श्री कृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम इतना अधिक बढ़ गया था कि वह उनका वियोग एक क्षण भी नहीं सह सकती थी । श्री कृष्ण के वियोग में मूर्छित होने लगी ।
श्री कृष्ण ने अपने बाल मित्रों से कह दिया था कि किसी गोपी को मूर्छा आए तो मुझे बुलाना । मैं मूर्छा उतारने का मंत्र जानता हूं ।
किसी गोपी को मूर्छा आती तो शीघ्र ही कृष्ण को बुलाया जाता । श्री कृष्ण जानते थे कि इस गोपी के प्राण अब मुझ में ही अटके हैं । इसे कोई वासना नहीं है । यह जीव अत्यंत शुद्ध हो गया है एवं मुझसे मिलने के लिए आतुर है । अतः श्री कृष्ण उसके सिर पर हाथ फेरते और कान में कहते , शरद पूर्णिमा की रात्रि को तुझसे मिलूंगा। तब तक धीरज रख और मेरा ध्यान कर । यह सुनकर गोपी की मूर्छा दूर हो जाती ।
वृंदावन में एक वृद्धा गोपी थी, उसे लगा कि इसमें कुछ गड़बड़ अवश्य है । इन छोकरियों को मूर्छा आती है तो कन्हैया इनके कान में कुछ मंत्र पढता है । मैं भी यह मंत्र जानना चाहती हूं ।
बुढ़िया ने मूर्छित होने का ढोंग करके मंत्र जानने का निश्चय किया । काम करते-करते वह एकदम गिर गई । उसकी बहू को बहुत दुख हुआ । वह कन्हैया को बुलाने दौड़ी ।
श्री कृष्ण ने कहा– सफेद बाल वाले पर मेरा मंत्र नहीं चलता है । बाल सफेद होने पर भी दिल सफेद न हो , प्रभु के नाम की माला न जपे , तो ऐसा जीव मरे या जिए— इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता । मैं नहीं जाऊंगा । तू किसी दूसरे को बुला ले ।
किंतु गोपी ने बहुत आग्रह किया । गोपी का शुद्ध प्रेम था, अतः उसके आग्रह को मानकर श्री कृष्ण घर आए और बुढिया को देखकर बोले , इसको मूर्छा नहीं आई है । इसे तो भूत लगा है । किंतु घबराओ मत । भूत उतारने का मंत्र भी मुझे आता है । एक लकड़ी ले आओ।
बुढिया घबराई कि अब तो मार पड़ेगी । यह ढोंग तो मुझे ही भारी पड़ जाएगा।
कृष्ण ने लकड़ी के दो चार हाथ मारे कि बुढिया बोल उठी, मुझे मत मारो ,, मत मारो ,, मुझे न मूर्छा आई है , न भूत लगा है ।मैंने तो ढोंग किया था।
पाखंड भूत है । अभिमान भी भूत है । पाखंडी को परमात्मा नहीं मिलते।
राधे राधे❤️🙏