महामतिमान् आचार्य चाणक्य
मैगस्थनीज यूनानका राजदूत बनकर जब भारत आया तब उसने चन्द्रगुप्त मौर्यके प्रधानमन्त्री चाणक्यकी प्रशंसा सुनकर उनसे मिलनेकी इच्छासे जिज्ञासा की कि उनका भवन कहाँ है? लोगोंने बताया- गंगाके तटपर उनका निवास है। वह गंगाके तटपर पहुँचा, वहाँ अनेक झोपड़ियाँ दीखीं। कोई भवन नहीं दीखा तो उसे लगा लोगोंने गलत बता दिया। वहाँ लोगोंसे पुनः जिज्ञासा की, तो लोगोंने बताया आप उनके घरके पास ही खड़े हैं। उसे आश्चर्य हुआ कि भारतका प्रधानमन्त्री इतनी सामान्य सी झोपड़ी में रहता है। वह झोपड़ीके अन्दर गया तो देखा कि एक प्रौढ़ व्यक्ति सामान्य सी चटाईपर बैठे हुए दीपककी रोशनीमें कुछ कार्य कर रहे हैं। मैगस्थनीजने उसे चाणक्यका नौकर समझकर उनसे निवेदन किया ‘आप प्रधानमन्त्रीको अन्दर जाकर सूचना दें, मैं उनसे मिलने आया हूँ।’ उन्होंने पूछा- ‘आप किस कामसे आये हैं, मुझे बताइये।’ मैगस्थनीजने कहा- ‘मैं उन्हें ही बताऊँगा। कृपया आप उन्हें सूचना दें।’ कई बार कहनेपर उस व्यक्तिने कहा-‘आप बताइये क्या काम है, मैं ही प्रधानमन्त्री हूँ।’ आश्चर्य हुआ ! सामान्य सी चटाई, सामान्य सी पोशाक! पर तब चाणक्यने बताया, ‘राजभवन जाता हूँ तो पोशाकमें थोड़ा परिवर्तन हो जाता है, मैं ऐसे ही रहता हूँ। बताया ‘मैं यूनानसे राजदूतके रूपमें आया हूँ ।” चाणक्यने बताया- ‘हाँ, मुझे पता है।’ आपको कैसे पता है ? ‘आपने जबसे हमारी सीमामें प्रवेश किया है, तबसे अबतककी सारी सूचना मुझे है। मेरे आदमी सादे वेशमें आपसे पूछताछ करते रहे हैं, वे सब प्रशासनके ही व्यक्ति हैं।’ मैगस्थनीजको आश्चर्य हुआ, गुप्तचरतन्त्र इतना चुस्त और सक्रिय है! तदनन्तर मैगस्थनीजने कहा- ‘मैं प्रशासन-तन्त्रके बारेमें बादमें जानना चाहूँगा, पहले मैं आपके व्यक्तिगत जीवनके विषयमें जानना चाहता हूँ। चाणक्यके पास दो दीपक रखे हुए थे। एक जल रहा था। उससे दूसरा दीपक जलाकर उन्होंने पहलेवाला दीपक बुझा दिया।
मैगस्थनीजको यह बात समझमें नहीं आयी। जलते हुए दीपकको तो बुझा दिया और दूसरा जलाया। उसने इस विषयमें जिज्ञासा की। तब चाणक्यने बताया- ‘मैं राजकार्य कर रहा था, तो यह दीपक राजकीय पैसेके तेलसे जल रहा था और यह दीपक व्यक्तिगत कार्यके लिये है। इसके तेलकी व्यवस्था मैं अपने व्यक्तिगत खर्चसे करता हूँ। व्यक्तिगत कार्यके समयमें राजकीय दीपकका उपयोग नहीं करता। आपने कहा मुझे आपके व्यक्तिगत जीवनके विषयमें जिज्ञासा है, अतः राजकीय दीपकको बुझाकर व्यक्तिगत दीपकको जला लिया।
मैगस्थनीज यह सब देखकर आश्चर्यमें पड़ गया उनके जीवनकी सादगी, सरलता, प्रशासनकी सुविधासे निर्लेपता और इतनी चुस्त-सक्रिय गुप्तचरीय व्यवस्था, जो कुशल प्रशासनके लिये आवश्यक है। भारतके प्रधानमन्त्रीके पदपर होकर भी उसको कोई अहंकार नहीं, जिस देशमें ऐसा प्रधानमन्त्री होगा, उसको कौन पराजित कर सकता है। उसे भारतकी एवं चाणक्यकी सफलताका रहस्य समझमें आ गया।
चाणक्यके प्रधानमन्त्रित्वकालमें प्रसिद्ध चीनी यात्री युआन च्वांग (हेनत्सांग) आया था। वह अपने संस्मरणमें लिखता है-‘उस समय भारतकी प्रजा सम्पन्न और सुखी थी। लोग सत्यवादी थे। सदाचारमें निरत रहते थे, कोई दुराचारी नहीं था, अपराध नहीं होते थे। सभी एक-दूसरेपर विश्वास करते थे। न्यायालयोंमें आपराधिक अभियोग निर्णयाधीन नहीं थे। कारागृहमें भी कोई अपराधी नहीं था। लोग घरोंमें ताले नहीं लगाते थे; क्योंकि चोर डाकू नहीं थे।’
ह्वेनसांगने अपने संस्मरणमें यह भी लिखा है
कि चाणक्यके कुटीरमें एक गाय बंधी थी। आवश्यक हवन सामग्री भी थी। दो उत्तरीय वस्त्र (ऊपर पहना जानेवाला वस्त्र), दो अधोवस्त्र (नीचे पहना जानेवाला वस्त्र), दो कौपीन (लंगोटी) भी थे। अति सीमित आवश्यक एवं अपेक्षित खाद्य सामग्री भी थी। इसपर मैंने उनसे चकित होकर पूछा कि क्या आपके पास इतनी ही सामग्री एवं सम्पत्ति है ?’ चाणक्यने बड़े इतमीनान (सन्तोष) के साथ कहा कि ‘बस, इतनी सामग्री मेरे लिये पर्याप्त है, इससे अधिक सामग्रीके उपयोगका मैं अभ्यस्त नहीं हूँ। शीत-उष्ण, आँधी तूफान, वर्षादिसे बचनेके लिये कुटीर पर्याप्त है। गायसे वांछित मात्रामें दूध, दही, घृतादि मिल जाते हैं। उत्तरीय वस्त्र, अधोवस्त्र तथा कौपीन दो-दो इसलिये रखते हैं कि स्नानोपरान्त भीगे वस्त्रको धोकर देते हैं, दूसरा सूखा हुआ वस्त्र पहन लेते हैं। हवन सामग्रीको देवताओंके निमित्तसे अग्निमें आहुति देते हैं, जिससे देवताओंके प्रसन्न होनेसे आधिदैविक तापों अति गर्मी-सर्दी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अतिवायु यानी | अन्धड़-तूफानजन्य दुःखकी निवृत्ति हो जाती है। साथ ही हवनके धुएैसे वायुमण्डल भा स्वच्छ हो जाता है। भोजन-सामग्री—जितनेसे क्षुधानिवृत्ति हो जाती है, उतनी मात्रामें रखनी पर्याप्त है, अधिक संग्रह करनेसे उसकी सुरक्षाकी चिन्ता करनी पड़ती है।’ ह्वेनत्सांगने लिखा है कि ‘चाणक्य-जैसा आचरण करनेसे ही राजा तथा प्रजाका सब प्रकारसे कल्याण होता है।’
महामतिमान् आचार्य चाणक्य
मैगस्थनीज यूनानका राजदूत बनकर जब भारत आया तब उसने चन्द्रगुप्त मौर्यके प्रधानमन्त्री चाणक्यकी प्रशंसा सुनकर उनसे मिलनेकी इच्छासे जिज्ञासा की कि उनका भवन कहाँ है? लोगोंने बताया- गंगाके तटपर उनका निवास है। वह गंगाके तटपर पहुँचा, वहाँ अनेक झोपड़ियाँ दीखीं। कोई भवन नहीं दीखा तो उसे लगा लोगोंने गलत बता दिया। वहाँ लोगोंसे पुनः जिज्ञासा की, तो लोगोंने बताया आप उनके घरके पास ही खड़े हैं। उसे आश्चर्य हुआ कि भारतका प्रधानमन्त्री इतनी सामान्य सी झोपड़ी में रहता है। वह झोपड़ीके अन्दर गया तो देखा कि एक प्रौढ़ व्यक्ति सामान्य सी चटाईपर बैठे हुए दीपककी रोशनीमें कुछ कार्य कर रहे हैं। मैगस्थनीजने उसे चाणक्यका नौकर समझकर उनसे निवेदन किया ‘आप प्रधानमन्त्रीको अन्दर जाकर सूचना दें, मैं उनसे मिलने आया हूँ।’ उन्होंने पूछा- ‘आप किस कामसे आये हैं, मुझे बताइये।’ मैगस्थनीजने कहा- ‘मैं उन्हें ही बताऊँगा। कृपया आप उन्हें सूचना दें।’ कई बार कहनेपर उस व्यक्तिने कहा-‘आप बताइये क्या काम है, मैं ही प्रधानमन्त्री हूँ।’ आश्चर्य हुआ ! सामान्य सी चटाई, सामान्य सी पोशाक! पर तब चाणक्यने बताया, ‘राजभवन जाता हूँ तो पोशाकमें थोड़ा परिवर्तन हो जाता है, मैं ऐसे ही रहता हूँ। बताया ‘मैं यूनानसे राजदूतके रूपमें आया हूँ ।” चाणक्यने बताया- ‘हाँ, मुझे पता है।’ आपको कैसे पता है ? ‘आपने जबसे हमारी सीमामें प्रवेश किया है, तबसे अबतककी सारी सूचना मुझे है। मेरे आदमी सादे वेशमें आपसे पूछताछ करते रहे हैं, वे सब प्रशासनके ही व्यक्ति हैं।’ मैगस्थनीजको आश्चर्य हुआ, गुप्तचरतन्त्र इतना चुस्त और सक्रिय है! तदनन्तर मैगस्थनीजने कहा- ‘मैं प्रशासन-तन्त्रके बारेमें बादमें जानना चाहूँगा, पहले मैं आपके व्यक्तिगत जीवनके विषयमें जानना चाहता हूँ। चाणक्यके पास दो दीपक रखे हुए थे। एक जल रहा था। उससे दूसरा दीपक जलाकर उन्होंने पहलेवाला दीपक बुझा दिया।
मैगस्थनीजको यह बात समझमें नहीं आयी। जलते हुए दीपकको तो बुझा दिया और दूसरा जलाया। उसने इस विषयमें जिज्ञासा की। तब चाणक्यने बताया- ‘मैं राजकार्य कर रहा था, तो यह दीपक राजकीय पैसेके तेलसे जल रहा था और यह दीपक व्यक्तिगत कार्यके लिये है। इसके तेलकी व्यवस्था मैं अपने व्यक्तिगत खर्चसे करता हूँ। व्यक्तिगत कार्यके समयमें राजकीय दीपकका उपयोग नहीं करता। आपने कहा मुझे आपके व्यक्तिगत जीवनके विषयमें जिज्ञासा है, अतः राजकीय दीपकको बुझाकर व्यक्तिगत दीपकको जला लिया।
मैगस्थनीज यह सब देखकर आश्चर्यमें पड़ गया उनके जीवनकी सादगी, सरलता, प्रशासनकी सुविधासे निर्लेपता और इतनी चुस्त-सक्रिय गुप्तचरीय व्यवस्था, जो कुशल प्रशासनके लिये आवश्यक है। भारतके प्रधानमन्त्रीके पदपर होकर भी उसको कोई अहंकार नहीं, जिस देशमें ऐसा प्रधानमन्त्री होगा, उसको कौन पराजित कर सकता है। उसे भारतकी एवं चाणक्यकी सफलताका रहस्य समझमें आ गया।
चाणक्यके प्रधानमन्त्रित्वकालमें प्रसिद्ध चीनी यात्री युआन च्वांग (हेनत्सांग) आया था। वह अपने संस्मरणमें लिखता है-‘उस समय भारतकी प्रजा सम्पन्न और सुखी थी। लोग सत्यवादी थे। सदाचारमें निरत रहते थे, कोई दुराचारी नहीं था, अपराध नहीं होते थे। सभी एक-दूसरेपर विश्वास करते थे। न्यायालयोंमें आपराधिक अभियोग निर्णयाधीन नहीं थे। कारागृहमें भी कोई अपराधी नहीं था। लोग घरोंमें ताले नहीं लगाते थे; क्योंकि चोर डाकू नहीं थे।’
ह्वेनसांगने अपने संस्मरणमें यह भी लिखा है
कि चाणक्यके कुटीरमें एक गाय बंधी थी। आवश्यक हवन सामग्री भी थी। दो उत्तरीय वस्त्र (ऊपर पहना जानेवाला वस्त्र), दो अधोवस्त्र (नीचे पहना जानेवाला वस्त्र), दो कौपीन (लंगोटी) भी थे। अति सीमित आवश्यक एवं अपेक्षित खाद्य सामग्री भी थी। इसपर मैंने उनसे चकित होकर पूछा कि क्या आपके पास इतनी ही सामग्री एवं सम्पत्ति है ?’ चाणक्यने बड़े इतमीनान (सन्तोष) के साथ कहा कि ‘बस, इतनी सामग्री मेरे लिये पर्याप्त है, इससे अधिक सामग्रीके उपयोगका मैं अभ्यस्त नहीं हूँ। शीत-उष्ण, आँधी तूफान, वर्षादिसे बचनेके लिये कुटीर पर्याप्त है। गायसे वांछित मात्रामें दूध, दही, घृतादि मिल जाते हैं। उत्तरीय वस्त्र, अधोवस्त्र तथा कौपीन दो-दो इसलिये रखते हैं कि स्नानोपरान्त भीगे वस्त्रको धोकर देते हैं, दूसरा सूखा हुआ वस्त्र पहन लेते हैं। हवन सामग्रीको देवताओंके निमित्तसे अग्निमें आहुति देते हैं, जिससे देवताओंके प्रसन्न होनेसे आधिदैविक तापों अति गर्मी-सर्दी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अतिवायु यानी | अन्धड़-तूफानजन्य दुःखकी निवृत्ति हो जाती है। साथ ही हवनके धुएैसे वायुमण्डल भा स्वच्छ हो जाता है। भोजन-सामग्री—जितनेसे क्षुधानिवृत्ति हो जाती है, उतनी मात्रामें रखनी पर्याप्त है, अधिक संग्रह करनेसे उसकी सुरक्षाकी चिन्ता करनी पड़ती है।’ ह्वेनत्सांगने लिखा है कि ‘चाणक्य-जैसा आचरण करनेसे ही राजा तथा प्रजाका सब प्रकारसे कल्याण होता है।’