[28]हनुमानजी की आत्मकथा

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एक सम्वाददाता, मैं और श्रीहनुमान जी

नाम पहारू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट…
(रामचरितमानस)

साधकों ! कल चुनाव था… इतनी जिम्मेवारी तो मेरी बनती ही है कि मैं अपने मतदान का प्रयोग करूँ… मैंने किया ।

काफी पत्रकार लोग थे… नेशनल इलैक्ट्रोनिक मिडिया भी थी ।

एक मेरे परिचय के निकल गए… संवाददाता ।

दिल्ली में मुझे वो मिले थे… मेरा इंटरव्यू भी लिया था उन्होंने ।

चलिये आपके साथ लस्सी पीते हैं…और साथ में श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन भी करेंगे ।

उन्होंने मुझे कहा… मैंने अपने मतदान का प्रयोग कर लिया था… तो मैं उनके साथ चल दिया ।

सम्वाददाता आजकल अपनी जिम्मेवारी सही नही निभाते हैं…

मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा ।

हम दोनों दर्शन कर लिए थे… लस्सी पी रहे थे ।

आप तो हनुमान जी पर लिख रहे हैं आजकल… उन्होंने लस्सी की मलाई चाटते हुए कहा… वो “आज के विचार” नित्य पढ़ते थे ।

सम्वाददाता हनुमान जी की तरह होना चाहिए… जिसका उद्देश्य तोड़ना न हो… जोड़ना हो… ।

आजकल सम्वाददाता तोड़ने में लगे हैं… आज कल के सम्वाददाता मन्थरा की तरह बने हुए हैं… मैंने कहा ।

कूड़ेदान में कुल्हड़ फेंकते हुए… वो बोले… हम तो सत्य लिखते हैं… सत्य बताते हैं… मैंने कहा… सत्य ही बताना काफी नही है… सत्य बताया क्यों जा रहा है… इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है… सत्य जो बताया जा रहा है… वो जोड़ने के लिए है या समाज को तोड़ने के लिए ?

वो मेरी ओर देखने लगे… मैंने कहा… हमारे यहाँ क्रिया नही देखी जाती… क्रिया के पीछे छुपे उद्देश्य देखे जाते हैं…

उद्देश्य क्या है…सत्य बोलने का… जोड़ना या तोड़ना ?

मैं आपको हमारे चैनल के किसी डिबेट में बुलाऊंगा…

आप ये बात वहाँ बोलना… उन्हें मेरी बात अच्छी लगी थी ।

मैंने कहा… मैं किसी डिबेट में भाग लेने के लिए ये सब नही कह रहा…
मैं जो सही बात है वो बता रहा हूँ…।

उन्होंने अपना कैमरा निकाला… मुझ से बोले… आप अब बोलिये… मैंने कहा… प्लीज़ ! आप इसे बन्द करें…

क्या आप अपने लिये इस बात को नही सुन सकते… अपने जीवन में उतारने के लिए… मैं आपको बोल रहा हूँ… व्यक्तिगत…।… रिकॉर्डिंग मत कीजिये… जीवन में उतारिये ।

वो झेंप गए… आप अजीब आदमी हैं… मैंने कहा… मैं ऐसा ही हूँ ।

अच्छा ! कौन हैं… ऐसे सम्वाददाता… मैंने कहा… हनुमान जी !

जो गए थे माँ जानकी के पास… तो माँ के पास जाकर उन्होंने जो सन्देश दिया… वो विलक्षण था… हर पत्रकार को उससे शिक्षा लेनी चाहिए… ।

और आज कल की पत्रकारिता “मन्थरा” बन गयी है…

हनुमान जी की पत्रकारिता जोड़ने की ओर बढ़ती है… पर आप तो जानते हैं… मन्थरा की पत्रकारिता तोड़ने के लिए है ।

मित्र ! बात सत्यता की नही है… सत्य तो दोनों ही बोल रहे हैं… मन्थरा भी झूठ कहाँ बोलती है… कैकेई के सामने… अपितु देखा जाए तो मन्थरा की तुलना में हनुमान जी ही थोड़ा अपने मन से लगाकर बोल देते हैं… पर उद्देश्य क्या है दोनों का ?… मन्थरा का उद्देश्य है… राष्ट्र टूटे… पर हनुमान का उद्देश्य है… सब जुड़ जाएँ ।

अब सुनो… मैंने उनसे कहा… हनुमान जी जब अशोक वाटिका में गए… तब सीता जी ने पूछा – प्रभु मुझे याद करते हैं ?

हनुमान जी बोलने लगे… तब बीच में टोकते हुए सीता जी ने कहा… सावधान ! तुम ये कह रहे हो… कि बहुत याद करते हैं… तो सम्भल कर बोलना हनुमान !…

क्यों कि फिर मेरा प्रश्न होगा… अगर याद करते हैं… तो मुझे लेने क्यों नही आये अभी तक… देखो ! यहाँ दो ही बात हो सकती है… या तो उनके बाण में शक्ति नही है… इसलिये अभी तक नही आये… या मुझे याद नही करते ।

मैंने उन पत्रकार से कहा… अब हनुमान जी के सामने दिक्कत आ गयी… क्या कहें… ये कहें कि बाण में ताकत नही है… तो ये बात तो झूठी हो जायेगी… रघुनाथ जी के बाण में ताकत कैसे नही है ।

फिर ताकत है… तो वहीं से बाण फेंक कर लंका को जला क्यों नही देते… इसका मतलब ये हुआ कि वो याद नही करते ।

हनुमान जी क्या बोलें… जोड़ना है यहाँ… मात्र सत्य बोलने से नही होगा… सत्य भी ऐसा हो… जो जोड़ने वाला हो ।

हनुमान जी ने कुछ विचार करके कहा… माँ ! बात ये है कि… आपकी याद में रघुनाथ जी इतने डूबे रहते हैं कि अपने बाण की महिमा को ही भूल गए… ।

वाह ! सीता जी बहुत प्रसन्न हुयीं… क्या बात कही है हनुमान !

तुम लंका जलाकर आ गये… सब कुछ उजाड़ दिया… लंका में तुमने… अब जा रहे हो… मेरे प्रभु के पास ..

तो एक काम करो हनुमान !… पहले मैं ये कहती कि मेरी याद दिलाना प्रभु को… पर अब मैं ये नही कहूँगी… क्यों कि मेरी याद करने से तो सब गड़बड़ हो रही है… ।

इसलिये जाओ… और प्रभु को उनके बाण की महिमा ही सुनाओ… कि उनके बाण में कितनी ताकत है… ये बताओ… मेरे बारे में मत बताओ… ।

हनुमान जी खुश… माँ मैथिली की चूड़ामणि लेकर चल पड़े थे… समुद्र पार किया… जामवन्त इत्यादि बहुत प्रसन्न थे… ।

सुग्रीव से मिले… फिर गए प्रभु श्रीराम के पास… ।


आप मेरी मिडिया वाहन में बैठें… धूप बहुत है बाहर ।

मैंने कहा… अब मैं चलूँ !… नही… बात पूरी कीजिये…

सम्वाददाता हैं हनुमान जी… तो वापस श्रीराम जी को जाकर क्या बताया सीता जी के बारे में… ? उन पत्रकार को आनन्द आ रहा था मेरी बातों में ।

मैंने कहा… हनुमान जी गए… और जाकर प्रभु को प्रणाम किया… तब प्रभु श्रीराम ने पहला प्रश्न किया…

जानकी जीवित हैं ?

ये क्या प्रश्न था राम जी का… !

हनुमान जी ने चेहरा देखा प्रभु श्रीराम का…

हाँ… बताओ ?

तब हनुमान जी ने कहा- प्रभु ! उनके प्राण क्या उनके हैं ?

मुझे तो लगा कि आप दोनों के प्राण एक ही हैं…

इस जबाब से राम जी चुप हो गए… ।

तब हनुमान जी ने… एक विचित्र बात कही… जो जोड़ने के लिए थी… दोनों को जोड़ने के लिए… ।

हनुमान जी ने कहा- प्राण निकल जाते सीता जी के… पर आपका जो नाम है ना… राम राम राम… ये जपती रहती हैं… यानि आपके नाम रूपी पहरेदार खड़े हैं… प्राण को निकलने नही देते… सीता जी के ।

प्रभु ! पहरेदारों को भी धक्का देकर निकलना चाहते प्राण सीता जी के… पर ध्यान लग जाता है आपका… तब ध्यान रूपी दरवाजे लग जाते हैं…

हनुमान जी का उद्देश्य यही है… दोनों जुड़ जाएँ… इसलिये बोले… आपके रूप का जब चिन्तन करती हैं… तो आपके रूप का ताला भी लग जाता है… तब कहाँ से प्राण निकलें ?

पर प्रभु फिर भी प्राण निकल सकते हैं… पर अब ऐसी अवस्था में सीता जी प्राण निकालती नही हैं…

क्यों ? प्रभु पूछते हैं ।

इसलिए कि… कैद में हैं प्राण सीता जी के… छटपटा रहे हैं आपके बिना प्राण… पर निकल नही सकते ।

निकाल दें अगर प्राणों को माँ मैथिली… तो बदनामी होगी… प्रभु बहुत बदनामी होगी… ।

किसकी बदनामी होगी ? राम जी ने पूछा ।

आप ही बताइये ना… कैदी अगर भाग जाए कैद से… तो किसकी बदनामी होती है ?… हनुमान जी ने पूछा ।

राम जी ने कहा… पहरेदार की… ।

तो प्रभु यहाँ पहरेदार कौन है ?.

आपका “राम नाम”… है ना ?…आप के नाम की इज्जत बचा रही हैं माँ मैथिली ।

इतना कहकर मैं चुप हो गया… कुछ नही बोला ।

वो मेरे दिल्ली के पत्रकार भाई बहुत आनन्दित थे ।

मैंने उनसे बाद में यही कहा… उद्देश्य जोड़ने का होना चाहिए तोड़ने का नही… ।

उन सम्वाददाता ने मुझ से हाथ मिलाया… मैं भी सहज था… उन्होंने अपने सारे मित्रों से मुझे मिलाया… जो कल चुनाव की रिपोर्टिंग करने आये थे मथुरा में… ।


लंका दहन किया था मैंने भरत भैया !

हनुमान जी ने अपनी आत्मकथा सुनाते हुए भरत जी को बताया ।

फिर चूड़ामणि माँ ने मुझे प्रदान की… उसे लाकर मैंने प्रभु को समर्पित किया था तो उनके नेत्रों से अश्रु बह गए थे ।

शेष चर्चा कल…

नाम पहारू दिवस निशि ध्यान तुम्हार कपाट…
लोचन निज पद जंत्रित प्राण जाहि कहीं वाट…

Harisharan



A reporter, me and Shri Hanuman ji

Naam Paharu Diwas Nisi Dhyan Tumhare Kapat… (Ramcharitmanas)

Seekers! Tomorrow was the election… It is my responsibility to use my vote… I did.

There were many journalists… National electronic media was also there.

One went out to introduce me… Correspondent.

I had met him in Delhi… He had also taken my interview.

Let’s drink lassi with you… and together we will also have darshan of Shri Banke Bihari ji.

They told me… I had used my vote… so I went with them.

Journalists these days do not fulfill their responsibility properly…

I said teasing him.

We both had darshan… were drinking lassi.

Nowadays you are writing on Hanuman ji… He said while licking the cream of lassi… He used to read “Aaj Ke Vichar” daily.

Correspondent should be like Hanuman ji… whose aim is not to break… but to connect….

Nowadays reporters are engaged in breaking… Today’s reporters are made like Manthara… I said.

Throwing the ax in the dustbin… he said… we write the truth… tell the truth… I said… it is not enough to tell the truth… why the truth is being told… it is necessary to pay attention to… the truth that is being told … is it to unite or to break the society?

He started looking at me… I said… We don’t see action here… behind the action we see the hidden motives…

What is the purpose… of speaking the truth… to connect or to break?

I will call you in any debate of our channel…

You speak this thing there… They liked my words.

I said… I am not saying all this to participate in any debate… I am telling what is right.

He took out his camera… spoke to me… you speak now… I said… please! you turn it off…

Can’t you hear this for yourself… to bring it into your life… I am speaking to you… personal….. don’t do the recording… bring it to life.

He blushed… You are a strange man… I said… I am like that.

Good ! Who are… such correspondents… I said… Hanuman ji!

Those who had gone to mother Janaki… So the message he gave after going to mother… was unique… Every journalist should take a lesson from him….

And today’s journalism has become “Manthara”…

Journalism of Hanuman ji moves towards connecting… but you know… Manthara’s journalism is meant to break.

Friend ! It is not a matter of truthfulness… Truth is being spoken by both… Where does Manthara also lie… in front of Kaikeyi… but if seen, Hanuman ji speaks a little more from his heart than Manthara… but what is the purpose of both Of what?… Manthara’s aim is… the nation is divided… but Hanuman’s aim is… everyone unites.

Now listen… I told him… When Hanuman ji went to Ashok Vatika… then Sita ji asked – Lord remembers me?

Hanuman ji started speaking… Then Sita ji said while interrupting… Be careful! You are saying… that I miss you a lot… So speak carefully Hanuman!…

Because then my question will be… If you remember… then why haven’t you come to pick me up yet… Look! Only two things can happen here… either there is no power in his arrows… that is why he has not come yet… or he does not remember me.

I told that journalist… Now there is a problem in front of Hanuman ji… What to say… If they say that the arrow does not have power… then this thing will be false… How come there is no power in Raghunath ji’s arrow?

Then there is power… then why don’t they burn Lanka by throwing arrows from there… it means that they don’t remember.

What should Hanuman ji say… we have to connect here… it will not happen just by speaking the truth… the truth should also be such… which is going to connect.

Hanuman ji thought something and said… Mother! The thing is that… Raghunath ji is so engrossed in your remembrance that he has forgotten the glory of his arrow….

Wow ! Sita ji was very happy… what has Hanuman said!

You came after burning Lanka… destroyed everything… in Lanka you… are now going… to my Lord..

So do one thing Hanuman!… Earlier I used to say that remind God of me… but now I will not say this… because everything is getting messed up by remembering me….

That’s why go… and tell the Lord the glory of his arrow… how much power his arrow has… tell this… don’t tell about me….

Hanuman ji was happy… He had started with mother Maithili’s chudamani… crossed the sea… Jamwant etc. were very happy….

Met Sugriva… then went to Lord Shriram….

You sit in my media vehicle… It is very sunny outside.

I said… now I will go!… no… complete the matter…

Hanuman ji is the correspondent… So what did he tell about Sita ji after going back to Shri Ram ji…? That journalist was enjoying my words.

I said… Hanuman ji went… and went and bowed down to the Lord… Then Lord Shriram asked the first question…

Is Janaki alive?

What was this question of Ram ji…!

Hanuman ji saw the face of Lord Shriram…

yes… tell me?

Then Hanuman ji said – Lord! Are their lives theirs?

I thought that both of you have the same soul.

Ram ji became silent with this answer….

Then Hanuman ji… said a strange thing… which was meant to connect… to connect both….

Hanuman ji said – Sita ji’s life would have been lost… but your name is not there… Ram Ram Ram… it keeps on chanting… means guards in the form of your name are standing… do not let the life leave… Sita ji’s.

Lord ! Sita ji’s life wanted to come out by pushing even the guards… but your attention gets attached… then the doors of attention get closed…

This is the purpose of Hanuman ji… both should join… that is why he said… when she thinks about your form… even your form gets locked… then from where does the life come out?

But God can still die… but now Sita ji does not die in such a condition…

Why ? Lord asks.

Because… Sita ji’s life is in captivity… without you the life is in tatters… but cannot come out.

If you remove the life of Mother Maithili… then there will be defamation… Lord there will be a lot of defamation….

Who will be defamed? Ram ji asked.

You tell me… If the prisoner escapes from prison… then who gets defamed?… Hanuman ji asked.

Ram ji said… of the watchman….

So Lord who is the watchman here?

Your “Ram Naam”… isn’t it?… Mother Maithili is saving the respect of your name.

Having said this, I became silent… did not say anything.

That journalist brother of mine from Delhi was very happy.

This is what I told him later… the aim should be to unite and not to break….

That reporter shook hands with me… I was also comfortable… He introduced me to all his friends… who had come to Mathura yesterday to report on elections….

I had burnt Lanka brother Bharat!

Hanuman ji narrated his autobiography to Bharat ji.

Then Chudamani Maa gave it to me… When I brought it and dedicated it to the Lord, tears flowed from her eyes.

Rest of the discussion tomorrow…

Naam Paharu Day Nishi Dhyan Tumhare Kapat… Lochan nij post jantrit praan jahi kahin wat…

Harisharan

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