“ठाकुरजी की होली लीला”

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ठाकुरजी की ये लीला बडी ही मनमोहक है नंदलाल ने सुबह ही टेरकंदब पर अपने सभी मित्रों को बुलाया और बरसाना जाने का विचार बनाया इतने में बलरामजी बोले कि- "लाला ! फागुन चलर हौ है तू ऐसई जाएगौ तौ गोपी तोए पकड कै बाँध दींगी और खूब गुलाल गुलचा मारंगी।" ठाकुरजी ने मन मे विचार बनाया और सभी मित्रों को बताया। विचार बडा ही सुंदर है। मित्रौ का जयकारा लग गया और हर-हर कहते ही ठाकुरजी वहाँ से बरसाने की ओर चल दिए। बडा ही मनमोहक दृश्य है शंकर भगवान उनके रूप को देख कर मन ही मन भावुक हो रहे है। उन्हें ऐसा भावुक देख माता पार्वती पूछ रही हैं प्रभु आप की नेत्रौ में जल कैसे ? तो शंकर भगवान ने बडा ही सुंदर जबाब दिया कि आज मेरा रूप मेरे जगत-पति ने लिया है, तो मुझे आनन्द हो रहा है, सब देवगण उन्हें देख कर आनन्दमय हो रहे हैं। अलख निरंजन सब दुख भंजन, कहते हुए ठाकुरजी बरसाने आ गये, बाघाम्बर ओढ़े, भस्म लपेटे, त्रिपुड़ लगाये। नगर में कौतुहल हो रहा है, अलख पुरुष को देख सब गोपियाँ अपना भविष्य पूछने लगीं। उनके चेले बाबा की जय हो कहने लगे। यह बात ललिता जी के कानों मे पहुँची कि नगर में कैलाश पर्वत से एक जोगी आया है। जो कि सब का भविष्य बता रहा है।

राधारानी ने अलख पुरुष को महल में बुलवाया और खूब खिलाया पिलाया। फिर सब गोपियाँ उन से भविष्य पूछने लगीं। राधा रानी अपना भविष्य पूछने लगीं तो ठाकुरजी हँस कर बोले तेरा पति तो काला है और गौ पालन करता है और तुम से मिलने के नए-नए भेष बनाता है। इतने में राधा-रानी की निगाह उनकी कमर पे पडी तो वे मन ही मन हँसी कमर मे उनकी वंशी है। राधा रानी ने ललिता जी के कान में कहा कि अलख पुरुष को चेलो सहित घेर लो ललिता जी ने सब गोपियों को बुलाया और गुलाल अतर अरगजा केसर मंगवा लिया।

राधा रानी ने ठाकुरजी की वंशी को निकाल लिया। ठाकुरजी अपने असली भेष में आया देख सखा भागने लगे। अागे भागे तो देखा की बलराम जी को गोपियों ने पकड रखा है, और उनके गुलाल मार रही हैं। यह देख ठाकुरजी भी भागने लगे तो उनको विशाखा जी ने पीछे से पकड़ लिया और फिर खूब जमकर गुलाल मारा। शिवजी नारायण भगवान और सब देवगण यह देख कर कह रहे है कि धन धन ब्रज की गोपियाँ। "जय हो होरी के रसिया की" "जय जय श्री राधे"


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