23 मार्च 1931 की रातमें लाहौर जेलमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरुको श्रीगांधीजी आदिकी लाख चेष्टाके बाद भी फाँसी दे दी गयी। समाचार मिलते ही देशमें तीव्र रोष फैल गया। नेहरूजीने कहा ‘भगतसिंहकी लाश इंग्लैंड तथा हमलोगोंके बीचमें दरार जैसी रहेगी। ‘भगतसिंह जिंदाबाद’ का नारा भारतभरमें गूँज उठा। अंग्रेज अधिकारियोंने चेतावनी दी कि उनकी स्त्रियाँ दस दिनोंतक घरसे बाहर न निकलें। सर्वत्र रोषपूर्ण प्रदर्शन हुए। कलकत्तेमें तो प्रदर्शनकारियोंकी पुलिससे मुठभेड़ हो गयी और बहुत बड़ी संख्या में लोग मारे गये और घायल हुए। उन्हीं दिनों कराँचीमें कांग्रेस अधिवेशनके लिये उसके सदस्यगण एकत्र हो रहे थे। गांधीजी भी आये। वे ज्यों ही स्टेशनपर उतरे नवजीवन-सभाके सदस्योंने, जो लाल कुर्ते पहने हुए थे- ‘गांधी, लौट जाओ’ गांधीवाद नष्ट हो’ के नारे लगाये। साथ ही ‘भगतसिंह जिंदाबाद।’ ‘गांधीजीकी युद्धविराम घोषणाने ही भगतसिंहको फाँसीके तख्तेपर भेजा है’ आदि नारोंके साथ काले झंडे भी दिखलाये गये।
पर गांधीजी इससे तनिक भी अप्रसन्न न हुए। उलटे उन्होंने एक वक्तव्य प्रकाशित करके उनकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा—‘यद्यपि वे अत्यन्त दुःखी तथा क्रुद्ध थे—वे चाहते तो मुझे शारीरिक क्षति पहुँचा सकते थे तथा वे अन्य कई प्रकारसे मुझे अधिक अपमानित कर सकते थे फिर भी उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। केवल काले फूल तथा कपड़ोंसे मेरा स्वागत किया! जहाँतक मैं समझता हूँ, इससे उन्होंने उन तीन स्वर्गीय देशभक्तोंके फूल (भस्म) का अभिप्राय व्यक्त किया है। मैं उनसे बैठक समाप्त होनेतक इसी शिष्टताकी आशा करता हूँ; क्योंकि वे यह जानते और मानते हैं कि मैं भी उसी लक्ष्य के लिये प्रयत्नशील हूँ, जिसके लिये वे प्रयत्न कर रहे हैं। भेद केवल इतना ही है कि हमारे मार्ग कुछ कुछ भिन्न हैं। भगतसिंहकी वीरता तथा त्यागके सामने किसका सिर न झुकेगा; पर मेरा यह अनुमान भी गलतनहीं है कि हमलोग जिस देश कालमें रह रहे हैं, यह वीरता कम मिलेगी। फिर पूर्ण अहिंसाका पालन तो शायद इससे भी बड़ी वीरता है। ‘गांधीजीके शब्दोंका उनपर बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने तत्काल उनके प्रति अपने हार्दिक प्रेमका परिचय दिया ।
— जा0 श0
On the night of March 23, 1931, Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru were hanged in Lahore Jail even after lakhs of efforts by Shri Gandhiji etc. As soon as the news was received, intense anger spread in the country. Nehruji said, ‘Bhagat Singh’s dead body will remain like a rift between England and us. The slogan of ‘Bhagat Singh Zindabad’ resounded across India. The British officials warned that their women should not leave the house for ten days. There were angry demonstrations everywhere. In Calcutta, the protesters had an encounter with the police and a large number of people were killed and injured. In those days its members were gathering for the Congress session in Karachi. Gandhiji also came. As soon as he got down at the station, the members of Navjeevan Sabha, who were wearing red kurtas, raised slogans ‘Gandhi, go back’, ‘Gandhism should be destroyed’. Also ‘Bhagat Singh Zindabad’. Black flags were also shown along with slogans like ‘Gandhiji’s ceasefire declaration has sent Bhagat Singh to the gallows’ etc.
But Gandhiji was not displeased at all with this. On the contrary, he published a statement praising him. He said—’Though he was very sad and angry—he could have physically hurt me if he wanted to and he could have humiliated me more in many other ways, yet he did nothing. Welcomed me only with black flowers and clothes! As far as I understand, by this he has expressed the meaning of the flower (bhasma) of those three heavenly patriots. I expect the same courtesy from him till the end of the meeting; Because they know and believe that I am also striving for the same goal for which they are striving. The only difference is that our paths are somewhat different. Whose head would not bow before Bhagat Singh’s bravery and sacrifice; But my guess is also not wrong that in the times in which we are living, this bravery will be less. Then the observance of complete non-violence is perhaps even greater bravery than this. Gandhiji’s words had a great impact on her and she immediately confessed her heartfelt love for him.
Ja0 Sh0