एक बार एक पुण्यात्मा गृहस्थके घर एक अतिथि आये उसके शरीरपर सारे कपड़े काले थे। गृहस्थने तनिक खिन्नतासे कहा- तुमने काले कपड़े क्यों पहन रखे हैं?मेरे काम, क्रोधादि मित्रोंकी मृत्यु हो गयी है। उन्हींके शोकमें ये काले वस्त्र धारण कर लिये हैं। अतिथिने उत्तर दिया। गृहस्थने उक्त अतिथिको घरसे बाहर निकालदेनेका आदेश दिया। नौकरने तत्काल आज्ञा-पालन की। थोड़ी देर बाद उन्होंने उस अतिथिको वापस बुलाया और पास आते ही फिर निकाल देनेकी आज्ञा दी। इस प्रकार गृहस्थने उक्त अतिथिको सत्तर बार बुलाया और प्रत्येक बार उसे अपमानित करके नौकरसे बाहर निकलवा दिया। किंतु अतिथिकी आकृतिपर तनिक भी क्रोध या विषादके भाव परिलक्षित नहीं हुए।
अन्तमें गृहस्थने आगे बढ़कर अतिथिका माथा सूँघा और बड़े ही विनयसे कहा – सचमुच आप कावे (काले वस्त्र) पहननेके अधिकारी हैं, क्योंकि सत्तर बार अपमानके साथ घरसे बाहर निकाल देनेपर भी आपकेमनोभावमें परिवर्तन नहीं हुआ। आप सच्चे विनयी तथा क्षमाशील भक्त हैं, मैंने आपको क्रोध दिलानेके प्रयत्न करनेमें कोई कसर नहीं रखी, पर आखिर मैं ही हारा।
अतिथि बोले- बस करो, बस करो; अधिक प्रशंसा मत करो। मुझसे अधिक स्वभावसे ही क्षमाशील और धर्मात्मा तो बेचारे कुत्ते होते हैं जो हजारों बार बुलाने और दुत्कारते रहनेपर भी बराबर आते-जाते रहते हैं। यह तो कुत्तोंका धर्म है। इसमें प्रशंसाकी कौन-सी बात है।
यों कहकर अतिथि अपने प्रशंसकोंका मुँह पकड़ लिया।
– शि0 दु0
Once a guest came to the house of a pious householder, all his clothes were black. The householder said with a little sadness – why are you wearing black clothes? My work, anger etc. friends have died. In their mourning, they have worn black clothes. The guest replied. The householder ordered the said guest to be thrown out of the house. The servant immediately obeyed. After a while, he called that guest back and as soon as he came near, he again ordered to be removed. In this way, the householder called the said guest seventy times and each time insulted him and got him out of the servant. But there was not the least bit of anger or sadness reflected on the face of the guest.
At last, the householder went ahead and smelled the guest’s forehead and said very politely – You are really entitled to wear black clothes, because even after being thrown out of the house with insults seventy times, your attitude did not change. You are a true humble and forgiving devotee, I spared no effort in trying to make you angry, but in the end I lost.
Guest said – just do it, just do it; Don’t praise too much. There are poor dogs who are more forgiving and pious by nature than me, who keep on coming and going even after calling and scolding thousands of times. This is the religion of dogs. What is there to praise in this?
By saying this, the guest caught the mouth of his fans.