Greedy cannot do devotion.