एक गाँव में एक मजदूर रहता था जो दिहाड़ी करके
अपने बीवी और बेटे के साथ परिवार का गुज़ारा करता था । उसी गाँव में कुछ सत्सँगी रहते थे और उनमें एक सेवादार भी रहता था जो ब्यास जा कर बड़े प्रेम से सेवा करता था, श्री हुज़ूर महाराज जी ने उसकी सेवा भावना से खुश हो कर उसे जत्थेदार बना दिया था।
वो अक्सर ब्यास जा कर हफ्ते दो हफ्ते की सेवा किया करता था, मजदूर भाई उसके घर के पास ही रहता था, जत्थेदार कभी कभी उसकी मदद भी करता था, एक बार जत्थेदार भाई जब ब्यास से वापिस आया तो उसने हुज़ूर की एक फोटो और प्रसाद मजदूर भाई को भी दिया ।
हर रोज सुबह उठते ही वो भाई, हुजूर की फोटो को बड़े प्रेम से हाथ जोड़कर प्रणाम करता था फिर अपना दिन शुरू करता था।
एक बार जत्थेदार जी ब्यास जा रहे थे, और वो मजदूर भाई अपने घर से निकल रहा था उसने सेवादार से पूछा कि तुम कहाँ जा रहे हो ? जत्थेदार जी ने हाथ जोड़कर हुजूर को याद किया और कहा, भाई मैं तो दस दिनों के लिये ब्यास सेवा पर जा रहा हूँ, आओ तुम भी चलो, मजदूर भाई ने कहा, जी मेरा दिल तो बहुत करता है कि मैं आपके सतगुरू के दर्शन करूँ लेकिन मैं बहुत मजबूर हूँ, अगर दस दिन काम ना किया तो बच्चे भूखे मरेंगे
जत्थेदार ने कहा, मेरे सतगुरू तेरे परिवार का ध्यान रखेंगे, तूँ चल तो सही, अनमने मन से मजदूर भाई चलने को तैयार हो गया, मजदूर ने पड़ोस के दुकानदार से दस दिनों का राशन उधार लिया और कहा, सेठ जी, मैं ब्यास जा रहा हूँ वापिस आ के आपके पैसे चुका दूँगा, जत्थेदार ने उसकी जिम्मेदारी ले ली ।
दोनों ब्यास आ गये, मँड में सेवा चल रही थी, मजदूर को सुबह हर रोज़, हुजूर के दर्शन होते थे, मजदूर दर्शन करके निहाल हो जाता था और तन मन से सेवा में जुट जाता था ।
सेवा करते हुए, नौ दिन हवा की तरह उड़ गये, नौंवे दिन शाम को हुजूर ने जत्थेदार को बुलाया और कहा कि तेरे साथ जो सेवादार आया है, मैं उसकी सेवा से बहुत खुश हूँ । तुम उसे छः महीने और रूकने के लिये कहो, और जब वो मान जाये तो उसे मेरे पास ले आना ।
जत्थेदार के तो होश उड़ गये कि वो बेचारा छः महीने कैसे रूकेगा ?
लेकिन अपने सतगुरू का हुक्म मान कर उसने रात को मजदूर भाई से बात शुरू की, पूछा भाई क्या तुम यहाँ सेवा करके खुश हो? मजदूर भाई ने कहा कि मैं तो इतना खुश हूँ अगर मेरे परिवार का इन्तज़ाम हो जाये तो, मैं सारी ज़िन्दगी यहीं रह कर सेवा करूँ ।
शहनशाह के दर्शन, गुरु घर का लँगर, वाह ! क्या बात है ?
जत्थेदार ने फौरन कहा, भाई तेरी सेवा से हुजूर इतने खुश हैं कि छः महीने तक यहीं रखना चाहते हैं ।
वो भाई ये बात सुनकर हक्का बक्का हो गया और रोने लगा, जत्थेदार जी दस दिन तो मैंने जैसे कैसे निकाल लिये हैं, मगर छः महीने में तो मेरी बीवी और बेटा भूखे मर जायेंगे, मकान की छत भी टपटती है, बारिशों में छत भी गिर जायेगी ।
जत्थेदार ने उसे कहा, भाई तूँ बड़े भागों वाला है, जिसे हुजूर ने सेवा के लिये चुना है, यहाँ सेवा करने के लिये तो बड़े बड़े सेठ लोग तरसते हैं तूँ एक बार हाँ तो बोल, बाकी सारा इन्तज़ाम, हुजूर अपने आप कर देंगे ।
वो बड़ी सोच में पड़ गया, कुछ देर के बाद बोला ठीक है, मैं रूक जाऊँगा लेकिन पहले सतगुरू जी से कुछ बात करनी है, जत्थेदार उसे उसी वक्त लेकर हुजूर के सामने पेश हो गया ।
बेचारे मजदूर की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे, हुजूर ने मुस्कुरा कर उस पर दृष्टि डाली और कहा कि तूँ कोई फिकर ना करना ।
उस भाई ने हाथ जोड़कर कहा, सच्चे पातशाह जी, ठीक है, मैं छः महीने सेवा करूँगा लेकिन जेहड़े दस दिन पहले सेवा कीती है, ओ दिन छः महीने विच्चों घटा देओ जी, हुजूर हस्स पये और कहेया ठीक है ।
जत्थेदार अभी भी हैरान परेशान खड़ा था कि ये चमत्कार कैसे हो गया ?
मजदूर वापिस आ गया लेकिन सारी रात उसे नींद नहीं आई, उधर हुजूर ने उसी रात को ही दुकानदार को सुबह चार बजे नींद में दर्शन दिये और हुक्म दिया, बेटा छः महीने तक तेरा पड़ोसी हमारे डेरे में सेवा करेगा, उसके घर का राशन, ज़रूरत पड़ने पर रूपये पैसे से भी उनकी मदद करना, तेरे पैसे हम चुकायेगें ।
सेठ हड़बड़ा कर उठ गया और देखा कि अभी तो रात बाकी है, सुबह सेठ अपनी पत्नी के साथ उस मजदूर के घर गया वहाँ उसने दीवार पर हुजूर की फोटो देखी तो तुरन्त हाथ जोड़कर बोला, यही हमारे सपने में आज सुबह आये थे । बहन, तुम्हें जो भी चाहिये, वो मिल जायेगा ।
सेठ अपने घर चला गया लगभग दो महीने बीत गये मजदूर भाई डेरे में सेवा कर रहा था, जत्थेदार भी उसके साथ था, इधर गाँव में तेज़ बारिश शुरू हो गई, मजदूर के कच्चे मकान की छत टपकने लगी, जब बारिश रूक गई तो मजदूर भाई की पत्नी अपने बेटे के साथ कस्सी और तसला लेकर पास की ख़ाली ज़मीन से मिट्टी लेने चली गई, दो तसले मिट्टी ला कर उसने अपने घर में रख ली, जब तीसरे तसले के लिये उसका बेटा मिट्टी खोद रहा था, अचानक कस्सी किसी चीज से टकराई और टन्न की आवाज़ हुई, उस बहन ने ध्यान से देखा कि ज़मीन में एक पीतल का मटका दबा हुआ था, उस मटके में खूब सारे गहने और चाँदी के रूपये थे, उसने मटका निकाला, एक कपड़े में लपेटा और माँ बेटा दुकानदार के घर चले गये
वो पूरा मटका उसने सेठ के हवाले कर दिया ।
सेठ और सेठानी मटका देखकर हैरान रह गये, सेठ जी ने अपना पूरा हिसाब गिन कर अपने पैसे रख लिये और बाकी गहने, चाँदी के सिक्के बेच कर खूब सारे पैसे बना लिये, अपने घर के पास उसकी कुछ ख़ाली जमीन पड़ी थी, वहाँ उसने एक बहुत शानदार मकान बनाना शुरू कर दिया, तीन महीने में नया मकान बन कर तैयार हो गया, सेठ जी ने उसी मजदूर की घरवाली को बुलाया और कहा, बहन ये मकान आज से तुम्हारा है और ये तुम्हें हुजूर ने दिया है, बाकी पैसों के लेनदेन का हिसाब मैं तुम्हारे घरवाले से कर लूँगा
जब छः महीने पूरे हो गये तो जत्थेदार ने कहा, भाई कल सुबह हम घर वापिस चलेंगे, लेकिन वो मजदूर बड़ा मायूस हो कर बोला सुबह नहीं, शाम को चलेंगे ताकि कोई मेरा तमाशा ना देखे, जब वो शाम ढलने पर अपने गाँव में आये तो मजदूर भाई ने देखा कि उसका घर तो गिर चुका है, खँडहर खड़े हैं, उसे अपनी बीवी और बेटे की भी चिन्ता होने लगी, तभी नये मकान से उसका बेटा बाहर निकला और भाग के अपने पिता के पास आ कर बोला, बापू देखो हमारा नया घर, ये हमें राधा स्वामी वाले गुरू जी ने दिया है, वो भाई फूट फूट कर रोने लगा, उसकी पत्नी भी आ गई, सेठ और सेठानी भी आ गये, बड़ा सुन्दर माहौल बन गया, जत्थेदार भाई ने हुजूर का लाख लाख शुक्रिया किया ।
सच्चे पातशाह तेरा शुक्र है, उस मजदूर भाई की घरवाली बोली, सुनो जी, चाहे सारे काम छोड़ देना लेकिन सतगुरू की सेवा कभी मत छोड़ना, अब तो हम भी आपके साथ चलेंगे जी ।
*सतगुरू की सेवा सफल है, जे को करे, चित लाऐ*
*नाम पदारथ, पाईये*
*अचिंत वसै मन आये*