सखियों के श्याम (भाग 2)

श्रीहरिः

(ब्रह्म बिकानो प्रेमकी हाट)

‘ऐ इला! सुन तो।’ — धीमे स्वरमें श्यामसुंदरने कहा।

उनकी बात सुन मैं समीप गयी, तो उन्होंने एकान्तमें चलनेका संकेत किया ।

वहाँ चलकर कुछ क्षण सोचते रहे, फिर बोले- ‘मेरा एक काम है, करेगी ?’ मैंने उत्सुकतासे उनकी ओर देखा। –

— ‘अरी मुखमें जिह्वा है उसका क्या अचार डालेगी ?’ – उन्होंने खीजकर कहा । मैं हँस पड़ी – ‘तुम खाओगे वह अचार ? ‘

मार खायेगी बंदरिया कहीं की !’ – वे खीजकर मुझे मुठ्ठी बांध मारने बढ़े, किंतु मैं शांत खड़ी रही; तो उन्होंने भी हाथ नीचे कर लिया और समीप आकर बोले – ‘करेगी ?’

व्यग्रता छिपानेके लिये वे मेरी चुनरीका छोर अपनी ऊंगलीमें लपेटने और खोलने लगे ।

करेगी! करेगी! क्या करेगी; दण्ड-बैठक कि मल्लयुद्ध ?’ अब मेरे खीजनेकी बारी थी—‘न कुछ कहना, न सुनना ! बस ‘करेगी’। मेरे मुखमें जिह्वा न सही, तुम्हारे तो है !

फिर बोल क्यों नहीं फूट रहा ? घरमें सारा कामकाज यों ही पड़ा है। मैया मारेगी, मैं चलूँ!’ मैंने चलनेका उपक्रम किया ।

‘मैं तेरे हाथ जोड़ सखी ! नेक रुक जा । ‘ – सचमुच श्यामने सम्मुख – आकर हाथ जोड़ दिये ।

मैं अवाक् रह गयी –’क्या काम है, कहो ?’ –

‘इला !’ उन्होंने बरसनेको आतुर नयन उठाकर मेरी ओर देखा – ‘आज प्रात: से अबतक ‘ श्रीजी’ के दर्शन नहीं हुए ।’

कुछ रुक-रुक कर उन्होंने पूछा- ‘तू बरसाने जायेगी ?” ‘हो आऊँगी, तुम संदेश कहो ।’

‘मेरी ओरसे करबद्ध विनती करना – मेरे सभी अपराध क्षमा करके श्रीकिशोरीजी इस अकिंचनको दर्शन दें ।’

अपने सौभाग्यपर मैं फूली न समायी, किंतु ऊपरसे पूछा- ‘सुनो श्यामसुंदर ! मुझे घरमें बहुत कार्य करना पड़ा है, मैया खीज रही होगी। इसपर भी मैं तुम्हारा कार्य करूंगी, किंतु तुम मुझे क्या दोगे ?’

‘मैं तुझको क्या दूँगा ?’ श्यामने विवशतासे इधर-उधर देखा – ‘क्या दूँ सखी! तुझे देने योग्य तो मेरे पास कुछ भी नहीं है । ‘

‘यह क्या कहते हो ? व्रजमें आनेवाले सारे ऋषि-मुनी ‘त्रिभुवन – पति, परात्पर – पुरुष, लक्ष्मीपति’ जाने क्या-क्या कहकर तुम्हारी चर्चा करते हैं, सो ?’

सो तो कहे सखी; पर वह सब तू लेगी ? ‘ ‘ना बाबा ! मैं क्या करूँगी उसका ?”

‘फिर ?’

बिना कुछ लिये तो मैं काम करूँगी नहीं; यह निश्चय समझना !’ अच्छा सखी! ऐसा कर, मेरे पास जो है उसमें तुझे रुचे सो माँग ले । ‘

‘तुम्हारे पास क्या है भला ? ‘ मैंने तुनक कर कहा – ‘एक कछनी, एक पिछौरी और लकुट – मुरली । मैं क्या करूँगी इनका ?”

मैं तेरे पाँव पड़ इला!’ सचमुच श्यामने आगे बढ़कर मेरे पाँव छू लिये । कन्हाई तेरो ऋणी रहेगा ।’ – कहते-कहते उनका गला भर आया और मेरा हृदय उछल कर बाहर आ गिरने को हुआ ।

किसी प्रकार अपनेको सम्हाल कर कहा- ‘मैं जा रही हूँ । – ‘मैं सूर्यकुण्डपर जा रहा हूँ।’ – उन्होंने पटकेसे नेत्र पोंछे और चल दिये। घर जाकर मैंने ‘पवित्रा’ की बछियाको खोलते हुए उसके कानमें कहा – ‘बरसानेकी ओर भाग जाना ।’ –

अरी इला! यह बछिया कैसे छूट गयी ?’ – मैया चिल्लाई । ‘मैंने दूसरी ठौर बाँधनेको खोली, तो भाग गयी; मैं अभी पकड़ लाती हूँ ।’ – कहते हुए मैं बछियाके पीछे दौड़ी।

बरसानेके घाटपर विशाखा जीजी घड़े धो रही थी । समीप जाकर पूछास्वामिनी जू कहाँ है जीजी ?’

क्या बात है, आ रही हैं । ‘

‘संदेश लाई हूँ !’ मैंने धीरेसे कहा; फिर जोरसे बोली- ‘बछियाने दौड़ा-दौड़ा कर थका मारा जीजी ! दयीमारी अब कैसी शांत खड़ी है तुम्हारे समीप । ‘

स्वामिनी जू सखियोसे घिरी पधारीं; मैंने समीप जा चरणोंपर सिर रखा ।

उन्होंने दोनों हाथसे उठाकर हृदयसे लगा लिया । उस महाभाव-वपुका स्पर्श पा मेरी चेतना लुप्त हो गयी । ललिता जीजीने चरणामृतके छींटे देकर चेत कराया ।

मैं बछियाके गलेमें रज्जू बाँधती हुई सूर्यकुण्डकी ओर संकेत करके बोली—‘सखियों! सूर्यकुण्डपर श्याम – मेघ घुमड़ रहे हैं, शीघ्र चलो; अन्यथा वर्षा होने लगेगी।’

अहा ! स्वामिनी जू ने समीप आ अपनी मुक्तामाल मेरे कण्ठमें पहनाकर कपोलोंपर चुम्बन अंकित कर दिया। मैंने देखा मुक्ताके प्रत्येक दानेमें श्यामसुन्दरकी छवि अंकित है। सचमुच श्याम क्या देते मुझको ?

दूसरा भाग संपूर्ण हुआ…

जय श्री राधे…

Srihari:

(Brahma Bikano Premki Haat)

‘Aye Ila! Listen, then. — said Shyamasundar in a low voice.

When I went close after listening to him, he indicated to walk in solitude.

Walking there, he kept thinking for a few moments, then said – ‘I have a work, will I do it?’ I looked at him curiously. ,

– ‘Are you going to put a pickle in your mouth if you have a tongue?’ – he said angrily. I laughed – ‘Will you eat that pickle? ,

Will the monkey get beaten somewhere?’ – They got angry and started hitting me with fists, but I remained calm; So he also put his hand down and came close and said – ‘Will you?’

To hide his anxiety, he started wrapping and untying the end of my chunari around his finger.

Will do! Will do! what will she do; Punishment or wrestling?’ Now it was my turn to get angry – ‘Neither say anything, nor listen! Just ‘will do’. The tongue is not right in my mouth, you have it!

Then why are you not speaking? All the work in the house is like this. Maiya will kill me, I will go!’ I ventured to walk.

‘I am your friend with folded hands! Nice stop. Shyam really came in front of him and folded his hands.

I was speechless – ‘What is the work, say?’ ,

‘Ella!’ He raised his eager eyes and looked at me – ‘I haven’t had the darshan of ‘Shriji’ since this morning till now.”

After a few pauses, he asked – ‘Will you go to Barsane?’ ‘Yes, I will come, you tell the message.’

‘Please make a sincere request on my behalf – please forgive all my crimes and let Shri Kishoriji appear to this Akinchan.’

I was not elated at my good fortune, but asked from above – ‘Listen Shyamsundar! I have a lot of work to do at home, mother must be feeling irritated. Even on this I will do your work, but what will you give me?’

‘What shall I give you?’ Shyam looked here and there helplessly – ‘What should I give, friend! I have nothing to give you. ,

‘What do you say? All the sages who come to Vraj talk about you by saying ‘Tribhuvan – Husband, Paratpar – Purush, Lakshmipati’, don’t know what?

So say friend; But will you take it all? ‘ ‘No Baba! What will I do with her?”

‘Then ?’

I will not work without taking anything; Understand this determination! Nice friend! Do this, ask if you are interested in what I have. ,

‘What do you have? ‘ I said curtly – ‘One Kachni, one Pichhori and Wood – Murli. What will I do with them?”

I will fall at your feet!’ Shyaman actually went ahead and touched my feet. Kanhai will remain indebted to you. While saying this, his throat got filled and my heart was about to jump out.

Somehow he managed himself and said – ‘I am leaving. – ‘I am going to Suryakundpar.’ He wiped his eyes and walked away. After going home, I untied the heifer of ‘Pavitra’ and said in her ear – ‘Run towards rain’. ,

Arey Ela! How did this heifer escape?’ Mother shouted. ‘ When I opened to tie the second stop, she ran away; I’ll catch up now.’ Saying this I ran after the heifer.

Vishakha ji was washing pots at the Barsane Ghat. Going closer, he asked, ‘Where is Swamini Joo Jiji?’

What’s the matter, coming. ,

‘I have brought the message!’ I murmured; Then she said loudly – ‘The heifer got tired after running! How calm is Dayimari standing next to you now. ,

Mistress Jo came surrounded by friends; I went near and put my head on the feet.

He picked it up with both hands and touched it to his heart. At the touch of that great feeling, my consciousness disappeared. Lalita ji warned by sprinkling Charanamrit.

Tying a rope around the heifer’s neck, I pointed to the sun pond and said – ‘Friends! Shyam – clouds are roaming on Suryakund, walk quickly; Otherwise it will start raining.

Aha! Mistress Joo came near and put her free clothes around my neck and kissed me on my cheeks. I saw Shyamsundar’s image imprinted on each grain of Mukta. What would Shyam really give me?

The second part is over…

Jai Shri Radhe…

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