कर्मबंधन का जन्मबंधन " पिछले जन्मों के ताने बाने की कहानी"
रिवासकी,एक बहुत राइस आदमी,हमेशा अपनी मद में।किसी को कुछ न समझना। बात तो ये तय थी कि पैसा था, तो कोई भी काम मुश्किल न था। हुआ कुछ यूँ कि, माँ बाउजी ने उसकी शादी करा दी। लेकिन उसको अपनी पत्नी यानि रुगड़ी पसन्द नहीं आई। सीधी सादी उसकी पसंद न थी। जिद्दी स्वभाव और अकड़ की वज़ह से कोई उससे कुछ कह न पाया। पत्नी के साथ दुर्व्यवहार ,ऐसा लगता था कि बस चलता तो उसे ख़त्म कर देता। पत्नी उसे बहुत प्यार करने वाली,और उसे ईश्वर मानने वाली थी। वो रोती रहती लेकिन शिकायत न करती किसी से। उसके पास था तो सिर्फ़ मौन और सिर्फ मौन ही धारण किए रही। कह्ते है न कभी कभी इश्वर भी साथ नहीं देता । एक दिन आया की रिवासकी ने रूगड़ी को घर से निकाल दिया। वो पैर पकड़ के रोती रही, उसने नहीं सुनी।
वो कहाँ चली गई,क्या हुआ,पता नहीं,लेकिन हाँ रिवासकी ने दूसरी शादी कर ली। कौन रोक पाता है, रसूखदारो को।
सब बहुत अच्छा चला,उसके जीवन में,अंतिम समय भी आया,और जब अंतिम समय आया तो उसके दिमाग में रुगड़ी का ख़याल बिजली की तरह कौंध गया,और इसी आखिरी ख़याल मे उसने संसार से विदाएगी ली। इक कसक बिना बोले रह गई ।
कहानी कुछ आगे बढ़ाते है …….
इक नया जन्म, इक नई कहानी
मुदाकारी नाम का व्यक्ति हुआ, अथाह पैसा रुतबे में कोई कमी नहीं। परिवार की देखभाल करने वाला। सब का पूरा ध्यान रखता। दो बेटे, इक बेटी,सबसे छोटी बेटी प्यारे बच्चे, पत्नी, हंसता खेलता परिवार। काम से आता बेटों को गले लगाता प्यार करता ,पर बेटी को नहीं,उसे बेटी अच्छी नहीं लगती थी,जरूरतें पूरी करता पिता की तरह,लेकिन प्यार न करता।
छोटी सी प्यारी सी बेटी सिर्फ़ अपने बाउजी को देखती कि कब वो उसे गले से लगायेंगे। लेकिन उसके बाउजी पर उसका असर न होता। उसे फर्क़ ही नहीं पड़ता था कि वो एक छोटी सी मासूम सी जिंदगी अपने बाउजी के गले लगने के लिए कितनी व्याकुल थी । वो उस प्यार को पाना चाहती थी। लेकिन ऐसा कुछ न हुआ। समय के अनुसार इन किरदारों ने भी अपनी जिंदगी को पूरा किया। लेकिन बिना बोले इक कसक रह गई।
अब कहानी का तीसरा और आखिरी अध्याय ….
किनकी एक बहुत साधारण सी लड़की,उसे ईश्वर को देखने का बड़ा मन था। क्या राज था, पता नहीं, लेकिन कोई कहता ऐसा करो तो ईश्वर मिलेगा,कोई कहता वैसा करो तो ईश्वर मिलेगा, बस वो वैसा ही करती।
उसकी एक सोच ,ईश्वर की खोज कैसे की जाए, कब कहां पता नहीं,बस उसे खोजना है। दुनिया के दिखाए रास्तों पर चलती रही,पर हर बार रास्ते बदल लेती क्यों कि कुछ समय बाद लगता यहाँ नहीं मिलेगा। किसी ने कहा भीतर खोजों। अब भीतर कैसे खोजा जाये,कुछ नहीं पता।
शादी की उम्र हुई तो परिवार वालों ने शादी कर दी। सब बढ़िया चल रहा था। लेकिन ईश्वर की खोज लगातार जारी रही।एक दिन आया, पति ने दुनिया छोड़ दी, वो अकेली रह गई।आगे पीछे कोई न। कोई बात करने वाला नहीं।बस बचा तो सिर्फ दुःख।
एक दिन उसका सामना एक इंसान से हुआ, जो शायद भला मानस था। वो इंसान उसका हाल लेता रहता। किनकी को लगा शायद इससे कुछ रिश्ता है। किनकी उसी को सोचती रहती। उसे लगता वो इंसान इसके पास रहे। खींचती गई उसकी तरफ, पर उस इंसान के अपने रास्ते, वो चला गया। पर किनकी उसे भूल नहीं पायी। वो उसे ईश्वर मान चुकी थी क्योंकि उस इंसान ने उसे ईश्वर की खोज भुला दी थी। मुश्किल था उसे भूलना। दिन रात बस उसे याद करती और एक दिन अपने दुःख में डूबी हुए अह्सास हुआ कि अरे मुझे तो ईश्वर को ऐसे ही याद करना था। दिन रात बस वो ही,बस उसे ईश्वर का तरीका पसंद नहीं आया,क्यों कि दुनिया में ईश्वर की तरफ जाने के कई रास्ते थे। किनकी उसकी रज़ा में राजी रहने वालों में से थी तो उसने चिंतन शुरू किया।
कह्ते है जब आप अपने में चिंतन शुरु करते हो तो आपका लेखा जोखा आपको धीरे धीरे ही पर समझ आता है।बस किनकी का एक ही ध्यान और उसका जवाब उस ईश्वर से की उस इंसान को जिसे देख के ,ईश्वर को भूल गई,वो चला गया और वो उसको ही सोचती रही,ऐसा क्यों??
मंथन शुरू हुआ,और होना चाहिए,कर्म बंधन से निकलना ज़रूरी है।
अपना किया हुआ कर्म सामने था।
पहली कहानी में रिवासकी ने जिस पत्नी को घर से निकाला था ये इंसान वही था, और किनकी, रिवासकी ही थी,एक नया जन्म लिए हुए। वो उसको उसी दशा में कर गया, जिससे वो उसकी पत्नी के रूप में गुज़रा था।
इस जन्म से पहले भी ये दोनों साथ हुए थे पिता और बेटी के रूप में,मुदाकारी के रूप में रुगड़ी ही थी और रिवासकी बेटी के रूप में अपने किए का भुगतान कर रहा था,उसे उसी तरह प्यार की कमी कर दी गई थी जिस तरह उसने अपनी पत्नी को कमी में रखा था ।
आज किनकी उन सब एहसासों से गुज़री जिन एहसासों को वो रिवासकी के रूप में नहीं समझ पायी थी। जिस औरत के लिए रिवासकी ने अपनी पहली पत्नी रूगड़ी को छोड़ा था,आज किनकी के रूप में उसने उसी औरत के घर की तरफ देखा था।
एक बार का किया कर्म और वो भी किसी का दिल दुखाने का,बात आगे कई जन्मों तक जाती है, और कई गुना होकर वापस मिलती है।
किनकी सब कुछ समझ चुकी बस अब बारी थी अपने किए की क्षमा मांगना,और उसने पूरी शिद्दत से मांगी।हम लोगों को गलत ठहरा देते हैं बिना सोचे। वैसे भी संसार का काम है गलत सही में उलझना। जो है बस कर्म बंधन है जो कई बार इसी तरह जन्म बंधन बन जाता है।