संवत् 1740 वि0 में गुजरात सौराष्ट्रमें भारी अकाल पड़ा था। अन्नके बिना मनुष्य और तृणके बिना पशु तड़प रहे थे। वर्षा ऋतु व्यतीत हो रही थी; किंतु आकाशमें बादलका नाम नहीं था।
तत्कालीन नरेशने यज्ञ कराये, साधु-महात्माओंसे प्रार्थना की; किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। एक दिन किसीने नरेशसे कह दिया- ‘आपके नगरके अमुक व्यापारी चाहें तो वर्षा हो सकती है।’ राजा स्वयं गये उस व्यापारीके यहाँ । व्यापारीने नम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर प्रार्थना की—’अन्नदाता ! मैं तो तुच्छ मनुष्य हूँ, मेरे कहनेसे कहीं वर्षा हो सकती है।’
परंतु नरेशको जिसने सम्मति दी थी, उसकी बातपर उन्हें विश्वास था। वे हठ करके बैठ गये’आपको दीन प्रजाके ऊपर और मूक पशुओंपर दया करनी पड़ेगी। जबतक वर्षा नहीं होती, मैं आपके द्वारपर बैठा रहूँगा।’
व्यापारीने देखा कि उसका ऐसे छुटकारा नहीं हो सकता। उसने अपनी तराजू उठायी और बाहर आकर बोला- ‘देवता और लोकपाल साक्षी हैं, यदि इस तराजूसे मैंने कभी कम-ज्यादा तौला न हो, यदि यह तराजू सत्य और ईमानका सौदा ही तौलता रहा हो तो देवराज इन्द्र वर्षा करें।’
सबसे बड़ी सिद्धि तो है ईमानदारी । व्यापारीकी बात पूरी होते-न-होते तो आँधीका शब्द सुनायी पड़ने लगा। कुछ क्षणोंमें आकाश मेघोंसे ढक गया और प्रबल वृष्टि पृथ्वीको शीतल करने लगी। -सु0 सिं0
In Samvat 1740, there was a severe famine in Gujarat and Saurashtra. Human beings were suffering without food and animals without grass. The rainy season was passing; But there was no name of cloud in the sky.
The then kings performed yagya, prayed to saints and sages; But there was no benefit. One day someone said to the king – ‘It can rain if certain merchants of your city wish.’ The king himself went to that merchant’s place. The merchant humbly prayed with folded hands – ‘Food giver! I am an insignificant person, it can rain somewhere if I say.’
But he had faith in the person who had given the consent to the king. They stubbornly sat down ‘ You will have to have mercy on the poor people and on the dumb animals. Until it rains, I will sit at your door.’
The merchant saw that he could not get rid of it like this. He raised his scales and came out and said – ‘God and Lokpal are witnesses, if I have never weighed more or less with this scale, if this scale has been weighing only the deal of truth and honesty, then Devraj Indra should rain.’
The biggest achievement is honesty. Whether the words of the merchant were fulfilled or not, the sound of a storm could be heard. In a few moments the sky was covered with clouds and heavy rain started cooling the earth. – Su 0 Sin 0