लाला बाबू भाग – 8

गतांक से आगे –

भावावेश में लाला बाबू ने – हा कृष्ण , हा कृष्ण , हा कृष्ण …कहते हुए आधी रात बिता दी ….तृषा से इनका कण्ठ सूख गया था …तो जल पीने के लिए ये गुफा से जैसे ही बाहर आये तो क्या देखते हैं ….गिरिराज जी की दिव्य तलहटी में वही पुरी के महात्मा बैठे हैं और बंगाली भाषा में भक्तमाल सुना रहे हैं …उनको सुनने के लिए दिव्य दिव्य चेतनायें उपस्थित हैं ….नभ से उतर कर बड़े बड़े सिद्धात्मा इनके मुखारविंद से कथा सुन रहे हैं । ये देखकर लाला बाबू के आनन्द का कोई ठिकाना नही रहा ….ये वहीं बैठ गये और भक्तमाल की कथा सुनने लगे …कब समय बीता पता ही नही चला था लाला बाबू को …..सब जा चुके थे ….कथा का विश्राम हो चुका था ……नेत्र खोले लाला बाबू ने – तो बस वही महात्मा थे , वो भी जाने की तैयारी में ही थे ।

महाराज जी ! मुझे दीक्षा दीजिये । लाला बाबू बिलख उठे चरण पकड़ कर ।

अभी कुछ शेष है ….तुम्हारी साधना पूरी नही हुयी है ….इसलिये अभी और दैन्यता अपने जीवन में लेकर आओ । लाला बाबू कुछ बोलते उससे पहले ही उन महात्मा ने कहा – तुम फिर से मधुकरी माँगने जाओ …मधुकरी माँगने से अहंकार कम होता है …और अहंकार के कम होने से दैन्यता आती है …दैन्यता ठाकुर जी को बहुत प्रिय है ….पर तुम जिस ओर मधुकरी माँगने जाते हो ना …..उस तरफ एक दलित का घर भी है ….पर तुम उसके यहाँ नही जाते …ये बृज है याद रखो लाला ! यहाँ का दलित और बाहर देश का ब्राह्मण बराबर होता है …यहाँ सब बृजवासी हैं ….जब तुम प्रत्येक बृजवासी को श्रीकृष्ण सखा मानते हो तो दलित भी तो बृजवासी हैं ।

लाला बाबू ने साष्टांग चरण वन्दन किये तब तक वो महात्मा जी वहाँ से चले गये थे ।

लाला बाबू दूसरे दिन गये मधुकरी माँगने ……उस दलित के यहाँ भी गये …..वहाँ जाकर उन्होंने “राधे श्याम” की आवाज लगाई ….तो उस दलित ने बाहर आकर देखा गदगद हो गया ….उसने रोटी लाकर दी …साग डाल दिया ….लाला बाबू ने उसी रोटी को आनंदित होकर पाया ….इस मधुकरी से इनका हृदय अत्यन्त शुद्ध पवित्र हो गया था …..इन्हें गिरिराज जी में चलते खेलते नाचते श्याम सुन्दर के दर्शन होने लगे …..इनमें सात्विकता इतनी बढ़ गयी की इनकी नींद ही खतम हो गयी …..ये रात्रि में गिरिराज जी की परिक्रमा लगाते ….श्रीराधाकुण्ड में महामन्त्र का सवा लाख जाप करते …..फिर कुसुम सरोवर में बैठकर श्रीराधारस सुधानिधि का पाठ करते…इस तरह इनके जीवन में एक दिव्य प्रेम का संचार पूर्ण रूप से हो गया था ।

एक दिन – इनको फिर वही सिद्ध महात्मा दिखाई दिये जब ये परिक्रमा लगा रहे थे ।

इन्होंने फिर उनके चरण पकड़ लिये ….और नेत्रों के जल से उनके चरणों को धोते हुये बोले ….अब तो भगवन् ! दास को दीक्षा दे दीजिये । कुछ देर रुक कर महात्मा जी बोले ….जाओ , अब श्रीवृन्दावन जाओ ….मैं वहीं मिलूँगा । फिर दीक्षा ? लाला बाबू ने पूछा । वहीं दूँगा …..पर हाँ लाला ! मधुकरी श्रीवृन्दावन में भी माँगना । ये कहकर फिर अन्तर्ध्यान हो गये थे महात्मा जी ।

लाला बाबू श्रीवृन्दावन लौट आये …..ये अपने ही मन्दिर में साधारण रूप से रहते थे ….इनके मन्दिर में अन्नक्षेत्र चलता था …भण्डारा होता था …दीन दुखी को वस्त्र आदि बंटता था …पर ये स्वयं मधुकरी माँगकर लाते …और भोग लगाकर ही उसे पाते ।

किन्तु एक झंझट हो गया ….इनके पास में ही एक विशाल मन्दिर का निर्माण कर दिया सेठ लक्ष्मीचंद ने ….मन्दिर का निर्माण दाक्षिणात्य शैली में हुआ था ….श्रीरंगनाथ का मन्दिर । लाला बाबू जब बृजयात्रा में गये तो उन दिनों सेठ लक्ष्मीचंद ने इनकी भूमि पर अतिक्रमण कर दिया । अब जानबुझकर किया या अज्ञानता में ये तो ठाकुर ही जाने । पर लाला बाबू जब आये तो उन्हें अच्छा नही लगा …..फिर लाला बाबू ने सोचा कि कोई बात नही थोड़ी ही ज़मीन तो दबाई है मेरी ….पर तुरन्त लाला के दिमाग में ये बात आगयी कि …..मेरी ज़मीन होती तो मैं छोड़ भी देता …पर ये तो मेरे ठाकुर जी की है ….ठाकुर जी की ज़मीन मैं किसी को कैसे लेने दूँ ।

लाला ने पहले तो सेठ लक्ष्मी चंद से बात करने की कोशिश की तो सेठ ने बात करने से ही मना कर दिया ….अब लाला तो पक्के कायस्थ थे ….ऐसे कैसे सेठ को छोड़ देते ….मुक़दमा चला दिया सेठ के ऊपर ….और लाला बाबू को ही जीतना था , वो जीते । मुक़दमा हारने के बाद सेठ लक्ष्मी चंद ने तर्जनी दिखाकर लाला बाबू को कह दिया था ….लाला ! तुझे देख लूँगा ।

लाला कुछ नही बोले ।

ये नित्य मधुकरी माँगने जाते थे …लोगों में ये जयजयकार थी कि लाला में कितनी दैन्यता है । एक दिन फिर मन में ये बात आयी लाला के कि अब तो गुरुदेव को दीक्षा दे देनी चाहिए …समय भी बहुत हो गया है । तभी वो महात्मा जी प्रकट हो गये ….और मुस्कुराते हुये बोले …लाला ! बस एक कमी रह गयी है ….क्या कमी रह गयी ? महात्मा जी बोले – लाला ! तेरे मन में सूक्ष्म ईर्ष्या है …जो तेरे हृदय में गंदगी पैदा कर रही है ।

लाला बाबू ने कहा ….मेरे अन्दर तो कोई-किसी के प्रति ईर्ष्या नही है । महात्मा जी बोले – तो फिर सबके यहाँ जाता है मधुकरी माँगने फिर “उसको”क्यों छोड़ देता है ? जा कल उसके यहाँ मधुकरी माँगकर उसके पैर छूकर आ । महात्मा सिद्ध थे …फिर अन्तर्ध्यान हो गये ।

अब रात भर सोचते रहे ….कि मैं किसके यहाँ मधुकरी माँगने नही गया , मैं तो गरीब से गरीब के यहाँ भी जाता हूँ ..पर उसी समय लाला के मुखमण्डल में मुस्कुराहट फैल गयी …सेठ लक्ष्मीचंद ।

लाला सुबह ही सुबह ही उनके यहाँ पहुँच गये …”राधेश्याम” की आवाज लगाई ….सेठ लक्ष्मी चंद बाहर जैसे ही आये …..उन्होंने लाला बाबू को देखा ….तो वो कुछ समझ पाते उससे पहले ही लाला ने उनके पैर में अपना मस्तक रख दिया …और मधुकरी के लिए पात्र आगे किया ।

ये देखते ही सेठ लक्ष्मी चंद गदगद हो गये और उन्होंने लाला को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया …..और लाला बाबू से बारम्बार क्षमा माँगने लगे …दोनों ही भक्त अब एक दूसरे के प्रति भाव प्रेम से भर गये थे । लाला बाबू जैसे ही बाहर आये तभी वो सिद्ध महात्मा प्रकट हो गये और बोले – चल लाला ! मैं तुझे आज दीक्षा देता हूँ …तेरा मन अब पूर्ण निर्मल हो गया है ….ये कहते हुये उन सिद्ध महात्मा ने यमुना किनारे लाला बाबू को दीक्षा प्रदान करी ….और मन्त्र प्रदान कर इनके हृदय में एक और ठाकुर जी की प्राण प्रतिष्ठा कर दी थी । अब जाकर लाला बाबू पूर्ण हुये थे । कहते हैं मन्त्र दीक्षा प्राप्त होते ही यमुना किनारे श्रीराधाकृष्ण और श्रीललिता सखी के इनको प्रत्यक्ष दर्शन हुये । इसके बाद भाव अवस्था इनकी चार दिन तक ऐसी ही बनी रही थी ।

शेष कल –

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