संत बोनीफेसके जीवनकी एक सरस कथा है। उनका पालन-पोषण देवनके पहाड़ी वातावरणमें हुआ था। बचपनसे ही वे एकान्तमें निवास कर भगवान्के प्रेमामृतका रसास्वादन किया करते थे। उनके पिताने बोनीफेसको पूर्ण स्वतन्त्रता दे दी थी कि वे आजीवनभगवान्का भजन करते रहें तथा दीन-दु:खियों और असहायोंकी सेवामें लगे रहें। उनका जीवन पूर्ण भागवत था।
एक समयकी बात है। वे भगवान्की मधुर भक्तिका प्रचार करनेके लिये जर्मनीके किसी देहातीक्षेत्रमें जा रहे थे। दैवयोगसे काले वन (ब्लैक फोरेस्ट)-में पहुँच गये। वे थकावट और प्याससे परिश्रान्त थे सारा शरीर शिथिल हो गया था । पानीके लिये व्याकुल थे, पर उस निर्जन वनमें पानी मिलना कठिन ही था।
‘माँ! थोड़ा-सा दूध मुझे भी दे दो, नहीं तो प्राण निकल जायँगे।’ संतने एक महिलासे निवेदन किया जो थोड़ी दूरपर गाय दुह रही थी। बोनीफेसको देखकर उसके हृदयमें दयाके घन उमड़ आये। वह दूध देनेवाली ही थी कि उसका पति आ गया और उसे ऐसा करनेसे रोक दिया।
बोनीफेस धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे! वे गिरते पड़ते कुछ दूर गये ही थे कि एक शिलाखण्डके निकट पहुँचते ही पृथ्वीसे एक सोता फूट निकला, जिसकाजल अत्यन्त निर्मल और शीतल था। बोनीफेसने भगवान्की कृपाको धन्यवाद दिया और उस प्रेम निर्झरिणीके मनोरम तटपर बैठकर अपनी प्यास शान्त की ।
वह महिला भी जलको देखकर प्रसन्नतासे नाच उठी और घड़ा लेकर पहुँच गयी।
‘माँ! तुम्हारे हृदयमें दीन-दुःखियोंके लिये अपार दया है। तुम इस प्रेमके झरनेका पानी ले सकती हो। पर स्मरण रखो कि द्वेषी, अक्षमाशील और दूसरोंसे घृणा करनेवाले व्यक्तिका कर-स्पर्श होते ही निर्झरिणीका जल सूख जायगा।’
उसका नाम बोनीफेस-निर्झरिणी है और उसके तटपर जाते ही लोगोंका मन प्राणिमात्रके प्रति प्रेमभावसे सम्पन्न हो उठता है। रा0 श्री0
There is a juicy story from the life of St. Boniface. He was brought up in the mountainous environment of Devan. From childhood, he used to live in solitude and relish the nectar of God’s love. His father had given complete freedom to Boniface that he should continue to worship God throughout his life and be engaged in the service of the poor and the helpless. His life was full of devotion.
Once upon a time. He was going to some rural area in Germany to preach the sweet devotion of the Lord. Reached the black forest by accident. He was tired and thirsty, the whole body was relaxed. They were desperate for water, but it was difficult to get water in that deserted forest.
‘Mother! Give me some milk too, otherwise I will die.’ The saint requested a woman who was milking a cow at a distance. Seeing Boniface, his heart welled up with pity. She was about to give milk when her husband came and stopped her from doing so.
Boniface slowly began to advance! They had gone some distance while falling that as soon as they reached near a boulder, a spring erupted from the earth, whose water was very pure and cool. Boniface thanked God for his grace and quenched his thirst by sitting on the lovely banks of that fountain of love.
Seeing the water, that woman also danced happily and reached with the pot.
‘Mother! You have immense compassion in your heart for the poor. You can take water from this spring of love. But remember that the water of the spring will dry up as soon as a person who is hateful, unforgiving and hates others touches it.’
Its name is Boniface-Nirjharini and as soon as people go to its banks, people’s hearts get filled with love for all living beings. Ra0 Mr.0