अहमदाबादके प्रसिद्ध संत महाराज सरयूदासके जीवनकी एक घटना है; उनके पूर्वाश्रमकी बात है। वे साधु-संतोंकी सेवामें बड़ा रस लेते थे। यदि उनके कानमें साधु-महात्माओंके आगमनका समाचार पड़ जाता तो सारे काम-काज छोड़कर वे उनका दर्शन करने चल पड़ते थे।
एक दिन वे अपनी दूकानपर बैठे हुए थे, इतनेमें अचानक उन्हें पता चला कि गाँवके बाहर पेड़के नीचे कुछ संत अभी-अभी आकर विश्राम कर रहे हैं। उन्होंने तुरंत दूकान बंद कर दी और खड़ी दोपहरी में उनके दर्शनके लिये दौड़ पड़े। मध्याह्न -कालका सूर्य बड़े जोरसे तप रहा था। तेजीसे चलनेके नाते उनका शरीर श्रान्त-क्लान्त हो गया और पसीनेसे भीग गया था।
‘महाराज ! दास सेवामें उपस्थित है। इस गाँवका परम सौभाग्य है कि आपने अपनी चरण-धूलिसेइसको पवित्र कर दिया। बड़े पुण्यसे आप ऐसे महात्माओंका दर्शन होता है।’ सरयूदासने उनका चरणस्पर्श किया और उनकी चरण-‘ स्वस्थ हो गये। – धूलि – गङ्गामें स्नान करके
मध्याह्नकाल समाप्त हो रहा था। ऐसी स्थितिमें गाँवमें भिक्षा माँगनेके लिये निकलना कदापि उचित नहीं था। संतोंको बड़ी भूख लगी थी, पर वे संकोचवश कुछ कह नहीं पाते थे । श्रद्धालु सरयूदाससे यह बात छिपी नहीं रह सकी। वे तुरंत घर गये। भोजनालय में देखा तो आटा केवल दो-ढाई सेर ही था। उन्होंने घरवालोंको छेड़ना उचित नहीं समझा और स्वयं आटेकी चक्कीपर गेहूँ पीसने बैठ गये। भोजनकी सारी आवश्यक सामग्री लेकर वे संतोंकी सेवामें उपस्थित हुए। उन्होंने बड़े प्रेमसे भोजन किया। वे सरयूदासजीकी श्रद्धा और सेवासे बहुत प्रसन्न हुए तथा उनके संत प्रेमकी बड़ी सराहना की।
-रा0 श्री0
There is an incident in the life of famous saint Maharaj Saryudas of Ahmedabad; It is a matter of his previous practice. He used to take great interest in the service of sages and saints. If the news of the arrival of sages and saints reached his ears, he used to leave all his work and go to visit them.
One day he was sitting at his shop, when suddenly he came to know that some saints had just come and rested under the tree outside the village. He immediately closed the shop and ran to see him in the steep afternoon. The afternoon sun was burning very hot. Due to his fast walking, his body became tired and was drenched with sweat.
‘King ! Das is present in the service. It is a great fortune of this village that you have made it sacred with the dust of your feet. With great virtue one gets the darshan of such great souls.’ Saryu Das touched his feet and his feet became healthy. – Dhuli – By bathing in the Ganges
The afternoon was coming to an end. In such a situation, it was never right to go to the village for begging. The saints were very hungry, but they were hesitant to say anything. This thing could not remain hidden from Shraddhalu Saryudas. They immediately went home. When I saw in the restaurant, the flour was only two to two and a half seers. He did not think it appropriate to tease the family members and himself sat down to grind wheat at the flour mill. Taking all the necessary food items, he appeared in the service of the saints. He ate with great love. He was very pleased with the devotion and service of Saryudasji and greatly appreciated his saintly love.