एक बार एक ग्रीक राजा एक बौद्ध भिक्षुके पास गया। उसने उस भिक्षुसे, जिसका नाम नागसेन था, पूछा- ‘महाराज ! आप कहते हैं कि हमारे व्यक्तित्वमें कोई वस्तु ऐसी नहीं है, जो स्थिर हो। फिर यह बताइये कि वह क्या है, जो संघके सदस्योंको आज्ञा देता है, पवित्र जीवन व्यतीत करता है, उपासना करता है, निर्वाण प्राप्त करता है, पाप-पुण्यका फल भोगता है ? आपको संघके सदस्य नागसेन कहते हैं? यह नागसेन कौन है ? क्या सिरके बाल नागसेन हैं ?’
भिक्षुने कहा- ऐसा नहीं है। राजाने फिर पूछा- क्या ये दाँत, मांस, मस्तिष्क आदि नागसेन हैं ?
उसने कहा- नहीं।
राजाने फिर पूछा- फिर क्या आकार, वेदनाएँ अथवा संस्कार नागसेन हैं ? उसने उत्तर दिया- नहीं।
राजाने फिर पूछा- क्या ये सब वस्तुएँ मिलकर
नागसेन हैं? या इनके बाहर कोई ऐसी वस्तु है, जो नागसेन है ?
उसने फिर कहा- नहीं। राजाने अब कहा—तो फिर नागसेन कुछ नहीं है।
जिसे हम अपने सामने देखते हैं और नागसेन कहते हैं, वह नागसेन कौन है ?
अब भिक्षु नागसेनने राजासे कहा- राजन् ! क्या आप पैदल आये हैं ?
राजाने उत्तर दिया- नहीं, रथपर । तब उसने पूछा-फिर तो आप जरूर जानते होंगे
कि रथ क्या है। क्या यह पताका रथ है ? राजाने कहा- नहीं। उसने पूछा- क्या ये पहिये या धुरी रथ है ?
राजाने कहा- नहीं।
उसने फिर पूछा- फिर क्या ये रस्सियाँ या चाबुक रथ है ?
राजाने कहा- नहीं।
उसने पूछा- क्या इन सबके बाहर कोई चीज है, जो रथ है ?
राजाने कहा- नहीं।
उसने कहा- तो फिर रथ कुछ नहीं है। जिसे हमअपने सामने देखते हैं और रथ कहते हैं, वह क्या है ? राजा बोला- ये सब साथ होनेपर ही उसे रथ कहते हैं, महात्मन् !इसपर भिक्षु नागसेनने कहा- राजन् ! ठीक है । ये सब वस्तुएँ मिलकर ही रथ हैं। इसी प्रकार पाँच स्कन्धोंके संघातके अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।
Once a Greek king went to a Buddhist monk. He asked that monk, whose name was Nagsen – ‘ Maharaj! You say that there is nothing in our personality that is stable. Then tell what is that, which commands the members of the Sangha, leads a holy life, worships, attains nirvana, reaps the fruits of sin and virtue? You are called Nagsen, a member of the Sangh? Who is this Nagsen? Is Sirke Baal Nagsen?’
The monk said – it is not so. The king again asked – Are these teeth, flesh, brain etc. snakes?
He said – no.
The king again asked – then what shape, pains or sanskars are Nagsen? He replied – no.
The king again asked – are all these things together?
Are you Nagsen? Or is there any such thing outside these, which is Nagsen?
He again said – no. The king now said – then Nagsen is nothing.
The one whom we see in front of us and call Nagsen, who is that Nagsen?
Now monk Nagsen said to the king – Rajan! have you come on foot
The king replied – No, on the chariot. Then he asked – then you must know
What is that chariot? Is this the flag chariot? The king said – no. He asked – are these wheels or axle chariot?
The king said – no.
He asked again – then are these ropes or whips a chariot?
The king said – no.
He asked- Is there anything outside all these, which is the chariot?
The king said – no.
He said – then the chariot is nothing. What we see in front of us and called the chariot, what is that? The king said – Only when all these are together, it is called a chariot, great man! On this, monk Nagsen said – Rajan! Okay . All these things together are the Chariot. Similarly, there is nothing other than the union of the five wings.