शिक्षककी परीक्षा
एक गुरुकुल था। वहाँ पढ़नेवाले विद्यार्थी बड़े ज्ञानी होते थे। माता-पिता अपने बच्चोंको वहीं पढ़ाना चाहते थे। उस गुरुकुलमें शिक्षक बनना आसान काम नहीं था। एक बार तीन पण्डित शिक्षक बननेकी इच्छासे उस गुरुकुलमें आये। उनके नाम थे दिव्याभ, प्रभात और प्रशान्त । गुरुकुलके आचार्य अलग-अलग उनकी परीक्षा लेने लगे। एक कमरे में परदा बाँधा गया था। आचार्य परदेके पीछे रहकर उन पण्डितोंकी परीक्षा ले रहे थे ‘दिव्याभ! शिक्षकके लिये ज्ञान प्रधान है या बच्चोंपर प्रेम ?’ आचार्यने पहले पण्डितसे पूछा। दिव्याभने सोचा कि ज्ञानके बिना क्या कोई पढ़ायेगा, इसलिये उसने कहा- ‘ज्ञान प्रधान है।’ आचार्यने यही सवाल प्रभातसे पूछा तो उसने देरसे सोचकर उत्तर दिया-‘एक नहीं, दोनों प्रधान हैं।’ आचार्यने प्रशान्तसे यही पूछा तो उसने शान्तिसे कहा-‘ज्ञानके बिना कोई शिक्षक बन ही नहीं सकता। वह तो अनिवार्य है ही। इसके अलावा पढ़ाते समय प्रेम ही सबसे जरूरी आचरण है।’ प्रशान्तके स्वरमें आत्मविश्वास था। अब आचार्यने तीनोंसे अलग अलग दूसरा प्रश्न पूछा- ‘मैं तुम लोगोंको देखे बिना क्यों प्रश्न कर रहा हूँ ?’ दिव्याभने कहा-‘सीधे देखनेसे परिचितको पहचानना पड़ेगा, उसे नियुक्त करनेका विचार आयेगा।’ प्रभातने कहा-‘अगर आगन्तुक कुरूप होगा तो उससे सवाल किये बिना भेज देनेकी नौबत आयेगी, जिससे बचनेके लिये आपने ऐसा किया है।’ आचार्य उन दोनोंके उत्तरोंसे सन्तुष्ट नहीं हुए। अन्तमें प्रशान्तने कहा- ‘शिक्षकके लिये ज्ञानकी जितनी जरूरत है, उससे भी ज्यादा मधुरभाषिताकी आवश्यकता है। शिक्षकका स्वर प्रेमपूर्ण न रहे तो बच्चोंपर उसके अध्यापनका प्रभाव ही नहीं पड़ता। इसीलिये हमारे रूपको देखे बिना हमारी असली प्रतिभाकी आप परीक्षा ले रहे हैं।’ मधुर स्वरमें दिये गये प्रशान्तके उत्तरसे आचार्य अत्यन्त प्रसन्न हुए और वही चुन लिया गया।
मधुरभाषी ज्ञानी ही उत्तम शिक्षक होता है।
teacher exam
There was a Gurukul. The students studying there were very knowledgeable. Parents wanted to teach their children there. It was not an easy task to become a teacher in that Gurukul. Once three pundits came to that Gurukul with the desire to become teachers. Their names were Divyabha, Prabhat and Prashant. The Acharyas of the Gurukul started examining them separately. The curtain was tied in one room. Acharya was examining those pundits by staying behind the curtain ‘Divyabha! Is knowledge important for the teacher or love for the children? Acharya first asked the Pandit. Divyabh thought that without knowledge, would anyone teach, so he said- ‘Knowledge is prime.’ When Acharya asked the same question to Prabhat, he replied after thinking late – ‘Not one, but both are prime.’ When Acharya asked Prashant the same, he calmly said – ‘No one can become a teacher without knowledge. It is essential. Apart from this, love is the most important conduct while teaching. There was confidence in Prashant’s voice. Now Acharya asked all three different questions – ‘Why am I asking questions without seeing you guys?’ Divyabhan said – ‘You will have to recognize the acquaintance by looking directly, the idea of appointing him will come.’ Prabhat said – ‘If the visitor is ugly, then there will be a chance to send him away without asking questions, to avoid which you have done this.’ Acharya was not satisfied with the answers of both of them. In the end, Prashant said- ‘Smooth speaking is needed more than the need of knowledge for a teacher. If the teacher’s voice is not loving, then his teaching does not have any effect on the children. That’s why you are testing our real talent without seeing our form.’ Acharya was very pleased with Prashant’s answer given in a sweet voice and he was selected.
Sweet-spoken wise man is the best teacher.