भगवान श्रीकृष्ण की विभूतियां

हरि की दिव्य विभूति अमित है, है अनन्त उनका विस्तार।
बता रहे हैं उनमें से कुछ जो प्रधान हैं सबमें सार।।
हूँ नारद देवर्षिवर्ग में, वृक्षों में मैं हूँ पीपल।
हूँ गन्धर्व चित्ररथ मैं ही, सिद्धों में मुनि सिद्ध कपिल।।
नागों में मैं शेषनाग हूँ, जलचरगण में वरुण महान।
पितरों में अर्यमा, नियन्ताओं में मैं हूँ यम बलवान।।
सबका तेज, शक्ति, जीवन मैं, मैं ही हूँ सबका आधार।
सबमें ओतप्रोत सदा मैं, अखिल विश्व मेरा विस्तार।। (श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार)

गीता के दसवें अध्याय में भगवान की विभूतियों का बड़ा ही रोचक वर्णन किया गया है किन्तु वे स्वयं कहते हैं–’मेरी विभूतियों का अन्त नहीं है’ (गीता १०।१९)।

ब्रह्मवैवर्तपुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने नन्दबाबा को अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए कहा–मैं सबका उत्पादक परमेश्वर हूँ और राधा ईश्वरी प्रकृति हैं। मैं देवताओं में श्रीकृष्ण हूँ। गोलोक मैं स्वयं ही द्विभुजरूप से निवास करता हूँ और वैकुण्ठ में चतुर्भुज विष्णुरूप से। शिवलोक में मैं ही शिवहूँ। ब्रह्मलोक में ब्रह्मा हूँ। तेजस्वियों में सूर्य हूँ। पवित्रों में अग्नि हूँ। द्रव-पदार्थों में जल हूँ। इन्द्रियों मेंमन हूँ। शीघ्रगामियों में समीर (वायु) हूँ। दण्ड प्रदान करने वालों में मैं यम हूँ। कालगणना करने वालों मेंकाल हूँ। अक्षरों में अकार हूँ। सामों में साम हूँ, चौदह इन्द्रों में इन्द्र हूँ। धनियों में कुबेर हूँ। दिक्पालों में ईशान हूँ। व्यापक तत्त्वों में आकाश हूँ। जीवों में सबका अन्तरात्मा हूँ। आश्रमों में ब्रह्मतत्त्वज्ञसंन्यास आश्रम हूँ। धनों में मैं बहुमूल्य रत्न हूँ। तैजस पदार्थों में सुवर्ण हूँ। मणियों में कौस्तुभ हूँ। पूज्य प्रतिमाओं में शालग्रामिशला तथा पत्तों मेंतुलसीदल हूँ। फूलों में पारिजात, तीर्थों में पुष्कर, योगीन्द्रों में गणेश, सेनापतियों में स्कन्द, धनुर्धरों मेंलक्ष्मण, राजेन्द्रों में राम, नक्षत्रों में चन्द्रमा, मासों मेंमार्गशीर्ष, ऋतुओं में वसन्त, दिनों में रविवार, तिथियों में एकादशी, सहनशीलों में पृथ्वी, बान्धवों में माता, भक्ष्य वस्तुओं में अमृत, गौ से प्रकट होने वाले खाद्यपदार्थों में घी, वृक्षों में कल्पवृक्ष, कामधेनुओं में सुरभि, नदियों में पापनाशिनी गंगा, पंडितों में पांडित्यपूर्ण वाणी, मन्त्रों में प्रणव, विद्याओं में उनका बीजरूप तथा खेत से पैदा होने वाली वस्तुओं में धान्य हूँ। वृक्षों में पीपल, गुरुओं मेंमन्त्रदाता गुरु, प्रजापतियों में कश्यप, पक्षियों मेंगरुड़, नागों में अनन्त (शेषनाग), नरों में नरेश, ब्रह्मर्षियों में भृगु, देवर्षियों में नारद, राजर्षियों मेंजनक, महर्षियों में शुकदेव, गन्धर्वों में चित्ररथ, सिद्धों में कपिलमुनि, बुद्धिमानों में बृहस्पति, कवियों में शुक्राचार्य, ग्रहों में शनि, शिल्पियों मेंविश्वकर्मा, मृगों में मृगेन्द्र, वृषभों में नन्दी, गजराजों में ऐरावत, छन्दों में गायत्री, सम्पूर्ण शास्त्रों में वेद, जलचरों में वरुण, अप्सराओं में उर्वशी, समुद्रों मेंजलनिधि, पर्वतों में सुमेरु, रत्नवान शैलों मेंहिमालय, प्रकृतियों में देवी पार्वती तथा देवियों मेंलक्ष्मी हूँ।

मैं नारियों में शतरूपा, अपनी प्रियाओं में राधिकातथा सतियों में वेदमाता सावित्री हूँ। दैत्यों मेंप्रह्लाद, बलिष्ठों में बलि, ज्ञानियों में नारायण ऋषि, वानरों में हनुमान, पाण्डवों में अर्जुन, नागकन्याओं में मनसा, वसुओं में द्रोण, बादलों में द्रोण, जम्बूद्वीप में भारतवर्ष, कामियों में कामदेव, अप्सराओं मेंरम्भा और लोकों में गोलोक हूँ। मातृकाओं मेंशान्ति, सुन्दरियों में रति, साक्षियों में धर्म, दिन के क्षणों में संध्या, देवताओं में इन्द्र, राक्षसों मेंविभीषण, रुद्रों में कालाग्निरुद्र, भैरवों मेंसंहारभैरव, शंखों में पांचजन्य, अंगों में मस्तक, पुराणों में भागवत, इतिहासों में महाभारत, मनुओं में स्वायम्भुव, मुनियों में व्यासदेव, पितृपत्नियों मेंस्वधा, अग्निप्रियाओं में स्वाहा, यज्ञों में राजसूय, यज्ञपत्नियों में दक्षिणा, अस्त्र-शस्त्रज्ञों में परशुराम, पौराणिकों में सूतजी, नीतिज्ञों में अंगिरा, व्रतों मेंविष्णुव्रत, ओषधियों में दूर्वा, तृणों में कुश, धर्मकर्मों में सत्य, स्नेहपात्रों में पुत्र, शत्रुओं में व्याधि, व्याधियों में ज्वर, मेरी भक्ति में दास्यभक्ति, विवेकियों में संन्यासी, शस्त्रों में सुदर्शन चक्र और शुभ आशीर्वादों में कुशल हूँ।

🔴ऐश्वर्यों में महाज्ञान, सुखों में वैराग्य, प्रसन्नता प्रदान करने वालों में मधुर वचन, दानों में आत्मदान, संचयों में धर्मकर्म का संचय, कर्मों में मेरा पूजन, कठोर कर्मों में तप, पुरियों में काशी, नगरों में कांची, वैद्यों में अश्विनीकुमार, भेषजों में रसायन, मन्त्रवेत्ताओं में धन्वन्तरि, दुर्गुणों में विषाद, रागों मेंमेघ-मल्हार, रागिनियों में कामोद, पशुजीवों में गौ, पवित्रों में तीर्थ व वनों में चन्दन हूँ।

🔵समस्त स्थूल आधारों में मैं ही महान विराट् हूँ। सूक्ष्म पदार्थों में परमाणु, मेरे पार्षदों में श्रीदामा, मेरे बन्धुओं में उद्धव और नि:शंकों में वैष्णव हूँ। वैष्णवों से बढ़कर दूसरा कोई मुझे प्रिय नहीं है। मैं वृक्षों मेंअंकुर तथा सम्पूर्ण वस्तुओं में उनका आकार हूँ। समस्त जीवों में मेरा निवास है, मुझमें सारा जगत फैला हुआ है। जैसे वृक्ष में फल और फलों में वृक्ष का अंकुर है, उसी प्रकार मैं सबका कारणरूप हूँ; मेरा ईश्वर दूसरा कोई नहीं है। मैं ही सबके समस्त बीजों का परम कारण हूँ। मैं सब जीवों की आत्मा हूँ। जहां मैं हूँ, उसी शरीर में सब शक्तियां और भूख-प्यास आदि हैं; मेरे निकलते ही सब उसी तरह निकल जाते हैं जैसे राजा के पीछे-पीछे उसके सेवक। इस प्रकार ईश्वरीय सत्ता कण-कण में व्याप्त है। इसका स्पन्दन शुद्ध हृदय द्वारा ही हो सकता है।

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