बंगाल में महान संत और माँ काली के अनन्य भक्त स्वामी श्री रामकृष्ण परमहंस देव हुए। उनकी पूजापाठ में कर्मकांड का प्रभाव बहुत की काम था परंतु मानसिक एवं आत्मिक भाव की बहुत गहरा प्रभाव था। वे कई कई दिनों तक लोगों को पूजा करते नहीं दिखाई देते थे, यहां तक की लगातार २-४ दिन तक मंदिर के पट तक नहीं खोलते थे। कभी कभी पूजा करने बैठते तो कई कई दिनों तक भूखे प्यासे ही पूजा में लीन और रत रहते। कई बार पूरे दिन मंदिर के पट दिन में बंद रखते तो कभी रात २-२:३० बजे मंदिर के पट खोलकर पूजा में बैठ जाते। वे जब भी माँ काली को भोग लगाते तो पहले स्वयं चख कर देखने के बाद ही भोग माता को अर्पण करते। कहते है की माता काली स्वयं उपस्थित होकर उनके हाथ से ही भोग ग्रहण करती थीं….
एक बार एक ख्यातिप्राप्त कर्मकांडी ब्राह्मण उनसे भेंट करने आए और उनके मेहमान हुए। उन्होंने कई दिनों तक स्वामी रामकृष्ण परमहंस देव की गतिविधियों को निकटता से देखने के बाद उनसे पूजा – हे महात्मन, मैं रोज नियम से पूजापाठ, संध्यावंदन और आरती करता हूं, परंतु आपकी पूजापाठ लगभग न के बराबर और अनियमित है, ऐसा क्यों प्रभु ?
स्वामी रामकृष्ण परमहंस देव ने उन्हें कहा कि आप पूजापाठ, संध्यावंदन, आरती इत्यादि करके अपने इष्ट देवी / देवता का स्मरण करते है। परंतु मैं किसे याद करूं, मुझे तो मेरे आराध्य विस्मृत ही नहीं हो पाते, वे सदैव ही मेरी स्मृति में बने रहते है तो जब मैं अपने इष्ट को भूलता ही नहीं तो स्मरण किसका करूं।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस देव के ये वचन सभी धर्मप्रेमियों के लिए एक सीख और मार्गदर्शन है। अतः सजग रहें…