प्राचीन समयकी बात है। एक धनी व्यक्तिने एक हब्शीको नौकर रखा। उसने अपने जीवनमें हब्शी कभी पहले नहीं देखा था। नौकरके शरीरका रंग नितान्त काला था। धनी व्यक्तिने सोचा कि यह कभी स्नान नहीं करता है; शरीरपर मैल जम जानेसे इसका रंग काला हो गया है।
उसने बिना सोचे-समझे अपने दूसरे नौकरोंको आदेश दिया कि इसे अच्छी तरह रगड़-रगड़कर साबुनसे नहलाना चाहिये और तबतक रगड़ते रहना चाहियेजबतक इसका शरीर स्वच्छ और श्वेत न हो जाय। नौकरोंने मालिककी आज्ञाका पालन किया। विलम्बतक साबुन रगड़ते रहनेपर भी उसके शरीरका रंग नहीं बदल सका। इस नहलानेका दुष्परिणाम यह हुआ कि हब्शीको सर्दी हो गयी और थोड़े ही समयके बाद अपने मालिककी विवेकहीनताका शिकार हो गया। मनुष्यके जीवनमें सत्-असत्के निर्णयका बड़ा महत्त्व है। यदि मालिकने सद्विवेकसे काम लिया होता तो हब्शीकी जान नहीं जाती।
– रा0 श्री0
It is a matter of ancient times. A rich man hired a negro servant. He had never seen a negro before in his life. The color of the servant’s body was extremely black. The rich man thought that it never takes a bath; Due to accumulation of dirt on the body, its color has become black.
Without thinking, he ordered his other servants that he should be thoroughly rubbed and bathed with soap and kept on rubbing until his body became clean and white. The servants obeyed the orders of the master. Even after rubbing the soap for a long time, the color of his body could not change. The side effect of this bath was that the negro caught cold and after a short time became a victim of his master’s prudence. The decision of right and wrong is of great importance in the life of a human being. If the owner had acted in good faith, the negro would not have died.