एक साधुने ईश्वरप्राप्तिकी साधनाके लिये कठिन तप करते हुए छ: वर्ष एकान्त गुफामें बिताये और प्रभुसे प्रार्थना की कि ‘प्रभो! मुझे अपने आदर्शके समान ही ऐसा कोई उत्तम महापुरुष बतलाइये, जिसका अनुकरण करके मैं अपने साधनपथमें आगे बढ़ सकूँ।’साधुने जिस दिन ऐसा चिन्तन किया, उसी दिन रात्रिको एक देवदूतने आकर उससे कहा- ‘यदि तेरी इच्छा सद्गुणी और पवित्रतामें सबका मुकुटमणि बननेकी हो तो उस मस्त भिखारीका अनुकरण कर जो कविता गाता हुआ इधर-उधर भटकता और भीखlमाँगता फिरता है।’ देवदूतकी बात सुनकर तपस्वी साधु मनमें जल उठा, परंतु देवदूतका वचन समझकर क्रोधके आवेशमें ही उस भिखारीकी खोजमें चल दिया और उसे खोजकर बोला कि ‘भाई! तूने ऐसे कौन-से सत्कर्म किये हैं, जिनके कारण ईश्वर तुझपर इतने अधिक प्रसन्न हैं ?’
उसने तपस्वी साधुको नमस्कार करके कहा ‘पवित्र महात्मा! मुझसे दिल्लगी न कीजिये। मैंने न तो कोई सत्कर्म किया, न कोई तपस्या की और न कभी प्रार्थना ही की! मैं तो कविता गा-गाकर लोगोंका मनोरञ्जन करता हूँ और ऐसा करते जो रूखा-सूखा टुकड़ा मिल जाता है उसीको खाकर संतोष मानता हूँ।’ तपस्वी साधुने फिर आग्रहपूर्वक कहा- ‘नहीं, नहीं, तूने कोई सत्कार्य अवश्य किया है।’ भिखारीने नम्रतासे कहा, ‘महाराज! मैंने कोई सत्कार्य किया हो, ऐसा मेरी जानमें तो नहीं है। ‘
इसपर साधुने उससे फिर पूछा, ‘अच्छा बता, तू भिखारी कैसे बना? क्या तूने फिजूलखर्चीमें पैसा उड़ा दिये, अथवा किसी दुर्व्यसनके कारण तेरी ऐसी हालत हो गयी।’
भिखारी कहने लगा- ‘महाराज ! न मैंने फिजूलखर्चीमेंपैसे उड़ाये और न किसी व्यसनके कारण ही मैं भिखारी बना। एक दिनकी बात है, मैंने देखा एक गरीब स्त्री घबरायी हुई-सी इधर-उधर दौड़ रही है, उसका चेहरा उतरा हुआ है। पता लगानेपर मालूम हुआ कि उसके पति और पुत्र कर्जके बदलेमें गुलाम बनाकर बेच दिये गये हैं। बहुत खूबसूरत होनेके कारण कुछ लोग उसपर भी अपना कब्जा करना चाहते हैं। यह जानकर मैं उसे ढाढ़स देकर अपने घर ले आया और उसकी उनके अत्याचारसे रक्षा की। फिर मैंने अपनी सारी सम्पत्ति साहूकारोंको देकर उसके पति-पुत्रोंको गुलामीसे छुड़ाया और उनको उससे मिला दिया। इस प्रकार मेरी सारी सम्पत्ति चली जानेसे मैं दरिद्र हो गया और आजीविकाका कोई साधन न रहनेसे मैं अब कविता गा-गाकर लोगोंको रिझाता हूँ और इसीसे जो टुकड़ा मिल जाता है उसीको लेकर आनन्द मानता हूँ। पर इससे क्या हुआ ? ऐसा काम क्या और लोग नहीं करते ?’
भिखारीकी कथा सुनते ही तपस्वी साधुकी आँखोंसे मोती जैसे आँसू झरने लगे और वह उस भिखारीको हृदयसे लगाकर कहने लगा-‘मैंने अपनी जिंदगी में तेरे जैसा कोई काम नहीं किया। तू सचमुच आदर्श साधु है।’
एक साधुने ईश्वरप्राप्तिकी साधनाके लिये कठिन तप करते हुए छ: वर्ष एकान्त गुफामें बिताये और प्रभुसे प्रार्थना की कि ‘प्रभो! मुझे अपने आदर्शके समान ही ऐसा कोई उत्तम महापुरुष बतलाइये, जिसका अनुकरण करके मैं अपने साधनपथमें आगे बढ़ सकूँ।’साधुने जिस दिन ऐसा चिन्तन किया, उसी दिन रात्रिको एक देवदूतने आकर उससे कहा- ‘यदि तेरी इच्छा सद्गुणी और पवित्रतामें सबका मुकुटमणि बननेकी हो तो उस मस्त भिखारीका अनुकरण कर जो कविता गाता हुआ इधर-उधर भटकता और भीखlमाँगता फिरता है।’ देवदूतकी बात सुनकर तपस्वी साधु मनमें जल उठा, परंतु देवदूतका वचन समझकर क्रोधके आवेशमें ही उस भिखारीकी खोजमें चल दिया और उसे खोजकर बोला कि ‘भाई! तूने ऐसे कौन-से सत्कर्म किये हैं, जिनके कारण ईश्वर तुझपर इतने अधिक प्रसन्न हैं ?’
उसने तपस्वी साधुको नमस्कार करके कहा ‘पवित्र महात्मा! मुझसे दिल्लगी न कीजिये। मैंने न तो कोई सत्कर्म किया, न कोई तपस्या की और न कभी प्रार्थना ही की! मैं तो कविता गा-गाकर लोगोंका मनोरञ्जन करता हूँ और ऐसा करते जो रूखा-सूखा टुकड़ा मिल जाता है उसीको खाकर संतोष मानता हूँ।’ तपस्वी साधुने फिर आग्रहपूर्वक कहा- ‘नहीं, नहीं, तूने कोई सत्कार्य अवश्य किया है।’ भिखारीने नम्रतासे कहा, ‘महाराज! मैंने कोई सत्कार्य किया हो, ऐसा मेरी जानमें तो नहीं है। ‘
इसपर साधुने उससे फिर पूछा, ‘अच्छा बता, तू भिखारी कैसे बना? क्या तूने फिजूलखर्चीमें पैसा उड़ा दिये, अथवा किसी दुर्व्यसनके कारण तेरी ऐसी हालत हो गयी।’
भिखारी कहने लगा- ‘महाराज ! न मैंने फिजूलखर्चीमेंपैसे उड़ाये और न किसी व्यसनके कारण ही मैं भिखारी बना। एक दिनकी बात है, मैंने देखा एक गरीब स्त्री घबरायी हुई-सी इधर-उधर दौड़ रही है, उसका चेहरा उतरा हुआ है। पता लगानेपर मालूम हुआ कि उसके पति और पुत्र कर्जके बदलेमें गुलाम बनाकर बेच दिये गये हैं। बहुत खूबसूरत होनेके कारण कुछ लोग उसपर भी अपना कब्जा करना चाहते हैं। यह जानकर मैं उसे ढाढ़स देकर अपने घर ले आया और उसकी उनके अत्याचारसे रक्षा की। फिर मैंने अपनी सारी सम्पत्ति साहूकारोंको देकर उसके पति-पुत्रोंको गुलामीसे छुड़ाया और उनको उससे मिला दिया। इस प्रकार मेरी सारी सम्पत्ति चली जानेसे मैं दरिद्र हो गया और आजीविकाका कोई साधन न रहनेसे मैं अब कविता गा-गाकर लोगोंको रिझाता हूँ और इसीसे जो टुकड़ा मिल जाता है उसीको लेकर आनन्द मानता हूँ। पर इससे क्या हुआ ? ऐसा काम क्या और लोग नहीं करते ?’
भिखारीकी कथा सुनते ही तपस्वी साधुकी आँखोंसे मोती जैसे आँसू झरने लगे और वह उस भिखारीको हृदयसे लगाकर कहने लगा-‘मैंने अपनी जिंदगी में तेरे जैसा कोई काम नहीं किया। तू सचमुच आदर्श साधु है।’