सुख और दुख दो प्रकार के है संसार में जो सुख प्राप्त होता है वह सुख इन्द्रियों और मनका सुख है। यह मनका सुख अध्यात्म में दुख का कारण है।
भक्त देखता है ऐसे वातावरण में प्रभु प्राण नाथ के प्रेम का कितना अह्सास हुआ।उस सुख मे श्री हरी के साथ नजदीकी का सम्बन्ध कितना बना। इस दिल में आखों में प्रीतम से मिलन की आस जगी की नहीं । जिस सुख में ईश्वर के सम्बन्ध की गहराई नहीं है। वह मन का सुख स्थाई सुख नहीं है। हमे स्थायी आनंद की ओर अग्रसर होना है। अ राही तुझे मन के सुख के अधीन नहीं होना है। मन का सुख सच्चा सुख नहीं है। गहरी डुबकी लगाने पर ही मोती मिलेगे।
दुख की भी यही परिस्थिति है जब दुख आता है तब भक्त अपने मार्ग को अन्दर की ओर मोङ लेता है। भक्त देखता है आसमान साफ हो गया है। ऊपरी तोर पर बने हुए संगी साथी किनारा कर गऐ है जीभ की लोलुपता मिट गई है।
यह एकान्त का वातावरण शुद्ध है यह श्री हरि की कृपा के बैगर मिल नहीं सकता है। इस वातावरण में हर सांस श्री हरि की पुकार कर रही है। मुझमें पहले बहुत से खोट भरे हुए थे। श्री हरि ने मुझे यह परिस्थिति मेरे कल्याण के लिए ही दी है।
जैसे बारिश के बाद आसमान दुधीया हो जाता है वैसे ही श्री हरि की कृपा से मेरे अन्दर का मैल मिट गया है। मुझे अब सुख दुख में भेद दिखाई नहीं देता है। अध्यात्म का मार्ग हमारा स्थाई सुख है। जय श्री राम अनीता गर्ग