चन्द्रमाके समान उज्ज्वल, सुपुष्ट, सुन्दर सींगोंवाली नन्दा नामकी गाय एक बार हरी घास चरती हुई वनमें अपने समूहकी दूसरी गायोंसे पृथक् हो गयी। दोपहर होनेपर उसे प्यास लगी और जल पीनेके लिये वह सरोवरकी ओर चल पड़ी; किंतु सरोवर जब समीप ही था, मार्ग रोककर खड़ा एक भयंकर सिंह उसे मिला। सिंहको देखते ही नन्दाके पैर रुक गये। वह घर-घर कौंपने लगी। उसके नेत्रोंसे आँसू बह चले।
भूखे सिंहने उस गायके सामने खड़े होकर कहा ‘अरी तू रोती क्यों है? क्या तू समझती है कि सदा जीवित रहेगी ? तू रो या हँस, अब जीवित नहीं रह सकती। मैं तुझे मारकर अपनी भूख मिटाऊँगा।’
गाय काँपते स्वरमें बोली- ‘वनराज! मैं अपनी मृत्युके भयसे नहीं रोती हूँ जो जन्म लेता है, उसे मरना पड़ता ही है। परंतु मैं आपको प्रणाम करती हूँ। जैसे आपने मुझसे बातचीत करनेकी कृपा की, वैसे ही मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कर लें।’
सिंहने कहा—’ अपनी बात तू शीघ्र कह डाल। मुझे बहुत भूख लगी है।’
गौ-‘मुझे पहिली बार ही एक बछड़ा हुआ है। मेरा वह बछड़ा अभी घास मुखमें भी लेना नहीं जानता। अपने उस एकमात्र बछड़के स्नेहसे ही मैं व्याकुल हो रही हूँ। आप मुझे थोड़ा-सा समय देनेकी कृपा करें, जिससे मैं जाकर अपने बछड़ेको अन्तिम बार दूध पिला दूँ, उसका सिर चाट लूँ और उसे अपनी सखियों तथा माताको सौंप दूँ यह करके मैं आपके पासआ जाऊँगी।’
सिंह–’तू तो बहुत चतुर जान पड़ती है, परंतु यह समझ ले कि मुझे तू ठग नहीं सकती। अपने पंजे में पड़े आहारको मैं छोड़नेवाला नहीं हूँ।’ गौ—’आप मुझपर विश्वास करें। मैं सत्यकी शपथ करके कहती हूँ कि बछड़ेको दूध पिलाकर मैं आपके पास शीघ्र आ जाऊँगी।’
सिंहने गौकी बहुत-सी शपथें सुनीं, उसके मनमें आया कि ‘मैं एक दिन भोजन न करूँ तो भी मुझे विशेष कष्ट नहीं होगा। आज इस गायकी बात मानकर ही देख लूँ।’ उसने गायको अनुमति दे दी – ‘अच्छा, तू जा; किंतु किसीके बहकावेमें आकर रुक मत जाना।’
नन्दा गौ सिंहकी अनुमति पाकर वहाँसे अपने आवासपर लौटी। बछड़ेके पास आकर उसकी आँखोंसे आँसूकी धारा चल पड़ी। वह शीघ्रतासे बछड़ेको चाटने लगी। बछड़ेने माताके रोनेका कारण पूछा। जब नन्दाने बताया कि वह सिंहको लौटनेका वचन दे आयी है, तब बछड़ेने कहा—’माता! मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूँगा।’
नन्दाकी बात सुनकर दूसरी गायोंने उसे सिंहके पास फिर जानेसे रोकना चाहा। उन्होंने अनेक युक्तियोंसे नन्दाको समझाया। परंतु नन्दा अपने निश्चयपर दृढ़ रही । | उसने सत्यकी रक्षाको ही अपना धर्म माना। बछड़ेको उसने पुचकारकर दूसरे गायोंको सौंप दिया; किंतु जब वह सिंहके पास पहुँची तब पूँछ उठाये ‘बाँ-बाँ’ करता उसका बछड़ा भी दौड़ा आया और अपनी माता तथा | सिंहके बीच में खड़ा हो गया । नन्दाने यह देखकरसिंहसे कहा-‘ -‘मृगेन्द्र ! मैं लौट आयी हूँ। आप मेरे इस अबोध बछड़ेपर दया करें। मुझे खाकर अब आप अपनी क्षुधा शान्त कर लें।’
सिंह गायकी सत्यनिष्ठासे प्रसन्न होकर बोला ‘कल्याणी! जो सत्यपर स्थिर है उसका अमङ्गल कभी नहीं हो सकता। अपने बछड़ेके साथ तुम जहाँ जानाचाहो, प्रसन्नतापूर्वक चली जाओ।’ उसी समय वहाँ जीवोंके कर्मनियन्ता धर्मराज प्रकट हुए। उन्होंने कहा – ‘नन्दा ! अपने सत्यके कारण बछड़ेके साथ तुम अब स्वर्गकी अधिकारिणी हो गयी हो और तुम्हारे संसर्गसे सिंह भी पापमुक्त हो गया है।’
– सु0 सिं0
चन्द्रमाके समान उज्ज्वल, सुपुष्ट, सुन्दर सींगोंवाली नन्दा नामकी गाय एक बार हरी घास चरती हुई वनमें अपने समूहकी दूसरी गायोंसे पृथक् हो गयी। दोपहर होनेपर उसे प्यास लगी और जल पीनेके लिये वह सरोवरकी ओर चल पड़ी; किंतु सरोवर जब समीप ही था, मार्ग रोककर खड़ा एक भयंकर सिंह उसे मिला। सिंहको देखते ही नन्दाके पैर रुक गये। वह घर-घर कौंपने लगी। उसके नेत्रोंसे आँसू बह चले।
भूखे सिंहने उस गायके सामने खड़े होकर कहा ‘अरी तू रोती क्यों है? क्या तू समझती है कि सदा जीवित रहेगी ? तू रो या हँस, अब जीवित नहीं रह सकती। मैं तुझे मारकर अपनी भूख मिटाऊँगा।’
गाय काँपते स्वरमें बोली- ‘वनराज! मैं अपनी मृत्युके भयसे नहीं रोती हूँ जो जन्म लेता है, उसे मरना पड़ता ही है। परंतु मैं आपको प्रणाम करती हूँ। जैसे आपने मुझसे बातचीत करनेकी कृपा की, वैसे ही मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कर लें।’
सिंहने कहा—’ अपनी बात तू शीघ्र कह डाल। मुझे बहुत भूख लगी है।’
गौ-‘मुझे पहिली बार ही एक बछड़ा हुआ है। मेरा वह बछड़ा अभी घास मुखमें भी लेना नहीं जानता। अपने उस एकमात्र बछड़के स्नेहसे ही मैं व्याकुल हो रही हूँ। आप मुझे थोड़ा-सा समय देनेकी कृपा करें, जिससे मैं जाकर अपने बछड़ेको अन्तिम बार दूध पिला दूँ, उसका सिर चाट लूँ और उसे अपनी सखियों तथा माताको सौंप दूँ यह करके मैं आपके पासआ जाऊँगी।’
सिंह-‘तू तो बहुत चतुर जान पड़ती है, परंतु यह समझ ले कि मुझे तू ठग नहीं सकती। अपने पंजे में पड़े आहारको मैं छोड़नेवाला नहीं हूँ।’ गौ—’आप मुझपर विश्वास करें। मैं सत्यकी शपथ करके कहती हूँ कि बछड़ेको दूध पिलाकर मैं आपके पास शीघ्र आ जाऊँगी।’
सिंहने गौकी बहुत-सी शपथें सुनीं, उसके मनमें आया कि ‘मैं एक दिन भोजन न करूँ तो भी मुझे विशेष कष्ट नहीं होगा। आज इस गायकी बात मानकर ही देख लूँ।’ उसने गायको अनुमति दे दी – ‘अच्छा, तू जा; किंतु किसीके बहकावेमें आकर रुक मत जाना।’
नन्दा गौ सिंहकी अनुमति पाकर वहाँसे अपने आवासपर लौटी। बछड़ेके पास आकर उसकी आँखोंसे आँसूकी धारा चल पड़ी। वह शीघ्रतासे बछड़ेको चाटने लगी। बछड़ेने माताके रोनेका कारण पूछा। जब नन्दाने बताया कि वह सिंहको लौटनेका वचन दे आयी है, तब बछड़ेने कहा—’माता! मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूँगा।’
नन्दाकी बात सुनकर दूसरी गायोंने उसे सिंहके पास फिर जानेसे रोकना चाहा। उन्होंने अनेक युक्तियोंसे नन्दाको समझाया। परंतु नन्दा अपने निश्चयपर दृढ़ रही । | उसने सत्यकी रक्षाको ही अपना धर्म माना। बछड़ेको उसने पुचकारकर दूसरे गायोंको सौंप दिया; किंतु जब वह सिंहके पास पहुँची तब पूँछ उठाये ‘बाँ-बाँ’ करता उसका बछड़ा भी दौड़ा आया और अपनी माता तथा | सिंहके बीच में खड़ा हो गया । नन्दाने यह देखकरसिंहसे कहा-‘ -‘मृगेन्द्र ! मैं लौट आयी हूँ। आप मेरे इस अबोध बछड़ेपर दया करें। मुझे खाकर अब आप अपनी क्षुधा शान्त कर लें।’
सिंह गायकी सत्यनिष्ठासे प्रसन्न होकर बोला ‘कल्याणी! जो सत्यपर स्थिर है उसका अमङ्गल कभी नहीं हो सकता। अपने बछड़ेके साथ तुम जहाँ जानाचाहो, प्रसन्नतापूर्वक चली जाओ।’ उसी समय वहाँ जीवोंके कर्मनियन्ता धर्मराज प्रकट हुए। उन्होंने कहा – ‘नन्दा ! अपने सत्यके कारण बछड़ेके साथ तुम अब स्वर्गकी अधिकारिणी हो गयी हो और तुम्हारे संसर्गसे सिंह भी पापमुक्त हो गया है।’
– सु0 सिं0