गतांक से आगे –
परम विद्वान श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय के निष्ठावान आचार्य श्रीहरिप्रियाशरण देव जी ।
ये “बिहारी जी बगीचा” में महन्त गद्दी पर विराजमान थे । इस वैदिक सत्सम्प्रदाय को ये ग्रन्थों से और समृद्ध बनाना चाहते थे । रामचन्द्र जब गया तो वो ये सोच कर गया था कि मुझे तो दीक्षा दे ही देंगे …और वो क्या देंगे …पहले तो मैं उन्हें परखूँगा …मेरी परीक्षा में सही उतरे तब मैं उनसे दीक्षा लूँगा ।
श्रीहरिप्रिया शरण देव जी शान्त भाव से कुंजों में बैठे थे …और उनकी लेखनी चल रही थी ….रामचन्द्र ने जाकर प्रणाम किया और बैठ गया । सोलह वर्ष का युवक आया है और इधर उधर देखकर बैठ गया है ….एक बार रामचन्द्र की ओर उन्होंने देखा था ….फिर अपने ग्रन्थ लेखन में लग गए …”दीक्षा तत्व प्रकाश” ये ग्रन्थ वो लिख रहे थे ।
रामचन्द्र ने देखा ….अद्भुत तेज सम्पन्न महात्मा थे वो …रामचन्द्र उनको देखते ही प्रभावित हो गया था । क्या नाम है तुम्हारा ? इतना अवश्य पूछा था महाराज जी ने और पूछने में बस औपचारिकता भर थी । “रामचन्द्र उपाध्याय” ….उत्तर दिया ….फिर उसके बाद कोई प्रश्न नही ….रामचन्द्र बैठा रहा ….एक घण्टे हो गये थे ….अब उसने अपनी तरफ से ही कहा ….मुझे आपसे कुछ चर्चा करनी है ….हाँ बोलो ….महाराज जी ने कहा । आप मुझे दीक्षा दीजिये । रामचन्द्र प्रभावित हो गया था …इसलिए उसे कहना ही पड़ा ।
श्रीहरिप्रियाशरण देव जी ने लेखनी रोक कर उस युवा रामचन्द्र को फिर देखा …..बोले …दीक्षा कोई लड्डू है जो माँगे उसे दे दिया जाये ….ये कहते हुए रामचन्द्र को बड़ी गम्भीर दृष्टि से देखा था मानों उसे जाँच रहे हों ।
पर मुझे आपसे दीक्षा चाहिये …..रामचन्द्र ने अब जिद्द पकड़ ली थी ।
कहाँ के हो ? महाराज जी ने पूछा । नेपाल का….उत्तर दिया रामचन्द्र ने । अन्न शुद्ध रहा है तुम्हारा ? मैंने सुना है पर्वतीय क्षेत्र में मांसाहार का बड़ा प्रचलन है ।
है …..और गुरुदेव ! मैंने भी अबोध अज्ञान की अवस्था में एक बार मांसाहार किया है …पर अबोध अवस्था में ….रामचन्द्र गुरुदेव से झूठ नही बोलना चाहता था …इसलिए उसने सच ही बोला ।
जाओ ….मैं तुम्हें नही दूँगा दीक्षा …. श्रीहरिप्रियाशरण देव ने मना कर दिया ….वो परीक्षा ले रहे थे रामचन्द्र की ।
पर मैंने आपको वरण कर लिया है …..रामचन्द्र जिद्द पर उतर आया था ।
तुम्हारे वरण का क्या मूल्य वत्स ! मैंने तुम्हें वरण नही किया । तो आप कब वरण करेंगे ? रामचन्द्र पूछ रहा है ।
जब मेरे श्यामाश्याम तुम्हें वरण करेंगे …..श्रीहरिप्रिया शरण देव इतना कहकर मौन हो गये ।
तो ठीक है ….अब मैं तभी आऊँगा जब मुझे श्यामा श्याम अपनायेंगे ।
रामचन्द्र चला गया ….उसे जाते देख मुस्कुराये थे श्रीहरिप्रिया शरण देव जी ।
बिहारी जी बगीचा के आगे ही अटलवन है ( जिसे आज कल अटल्लाचुंगी कहते हैं ) वहाँ घना वन था ….अटलवन प्राचीन वन है ….यहाँ श्यामा श्याम ने लीलाएँ की हैं ….वहीं कदम्ब और तमाल के घने छाँव में जाकर रामचन्द्र बैठ गया था …आँखें बन्द कर लीं ….और भागवत के आधार पर – “मोर पिच्छधारी पीताम्बर धारण किये हुए कानों में कनेर के पुष्प लगाये ..बैजयंती की माला धारण किये अधरों पर वेणु को पधराये ..मन्द मन्द मुस्कुरा रहे हैं नन्दनन्दन” …..इसी झाँकी का ध्यान करते हुये रामचन्द्र बैठ गया ….जिद्दी था …और प्रेम मार्ग में जिद्द की ही तो प्रधानता है …ये बस ….ध्यान करते करते देहातीत हो गया ।
दिन बीते रातें गयीं ….भूख प्यास का रामचन्द्र को कुछ भान नही है ….हृदय की झाँकी अब धीरे धीरे स्पष्ट होती जा रही थी ….वो नन्दनन्दन अब हिलने डुलने लगे थे ….वो मुस्कुराने लगे थे ….राम चन्द्र का चित्त कृष्णाकार होता जा रहा था ।
तीन दिन हो गये ….अब हृदय में विराजे नन्दनन्दन धीरे धीरे बाहर प्रकट होने लगे थे …पर आश्चर्य उनके प्रकट होते ही श्रीधाम भी दिव्य हो गया था ….यहाँ की अवनी दिव्यातिदिव्य हो गयी थी …वृक्ष सब चिन्मय प्रतीत हो रहे थे ….मोर नृत्य कर रहे थे …पक्षियों के कलरव से श्रीधाम गुंजती हो उठा था ….और नन्दनन्दन बस मुस्कुरा रहे थे …उनकी मुस्कुराहट की छटा ऐसी थी जिसपर करोड़ों कामदेव न्योछावर किए जा सकते थे …ओह ! । बिना तैयारी के कैसे इस अनुपम रूप सुधा के सिंधु को पार कर जाता ये रामचन्द्र ……मूर्छित हो गया ।
जब मूर्च्छा खुली तब सामने सदगुरु श्रीहरिप्रिया शरण देव मुस्कुराते हुए खड़े थे । वो तुलसी दल मिश्रित चरणोदक रामचन्द्र को पिला रहे थे …राम चन्द्र हड़बड़ा कर उठकर खड़ा हो गया और साष्टांग सदगुरु के चरणों में गिर गया …मुझे दीक्षा दीजिये ….मैं कुछ नही हूँ ….”मैं” ही नही हूँ …बस वही हैं जो हैं …अब आप मुझे सम्भालिये भगवन्! हिलकियों से रो उठा था रामचन्द्र ।
शेष कल –