हेमन्तकी संध्या थी, सूर्य अस्ताचलपर अदृश्य होनेवाले ही थे, पश्चिम गगनकी नैसर्गिक लालिमा अद्भुत और अमित मनोहारिणी थी। भगवान् बुद्ध राजगृहमें विहार समाप्तकर चारिकाके लिये वैशालीके पथपर थे। उन्होंने देखा कि उनके पीछे-पीछे अनेक भिक्षु चले आ रहे हैं। किसीने सिरपर, तो किसीने बगलमें और कटिदेशमें चीवरोंकी गठरी लाद रखी थी। तथागत आश्चर्यचकित थे भिक्षुसङ्घकी संग्रह – वृत्तिपर
‘कहाँ तो भिक्षुओंने जनताके समक्ष उत्कट त्यागका आदर्श रखा और कहाँ थोड़े ही समयके बाद उन्होंने संग्रह और संचयमें आसक्ति दिखायी।’ तथागतचिन्तित थे।
रातका पहला पहर था। धीरे-धीरे शीतल समीर | ठंडक फैला रहा था । तथागत वैशालीके गौतम-चैत्यमें समासीन थे; भिक्षुसङ्घने उनके चेहरेपर उदासीकी छाप देखी। भिक्षुओंने चरण-वन्दना की, वे अपने-अपने आसनपर चले गये भगवान् बुद्धका मन बार-बार यही विचार कर रहा था कि किस प्रकार सङ्घकी संग्रह वृत्तिका निवारण हो । उन्होंने चीवरोंको सीमित करनेकाp निश्चय किया और अपने-आपको ही कड़ी परीक्षाका माध्यम स्थिर किया।वे गौतम-चैत्यके बाहर आकर जमीनपर संघाटी बिछाकर लेट गये। साधारण ठंडक थी, एक चीवर लेकर शरीर ढक लिया। ठंडकका वेग रातमें बढ़ गया; बिचले पहरमें उन्होंने दूसरा चीवर ओढ़ लिया। तीसरे पहर अथवा पिछले पहरमें आकाश लोहित वर्णका हो चला; शीतका उत्कर्ष देखकर भगवान् बुद्धने तीसरा चीवर ओढ़ लिया। सबेरा हो गया।’प्रत्येक भिक्षुका काम केवल तीन चीवरसे चल सकता है; अधिकके संग्रहसे पापकी वृद्धि हो सकती है सङ्घमें शिथिलता आ जायगी।’ तथागतने भिक्षु सङ्घको आमन्त्रित कर अनुज्ञा प्रदान की। सङ्घकी वैराग्य-वृत्तिको कलङ्कित होनेसे शास्ताने बचा लिया। उन्होंने अपने जीवनके त्यागमय अनुभवका दूसरोंके हितमें उपयोग किया। – रा0 श्री0 (बुद्धचर्या)
It was the evening of Hemant, the sun was about to disappear at sunset, the natural redness of the western sky was amazing and infinitely beautiful. Lord Buddha was on the way to Vaishali for Charika after finishing his stay in Rajgriha. He saw that many monks were following him. Some carried a bundle of clothes on the head, some on the side and in the waist. The Tathagata was amazed at the Sangha’s collection – Attitude
‘Where the monks put forth the ideal of ardent renunciation before the public and where after a short period of time they showed attachment to collection and accumulation.’ Tathagata was worried.
It was the first hour of the night. Slowly cool breeze | The coolness was spreading. The Tathagat resided in the Gautam Chaitya of Vaishali; The monks’ association saw the expression of sadness on his face. The monks worshiped their feet, they went to their seats. Lord Buddha’s mind was thinking again and again that how to stop the accumulation of Sangha. He decided to limit the clothes and fixed himself as the medium of severe examination. He came out of Gautam Chaitya and lay down on the ground. It was normal cold, covered the body by taking a shirt. The velocity of coolness increased in the night; In the middle of the day he put on another cloak. In the third or last hour, the sky turned red; Seeing the height of winter, Lord Buddha put on the third cloak. It is morning.’Each monk’s work can go on with only three clothes; Accumulation of excess can lead to increase in sin, there will be laxity in the Sangh.’ Tathagata invited the monk association and gave permission. Shastane saved the Sangh’s disinterested attitude from being tarnished. He used the sacrificial experience of his life for the benefit of others. – Ra 0 Shri 0 (Buddhacharya)